**परम गुरु हुजूर महाराज -प्रेम पत्र -भाग 1-
कल से आगे - (10)
फिर ऐसे विचारवान् के दिल में जरूर तलाश इस बात की पैदा होगी कि यह जीव कहाँ से आता है और कहाँ जाता है और वहाँ दुःख पाता है या सुख और दुःख के हटाने और सुख की प्राप्ति के वास्ते कौन जतन मुनासिब है और किस तरह इस दुनिया में बर्ताव या गुजारा करना चाहिए कि जिससे दुःख कम होवे और सुख ज्यादा मिले और आइंदा को बाद छोड़ने इस देह के भी सुख मिले और दुःख ना होवे और यहाँ की जिंदगी में भी जो मेहनत और मशक्कत करनी पड़ती है और अनेक तरह की फिक्र और चिंता घेरे रहती है उससे थोड़ा बहुत बचाव किस तरह से होवे और ऐसी कौन सा उपाय है कि जिससे मौत का दुःख कम व्यापे या बिल्कुल न व्यापे।।
(11) ऐसे सोच विचार की हालत में जिस जीव को भाग से संतों का या उनके प्रेमियों का संग मिल जावे, तो उनके बचन चित्त से सुनकर सब संदेह और भरम इसके आहिस्ता आहिस्ता दूर हो जावें और अपने सच्चे मालिक और घर का पता और भेद और जुगत उसकी प्राप्ति की मिल जावे और दुःखों के बचने और परम आनंद के हासिल करने का भी जतन इसकी समझ में आ जावे। फिर जिस कदर यह शख्स उनका तन मन से संग करेगा और उनके बचन और उपदेश के मुआफिक कार्यवाही करेगा , उसी कदर दिन दिन उसको अपने अंतर में फायदा मालूम होता जावेगा।
क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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