Friday, October 2, 2020

स्वराज्य ( नाटक )

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -【स्वराज्य】

नाटक 


 कल से आगे:-         

                     

[ सदरजल्सा बैठ जाती है -जोर से तालियाँ बजती है और राजकुमारी जी व्याख्यान देने के लिये चबूतरे पर आती हैं और जब तक वह कुर्सी पर बैठ नहीं जाती तालियाँ बजती रहती है ]                                                       

यूनानी अफसर-( पास के सिपाही से) इस औरत ने तो गजब ही कर दिया- किस चालाकी के साथ अपने मतलब को अदा किया है!  सिपाही-मगर उसकी मंशा तो यही है कि यूनानी राज्य का जुआ उतार कर फेंक दिया जावे।  अफसर- मंशा तो जरूर यही है लेकिन इस बड़ी उम्र वाली ने अल्फाज ऐसे इस्तेमाल किये हैं कि उसका कानून की गिरफ्त में आना नामुमकिन है।।                          

सिपाही-मगर यह लड़की तो ऐसी होशियार न होगी जैसी यह बड़ी उम्र वाली है - इसका व्याख्यान जरा एहतियात के साथ लिखा जाय। [ राजकुमारी खडी होती है - मजमा तालियाँ बजाता है - राजकुमारी निहायत मीठे लेकिन बुलंद लहजे में व्याख्यान शुरु करती है]                                                           

राजकुमारी- पूज्यवर माताओं , प्यारी बहनों और यवनदेश के सुपुत्रो! पूज्यपाद श्रीमती सभा -अधिष्ठात्री जी ने इस समय आपकी सेवा में मेरे उपस्थित होने के कारण से आपको परिचित कर दिया है।  मैं सत्य कहती हूँ कि जो भाव इन दिनों मेरे हृदय में उत्पन्न हो रहे हैं वे ऐसे बलवान हैं कि मेरे इस छोटे से हृदय के लिए उनका सँभाले रखना अत्यंत कठिन हो रहा है । मैं आप सबके  पवित्र चरणों में प्रणाम करती हूँ और आपका धन्यवाद करती हूँ कि आपने मुझे अपने ह्रदय का बोझ हल्का करने के लिये अवसर प्रदान किया । मैं स्वीकार करती हूँ कि मैं जन्म से अनाथ हूँ- मैंने न अपने पिता का दर्शन किया है और न अपनी माता की गोद छुई है- लेकिन मुझे स्मरण है कि जिन व्यक्तियों ने मेरा पालन किया है उन्होंने मुझे अपनी संतान से- नहीं नहीं- अपने प्राणों से अधिक प्रिय रक्खा है। नगरकोट की एक देवी और यवनदेश के सुपुत्र का कृपापात्र बनकर और वर्षों तक उनकी करुणा और निष्काम प्रीति का रस पान करके यह कैसे संभव हो सकता है कि मेरे हृदय में -चाहे वह कैसा ही क्षुद्र क्यों न हो- नगरकोटनिवासियों की सेवा और यवनराज के सुपुत्रों के धन्यवाद के लिए उत्कंठा उत्पन्न न हो। 

क्रमशः

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


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