Friday, May 26, 2023

❤️ मानूं एक प्रेम का नाता ❤️🌹

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एक संत जी थे। वह श्री कृष्ण के परम भक्त थे। श्रीकृष्ण की  पूजा-अर्चना  बड़ी श्रद्धा और विश्वास से करते थे।  उन्होंने श्रीकृष्ण के साथ पिता - पुत्र  का संबंध बनाया था । यही सोचते कि श्री कृष्ण मेरे बालक हैं और वह उसके पिता हैं।


वह हर रोज कान्हा को उठाते, भोजन कराते, गोद में खिलाते अपना पूरा वात्सल्य श्रीकृष्ण पर उड़ेल देते। कभी कहते कान्हा मेरी दाढ़ी नोच रहा है, कभी कान्हा को पकड़ने उसके पीछे भागते।


कृष्ण भक्ति में पूरा संसार भूल गए थे। हर समय कृष्ण भक्ति में ही रमे रहते। एक बार संत जी शिष्यों से कहने लगे कि मैं कभी गंगा स्नान करने नहीं गया। शिष्य कहते गुरु जी आप काशी जी चले जाओ।


लेकिन संत जी श्रीकृष्ण के वात्सल्य भाव में वे इLतने रमे हुए थे कि उन्हें लगता था ,श्री कृष्ण कह रहे हैं कि मैं अभी छोटा हूं बाबा अभी आप मत जाओ।


समय के साथ संत जी और वृद्ध हो गए लेकिन उनका कन्हैया वही साथ 8 साल का बालक ही रहा। उनका वात्सल्य अभी भी कान्हा के बाल रूप में ही था।


संत जी कृष्ण चिंतन में ही वह स्वर्ग सिधार गए। शिष्य उन्हें शमशान जाने के लिए जाने की तैयारी करने लगे। 

इतनी में एक सात - आठ साल का सुंदर बालक गंगाजल का घड़ा लिए आया और कहने लगा कि मैं इनका मानस पुत्र हूं इनका संस्कार मैं ही करूंगा।


इनकी इच्छा थी गंगा स्नान करने की , मैं उनकी इच्छा जरूर पूर्ण करूंगा ,इसलिए मैं घड़े में यह गंगा जल लाया हूं।


 बालक ने संत जी के पार्थिव शरीर को गंगा स्नान कराया, संत के माथे पर तिलक लगाया और उनका अग्नि संस्कार किया।


 उस बालक में एक अद्भुत सी कशिश थी । चेहरे पर एक अलौकिक तेज था। कोई कुछ बोल ना सका। किसी ने कुछ पूछा ही नहीं। अग्नि संस्कार के बाद में बालक अंतर्ध्यान हो गया।


उस बालक के जाने के पश्चात लोगों के मन में आया कि  संत जी तो बाल ब्रह्मचारी थे उनका तो कोई पुत्र था ही नहीं। वह तो श्री कृष्ण को अपना मानस पुत्र मानते थे इसलिए भगवान श्री कृष्ण जी स्वयं संत के पुत्र के रूप में आए थे ।


एक बार अपने इष्ट देव पर भरोसा करके तो देखिए।


जब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में,

है जीत तुम्हारे हाथों में ,और हार तुम्हारे हाथों में ।

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