Monday, February 24, 2020

सत्संग के मिश्रित बचन प्रसंग





 प्रस्तुति - रेणु दत्ता /आशा सिन्हा


[21/02, 07:10] +91 97830 60206: **परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे:- संत महात्मा अनेक रीति से समझाते हैं और तरह-तरह के डर नरको और 84 के दिखलाते हैं और अमर सुख और आनंद का, जो संतों के निज देश में प्राप्त होगा, भेद और जुगत उसकी प्राप्ति की बताते हैं। और किसी कदर यह मन भी अपने बर्ताव की परख करके मालूम कर लेता है कि फलां बात में उसका नुकसान है या फायदा, फिर भी झोका नुकसान ही की तरफ खाता है और फायदे के काम की सुध नहीं लाता है। ऐसा जो मन है उसकी तरफ से परमार्थी को खूब होशियार रहना चाहिए और चाहिए कि सच्चे मालिक राधास्वामी और सतगुरु की दया बल लेकर सत्संग खूब होशियारी के साथ करें और सुरत शब्द के अभ्यास को बराबर शौक के साथ जारी रखें, तो आहिस्ता आहिस्ता कोई अर्से में मुमकिन है कि मन दुरुस्त हो जावेगा। सिवाय इसके और कोई जतन मन की दुरुस्ती का नहीं है।।                               जवानी में मन की तरंगों का जोर का रोकना अलबत्ता किसी कदर कठिन है, पर अधेड़ अवस्था और जबकि बुढापे की अवस्था शुरू होती है मन और इंद्रियों का भोग विलास की तरफ से रोकना बहुत कठिन है। पर जो सच्चा शौकीन और अनुरागी है तो राधास्वामी दयाल की दया से उसका यह काम जवानी में भी किसी कदर आसानी के साथ बन सकता है, जो उसको सतगुरु का संग भाग से मिल जाए।।                           सच तो यह है कि हर एक जीव पर फर्ज है कि मन की सँभाल जिस कदर हो सके जरूर करें। वाजिबी और मुनासिब तौर पर तो उसका बर्ताव दुरुस्त है पर किसी बात में ज्यादती नहीं होनी चाहिए, नहीं तो परमार्थ की कार्रवाई और तरक्की में खलल पड़ेगा तो जो काम की थोड़े दिन में बन सकता है उसको बहुत अरसा लगेगा। क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
[21/02, 07:10] +91 97830 60206: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-सतसंग के उपदेश-भाग 2-(27)-【मनुष्य शरीर सिर्फ हाड, माँस व चाम का ढेर नही है।】:- संतमत की तालीम का एक बुनियादी उसूल यह है कि मनुष्य-शरीर निहायत अमूल्य है, इसकी पूरी कदर करनी चाहिए। इस शरीर को सिर्फ संसार के विषय भोगने व औलाद पैदा करने में सर्फ करना परले दर्जे की अभाग्यता है। इस शरीर के अंदर ऐसा इन्तिजाम है कि अगर मनुष्य कोशिश करे तो देवता, हँस और परमहँस गति को प्राप्त हो सकता है। किसी सिद्ध पुरुष की सेवा में हाजिर रहकर यह भेद बखूबी समझ में आ सकता है। जैसे लौकिक रहस्यों के समझने व सीखने के लिये काबिल उस्ताद की शागिर्दी जरुरी है ऐसे ही इस रहस्य के समझने व सीखने के लिये सच्चे सतगुरु की शागिर्दगी लाजिमी है।।    बाज लोग कहते है कि देखने में मनुष्यशरीर हड्डियों व चमडे का ढेर ही तो है मगर ऐसी दृष्टि रखने वाले पुरूषों के लिये मनुष्म जीवन सिर्फ वासनाओं व इच्छाओं में बर्तने का जरिया है। गम्भीर दृष्टि वाले पुरुष जानते है कि हड्डियों और चमडे को जान देने वाला जौहर, जिसे सुरत या आत्मा कहते है, इस रचना में बहुमूल्य जौहर है। इस जिस्म के सूराखों या रौजनों की मार्फत मनुष्य रचना के पदार्थों व कुदरत की शक्तियों से मेल कर सकता है और जिस्म के अंदर कायम गुप्त चक्रों या कमलों के जगा लेने पर इसके अंदर उँचे घाट की शक्तियाँ जाग जाती है, यहाँ तक कि आत्मा व सच्चे कुल मालिक का साक्षात्कार होकर जन्म मरण का खात्मा और अमर आनंद व अविनाशी सुख की प्राप्ति हो जाती है इसलिये संतमत तालीम देता है कि ऐसा अमूल्य शरीर पाकर उसे वृथा खोना नहीं चाहिये।क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
[21/02, 15:18] +91 70373 83505: एक संत के पास 30 सेवक रहते थे ।  एक सेवक ने गुरुजी के आगे अरदास की महाराजजी 🙏🏻 मेरी बहन की शादी है तो आज एक महीना रह गया है तो मैं दस दिन के लिए वहां जाऊंगा. कृपा करें. आप भी साथ चले तो अच्छी बात है. गुरुजी ने कहा बेटा देखो टाइम बताएगा. नहीं तो तेरे को तो हम जानें ही देंगे उस सेवक ने बीच-बीच में इशारा गुरुजी की तरफ किया कि गुरुजी मुझे कुछ की जरुरत हैं, और आखिर वह दिन नजदीक आ गया सेवक ने कहा गुरुजी कल सुबह जाऊंगा मैं गुरुजी ने कहा ठीक है बेटा.

सुबह हो गई जब सेवक जाने लगा *तो गुरुजी ने उसे 5 किलो अनार दिए और कहा ले जा बेटा भगवान तेरी बहन की शादी खूब धूमधाम से करें दुनिया याद करें कि ऐसी शादी तो हमने कभी देखी ही नहीं* और साथ में दो सेवक भेज दिये जाओ तुम शादी पूरी करके आ जाना, जब सेवक घर से निकले 100 किलोमीटर गए तो उसके मन में आया जिसकी बहन की शादी थी वह दुसरे सेवक से बोला गुरुजी को पता ही था कि मेरी बहन की शादी है और हमारे पास कुछ भी नहीं है फिर भी गुरुजी ने मेरी मदद नहीं की,  दो-तीन दिन के बाद वह अपने घर पहुंच गया.  उसका घर राजस्थान रेतीली इलाके में था वहां कोई फसल नहीं होती थी. वहां के राजा की लड़की बीमार हो गई तो वैद्यजी ने बताया कि इस लड़की को अनार के साथ यह दवाई दी जाएगी तो यह लड़की ठीक हो जाएगी. *राजा ने मुनादी करवा दी थी अगर किसी के पास आनार है तो राजा उसे बहुत ही इनाम देंगे.*  इधर मुनादी वाले ने आवाज लगाई *अगर किसी के पास आनार है तो जल्दी आ जाओ, राजा को अनारों की सख्त जरूरत है, जब यह आवाज उन सेवकों के कानों में पड़ी तो वह सेवक उस मुनादी वाले के पास गए और कहा कि हमारे पास आनार है, चलो राजा जी के पास,* राजाजी को अनार दिए गए अनार का जूस निकाला गया और लड़की को दवाई दी गई तो लड़की ठीक-ठाक हो गई. *राजा ने पूछा तुम कहां से आए हो, तो उसने सारी हकीकत बता दी तो राजा ने कहा ठीक है तुम्हारी बहन की शादी मैं करूंगा,  राजा जी ने हुकुम दिया ऐसी शादी होनी चाहिए कि लोग यह कहे कि यह राजा की लड़की की शादी है सब बारातियों को सोने चांदी गहने के उपहार दिए गए बरात की सेवा बहुत अच्छी हुई लड़की को बहुत सारा धन दिया गया.  लड़की के मां-बाप को बहुत ही जमीन जायदाद व आलीशान मकान और बहुत सारे  रुपए पैसे दिए गए,  लड़की भी राजी खुशी विदा होकर चली गई,  अब सेवक सोच रहे हैं कि गुरु की महिमा गुरु ही जाने. हम ना जाने क्या-क्या सोच रहे थे गुरुजी के बारे में, और गुरुजी के वचन थे जा बेटा तेरी बहन की शादी ऐसी होगी कि दुनियां देखेगी.*

     *_गुरु के वचन हमेशा सच होते हैं...❗_*

*_शिक्षा......_*
*गुरु के वचन के अंदर ताकत होती है लेकिन हम नहीं समझते जो भी वह वचन निकालते हैं वह सिद्ध हो जाता है, हमें गुरुदेव के वचनों के ऊपर अमल करना चाहिए और विश्वास करना चाहिए ना जाने गुरु कब क्या दे दे और रंक से राजा बना दे...❗*
[22/02, 07:59] +91 97830 60206: *।।दयालबाग एवं सतसंग संस्कृति ।।*
*(28) 1943 की एक सुबह हुजूर मेहताजी महाराज अपने साथ कुछ दर्जन आदमियों को लेकर झाड़ियों से भरे ऊंची नीची जमीन के हिस्से पर तशरीफ़ ले गये। वे अपने साथ फावडे ले गये और मैदान को साफ करना व समतल करना प्रारंभ कर दिया। धीरे-धीरे खेत में काम करने वाले सत्संगियों की संख्या बढ़ गई और यह सुबह के सत्संग के बाद का रोजाना का कार्यक्रम हो गया। ऊँचे भू- स्थलों  से मिट्टी को खींचकर लाने के लिए पाटे बनाए गए और सख्त व उबड खाबड दिखाई देने वाले खेत समतल होने लगे। तथा शाम को हर तरह का काम करने वाले सत्संगी इस सेवा में जाने लगे। जाडे की ठंडी सुबह में, गर्मी की तपती दोपहर में और बारिश के मौसम में हुजूर मेहताजी महाराज काम करने वालों को निर्देश देने और उत्साहित करने हेतु दया कर स्वयं वहाँ मौजूद रहते थे। समतल किये गये खेत जोते गए। उनमें विभिन्न फसलों के बीज बोए गए और माइनर नहर और ट्यूबवेल से सींचे गये। करते करते समय कुछ समय में 1250 एकड का एक कृषि फार्म बनकर तैयार हो गया और क्विंटलों अनाज, दालें तिलहन, मूँगफली, गन्न र सब्जियों आदि की फसल पैदा होने लगी ।"अधिक अन्न उपजाओ"  योजना के अंतर्गत दशको तक लगातार श्रम के परिणामस्वरूप दयालबाग अपनी जरुरत भर खदानों के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया था। इस रैती और ऊसर भूमि को हरे भरे खेतों में बदलना किसी चमत्कार से कम नहीं था।               (29) 1957 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दयालबाग और उसके आसपास के क्षेत्रों के नागरिकों की देखभाल के लिए दयालबाग में टाउन एरिया कमेटी की स्थापना एक प्रभावशाली कदम था। 1995 मे टाउध एरिया नगर पंचायत बन गई जो एक छोटी म्यूनिसिपल (नगर पालिका )है                    (30) 1961 में राधास्वामी सत्संग की शताब्दी समारोह एक प्रमुख घटना थी। समारोह लगभग 1 सप्ताह तक चला और हुजूर मेहताजी महाराज ने दया कर बसंत पंचमी के दिन सुबह संदेश दिया इसका हिंदी में अनुवाद परिशिष्ट 2 में प्रकाशित।।                               (31)  भारत और भारत के बाहर के अंग्रेजी जानने वाले व्यक्तियों के लिए बहुत बड़ी संख्या में सत्संग की पोथियों का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया और प्रकाशित किया गया। हुजूर मेहताजी  महाराज ने दया कर अधिकांश पवित्र पोथियाँ के अनुवाद करने का दुरुह कार्य स्वयं सरंजाम दिया जिसके परिणाम स्वरूप अब बड़ी संख्या में अंग्रेजी में पोथियां उपलब्ध है ।                 (32) सितंबर 1937 में विद्यार्थियों को मुफ्त दूध वितरण की योजना शुरू की गई ।बाद में उनके शिक्षण शुल्क की  अदायगी , मुफ्त यूनिफार्म, स्वेटर और जूते आदि महय्या करनें एवं उनकी स्वास्थ्य रक्षा के लिए प्रबंध किये गये।।         (33)  इस दौरान निर्माण कार्यों के अंतर्गत विद्युत नगर , और कार्यवीर नगर मोहल्लों का विस्तार हुआ, व लेदर गुड्स फैक्ट्री की इमारत, इंजीनियरिंग कॉलेज, उसकी प्रयोगशाला सहित एक भवन का निर्माण कार्य हुआ तथा लड़कों के लिए छात्रावास में स्थान बढ़ाया गया।**
[22/02, 07:59] +91 97830 60206: *(38) 1977 मे स्कूल ऑफ आर्ट एण्ड कल्चर की स्थापना की गई।।     (39) सतसंगी परिवारों के बालक एवं बालिकाओं में सहयोग पूर्वक मिलजुल कर रहने की आदत डालने तधा उन्हे राधास्वामी मत की शिक्षाओं एवं नैतिक मूल्यों से पूर्व रुप से अवगत कराने के उद्देश्य से 1983 में ग्रीष्मकालीन स्कूलों (Summer Schools)  का कार्यक्रम जारी किया गया। रीजनल एसोसिएशनस से इन स्कूलों का आयोजन करने को कहा गया।।        (40) एक अन्य महत्वपूर्ण विकास कार्य था सतसंग कॉलोनी की स्थापना करना। ये कॉलोनीज दयालबाग का एक लघु रुप होती है जो सतसंगियों को उनकै धार्मिक कार्यों के लिये सही वातावरण मुहय्या करती है तथा सतसंगियों व उनके साथियो के फायदे के वास्ते सामाजिक और आर्थिक गतिविधियाँ क्रियान्वित करने में सहूलियत भी प्रदान करती है। कॉलोनीज के निर्माण की शुरुआत रुडकी से हुई जो 1978-79 में बन कर तैयार हुई।**

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