Sunday, February 9, 2020

राधास्वामी संत मत दयालबाग सत्संग के उपदेश



[08/02, 18:12] +91 92346 58709: **परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र-( भाग 1)-(5)- 【अभ्यास में विघ्न और उनके दूर करने का जतन】:- कोई लोग भजन में रस न मिलने की शिकायत करते हैं या यह कि अंतर में उनको कुछ नहीं खुला।  इसका सबब यह है कि या तो उनका मन वक्त अभ्यास के संसारी चाहों या कामों की गुनावध या ख्याल में लगा रहता है, या संसारी काम या उनकी गुनावन करके के अभ्यास में बैठते हैं, या उनको जो कुछ अंतर में सुनाई या दिखाई देता है उसकी उनको पहचान और कदर नहीं है।।              जाहिर है कि जब कोई अभ्यास के वक्त दुनिया के कामों का ख्याल या तरंग उठाएगा, उस वक्त उसके मन और सुरत की धार उसकी इंद्री की तरफ जारी होगी। क्योंकि मन से एक वक्त में एक ही काम हो सकता है और रस ऊपर यानी नीचे की धार में है, तो भजन का रस मन को, जब तक कि उसकी धार ऊपर के चैतन्य से चढ़ कर न मिले, क्योकर आ सकता है?    जो कोई काम या उसका ख्याल करके अभ्यास में बैठता है तो मन और सुरत उसके संसारिक वासना की धार से भीगे हुए हैं और उस वक्त उनका झुकाव और ख्याल नीचे की तरफ हो रहा है, तो जब तक गहरा शौक और प्रेम अंग लेकर भजन में मुतव्वज्जह ना होगा तब तक सुरत और मन निर्मल होकर न लगेंगे और रस नहीं आएगा। इस सूरत में मुनासिब है कि कोई चेतावनी या बिरहा या प्रेम के शब्द का बड़ी पोथी सार बचन नज्म से होशियारी से पाठ करें और अपने ख्याल को बदलें तो अलबत्ता कुछ रस या आनंद अभ्यास में मिल सकता है।।                    कोई शख्सों का यह हाल है कि जैसा कि उनको भेद स्थानों का मिला है जरा अभ्यास में बैठते हैं तो चाहते है कि पहला मुकाम तो फौरन ही खुल जावे, और जो कुछ उसकी झलक दिखलाई देवे तो चाहते है कि बराबर उनके सामने खड़ी या कायम रहे, और जो आवाज उनको पहले मुकाम की सुनाई देती है  तो उसको  जैसा कि चाहिए कदर नहीं करते। क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
[08/02, 18:12] +91 92346 58709: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज - सतसंग के उपदेश-( भाग- 2)-(23)- 【बाहरी कार्रवाई व साधन सच्चे परमार्थ का आदर्श नहीं है।】:- एक सिक्ख भाई ने बयान किया कि मैं अब पक्का सिक्ख बन गया हूँ।  मैं पांचो कके के हर वक्त सजाए रखता हूँ। सिर पर साफे के नीचे हमेशा नीली पगड़ी बांधता हूँ। जो शख्स केशधारी नहीं है उसके हाथ की कोई चीज नहीं खाता हूँ।  प्रातः काल स्नान करके "जप जी साहब" वगैरह का और दिन में दसवीं पादशाही (गुरु गोविंद सिंह साहब) की वाणी का पाठ करता हूं। यह बातें सुनकर पूछा गया - आया इन कार्रवाइयों से कोई अंदरूनी तब्दीली भी वाकै हुई है ? उन्होंने जवाब दिया कि यह तब्दीली वाकै हुई है कि मुझे सिवाय सिक्खों के कोई शख्स प्यारा नहीं लगता। सिर्फ सिक्खो ही के साथ उठना बैठना और 10 गुरुओं के गुन गाना अच्छा लगता है । इस पर कहा गया कि जरा आंखें बंद करके बताओ कि क्या दिखाई देता है ? जवाब मिला कि अंधेरा दिखाई देता है। उनसे कहा गया कि इससे जाहिर है कि पक्का सिख बनने के मुतअल्लिक़ जितनी कारर्वाईयाँ आपने कींक्ष उन सब का ताल्लुक जागृत अवस्था से है यानी आप सिर्फ जागृत अवस्था में सिक्खी ख्यालात, सिक्ख मजहब की तालीम और गुरु साहिबान का चिन्तवन कर सकते हैं इसलिए आंखें बंद करके अंतर्मुख वृति करने पर आपको महज अंधकार दिखाई देता है । आप अभी पक्के सिक्ख नहीं बने हैं। पक्का सिक्ख बनना उसे कहते हैं कि बाहर से दृष्टि हटाकर अन्तर्मुख होने पर आपको अपनी आत्मा का या सच्चे मालिक का या गुरु महाराज का दर्शन प्राप्त हो क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
[09/02, 17:49] +91 92346 58709: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -सत्संग के उपदेश-( भाग 2 )-कल का शेष:- सिक्खमजहब के जितने भी सच्चे गुरु हुए उन सब को यह गति प्राप्त थी और इसी की बदौलत वे देह व संसार के साथ ताल्लुक रखते हुए निर्लेप रहते थे और इस गति की वजह से तमाम दुनिया उनकी पूजा करती है। बाहरी निशानात धारण कर लेना या जबान से महापुरुषों की वाणी का पाठ और उच्चारण करना हरचंद काबिले तारीफ बातें हैं लेकिन सच्चे महापुरुष महज इन बातों की शिक्षा के लिए देह धारण नहीं फरमाते। सच्चे गुरु की यही महिमा है कि वे जिसका हाथ पकड़ लेते हैं उसको माया की कीचड़ से निकालकर अपने समान बना लेते हैं इसीलिए पक्का सिक्ख वह है जिसने सचमुच सच्चे गुरु महाराज का चरण पकड़ा है और जो उनकी दया से और जो साधन से खिलाते हैं उसकी कमाई से, दिन-ब-दिन निरखता जाता है और जो यह महसूस करता है कि बजाय मामूली नव द्वारों में बर्ताव करने के उसकी सुरत या तवज्जुह की धार ज्यादातर दसवें द्वार की जानिब मुखातिब रहती है और जिसको वक्तन फवक्तन सूक्ष्म या चेतन घाट की आज्ञा प्राप्त होती है और जिस शख्स को अंतरी आंख खुलने से आत्मा व अनात्मा में फर्क साफ दिखाई देता है। अफसोस! कि ये बातें उस सिक्ख भाई को पसंद न आई। उसने जवाब में यही कहा कि मैं पहले ही कह चुका हूं कि अब मेरा चित्त गैरसिक्ख असहाब  से मोहब्बत करना नहीं चाहता। यह वाका इस गरज से पेश किया जाता है कि सत्संगी भाई इससे सबक हासिल करें और होशियार रहें कि वे इस किस्म की गलती में ना पड़े और राधास्वामी मत की असली तालीम की जानिब लापरवाह होकर अपनेतई  धोखा ना दे कि वे सच्चे सतसंगियों की सी जिंदगी बसर कर रहे हैं । वक्तन फवक्तन तन- मन और धन से सेवा करना या राधास्वामी दयाल के पवित्र बानी का पाठ करना निहायत उत्तम व जरूरी काम है लेकिन राधास्वामी मत की असली तालीम का ताल्लुक अंतर में गहरा गोता लगाने से है । सेवा, सत्संग, व अभ्यास महज साधन है, आदर्श नहीं है। साधन किसी नतीजे पर पहुंचने का जरिया हुआ करता है, नतीजा नहीं होता। नतीजे को आदर्श कहते हैं। हमारा आदर्श सच्चे मालिक का दर्शन है। उसी की प्राप्ति के लिए हमने हुजूर राधास्वामी दयाल की चरण शरण ली है। उसी की प्राप्ति के लिए हमें सेवा, सत्संग व सुरत शब्द अभ्यास व्यास के शिक्षा फर्माई गई है।🙏🏻 राधास्वामी**🙏🏻
[09/02, 17:49] +91 92346 58709: **परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेमपत्र -(भाग 1 ) -कल से आगे:- इस सबब से अभ्यास रूखा और फीका मालूम होता है। तीसरे तिल या सहसदलकमल कमल का नजार आना और उसका ठहरना आसान बात नहीं है, क्योंकि यह मुकाम विराट स्वरूप और ब्रह्म के है । ऐसी जल्दी इन मुकामों का देखना और ठहरना मुश्किल है, लेकिन कभी-कभी उनके स्वरूप या झलक का दिखई देना और आवाज घंटे के सुनाई देना यह भी बड़ा भाग है।  आहिस्ता आहिस्ता आवाज भी साफ और नजदीक मालूम होती जावेगी और कभी स्थान का स्वरूप भी दिखलाई देगा।।         प्रेम और प्रतीति के साथ अभ्यास करते रहना मुनासिब है और समझना चाहिए कि संतमत के अभ्यास का मतलब यह है कि सुरत और मन जो पिंड में बंधे हुए हैं ब्रह्मांड की तरफ और फिर उसके पास चढ़कर पहुंचे । जो कोई ध्यान में अपने मन और सुरत को पहले या दूसरे मुकाम पर जमावे और थोड़ी देर तक ठहरावे, तो चाहे उसे कुछ नजर आवे या नहीं, सिमटाव और चरढ़ाई का रस तो उसे जरूर ही मिलेगा । इसी तरह जो ध्यान और भजन के वक्त अपने मन और सुरत को जोड़ेगा और जहां से की आवाज आ रही है वहां तक आहिस्ता आहिस्ता पहुंचावेगा, तो जरूर उसको आनंद भजन का आवेगा। इस वास्ते मुनासिब है कि ध्यान और भजन के वक्त दुनियाँ के ख्याल छोड़ कर अपने मन और सुरत को पहले स्थान पर जमावे और जो वह उतर आवे तो फिर वहां पहुंचकर ठहरावे । इसी तरह बारम्बार  करता रहे तो थोड़ा बहुत शब्द भी सुनाई देगा और रूप भी दिखलाई देगा और सिमटाव और चढ़ाई का जो आनंद है वह जरूर मिलेगा। मगर इन सब कामों के करने के वास्ते शौक और तड़प यानी बिरहा और प्रेम थोड़ा बहुत जरूर दरकार है। जो अभ्यास के वक्त मन काबू में आवे तो मुनासिब है कि बड़ी पोथी में से कोई बिरह या प्रेम या चेतावनी का शब्द, जिसका दिल पर असर ज्यादा होता होवे गौर से पढ़ कर भजन में बैठे तो मन की किसी कदर हालत बदलेगी और भजन थोड़ा बहुत दुरुस्ती के साथ बनेगा ।क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
प्रस्तुति - ऊषा रानी / राजेंद्र प्रसाद सिन्हा 

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