Sunday, April 5, 2020

सत्संग के उपदेश /कथा







: *सतसंग के उपदेश*
भाग-2
*(परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज)*
बचन (41)
*बन्धन व फ़र्ज़ में बड़ा फ़र्क़ है।*
             *दुनिया का अजीब इन्तिज़ाम है। इधर तो क़ुदरत ने माँ बाप के दिल में औलाद की चाह धर दी है, उधर यह क़ायदा कर रक्खा है कि बहुत से वाल्दैन के क़तई औलाद (सन्तान) नहीं होती और जिनके होती है तो अक्सर छोटी उम्र में या कुछ बड़ी हो कर मर जाती है। जिन शख़्सों के औलाद नहीं होती वे उसके लिये जहान भर की कोशिशें करते हैं। कोई दवा दारू ऐसी नहीं जिसे वे खाने के लिये तैयार न हों, कोई हकीम डाक्टर ऐसा नहीं जिसके दरवाजे़ की हाज़िरी से उन्हें इन्कार हो और मालिक से लेकर भूत पलीत तक कोई ऐसी गुप्त शक्ति नहीं जिसका दरवाज़ा खटखटाने में उन्हें शर्म हो। "बेचारे ग़रज़बस बावले" होकर तरह तरह की मुसीबतें व नुक़्सान उठाते हैं और जब तक उनका मनोरथ पूरा नहीं हो जाता अपनेतईं जीते जी मरा समझते हैं। दवा इलाज या पूजा पाठ कराने पर जब किसी ग़रीब की आरज़ू पूरी हो जाती है तो बेतरह ख़ुशियाँ मनाता है और जिस देवता की पूजा करते करते औलाद हुई है उसी को सच्चा करतार और कुल मालिक समझने लगता है। अर्से तक उसके ख़ान्दान में बल्कि उसके जुम्ला संगी साथियों के घर में उसी देवता का सेवन रहता है और इस तरह समझ बूझ का कहना एक तरफ़ रख कर लोग क़िस्म क़िस्म के इष्ट धारण करते हैं और जब कुछ अर्से बाद उनकी औलाद मर जाती है तो जो कष्ट उनको होता है उसका अन्दाज़ा लगाना हर इन्सान के लिये कठिन है। ऐसे शख़्सों के अलावा बहुत से ऐसे लोग भी हैं जिनके औलाद मामूली तौर से हो जाती है और वे लड़का या लड़की के मर जाने पर सख़्त दुख महसूस करते हैं। ख़ास कर बुढ़ापे की उम्र में औलाद का सदमा सख़्त रंज का बायस होता है।*
            आज कल इस मुल्क़ में, जहाँ बच्चों की मौतों की तादाद बहुत ज़्यादा है, क़रीबन् हर वाल्दैन को इस मुसीबत का सामना करना पड़ता है। क्या यह इन्सान पर सरासर ज़ुल्म नहीं है कि पहले उसके दिल में औलाद की ख़्वाहिश डालना, फिर उसे औलाद न देना और अगर देना तो अचानक उससे रोते पीटते और चिल्लाते बिल्लाते छीन लेना? ज़ाहिरन् ज़ुल्म ज़रूर है मगर ग़ौर करो कि इन्सान को किसने कहा था कि औलाद में मोह व ममता क़ायम करो। शादी की ख़्वाहिश ज़रूर क़ुदरत ने उसके अन्दर पैदा की मगर इसलिये कि दूसरी सुरतों (आत्माओं) को इन्सानी चोले में अवतार लेने का मौक़ा मिले। लेकिन इसकी वजह से सिर्फ़ इस क़दर इजाज़त है कि इन्सान बख़ुशी शादी करें और जिस वाल्दैन के घर औलाद पैदा हो वे उसकी मुनासिब पर्वरिश करें लेकिन यह इजाज़त नहीं है कि जिनके घर औलाद पैदा न हो वे उसके लिये हद से ज़्यादा कोशिशें करें या अगर बावजूद हर तरह की ख़बरगीरी के औलाद मर जाय तो नाहक़ परेशान ख़ातिर हों। इन्सान ख़ुद ही मोह व ममता में पड़कर अपने लिये आयन्दा मुसीबत के सामान इकट्ठा करता है और क़ुदरत को इलज़ाम लगाता है। छोटी उम्र में बच्चे की भोली सूरत और सादे बोल चाल से माँ बाप के दिल में गहरी मोहब्बत क़ायम हो जाती है और बड़े होने पर उससे उम्मीदें बाँध लेने से ज़बरदस्त ग़रज़मन्दी पैदा हो जाती है और नतीजा यह होता है कि औलाद के गुज़र जाने पर माँ बाप दोनों की ज़िन्दगी तलख़ हो जाती है। *काश जिस क़दर मोहब्बत इन्सान अपनी औलाद के साथ करता है उसका आठवाँ हिस्सा भी सच्चे मालिक के चरणों में करे तो न सिर्फ़ दुनियवी दुख सुख उसके नज़दीक फटकने न पावेंगे बल्कि वह हँसता खेलता हुआ जन्म मरण के चक्र से बाहर हो कर अमर व अविनाशी आनन्द को प्राप्त होगा।*
राधास्वामी




: 🙏🕉 *ईश्वर का गणित*


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      *_त्याग !!_*



_एक बार दो आदमी एक मंदिर के पास बैठे गपशप कर रहे थे । वहां अंधेरा छा रहा था और बादल मंडरा रहे थे ।_
_थोड़ी देर में वहां एक आदमी आया और वो भी उन दोनों के साथ बैठकर गपशप करने लगा ।_

_कुछ देर बाद वो आदमी बोला उसे बहुत भूख लग रही है, उन दोनों को भी भूख लगने लगी थी ।
पहला आदमी बोला मेरे पास 3 रोटी हैं, दूसरा बोला मेरे पास 5 रोटी हैं, हम तीनों मिल बांट कर खा लेते हैं।_
_उसके बाद सवाल आया कि 8 (3+5) रोटी तीन आदमियों में कैसे बांट पाएंगे ??_
_पहले आदमी ने राय दी कि ऐसा करते हैं कि हर रोटी के 3 टुकडे करते हैं, अर्थात 8 रोटी के 24 टुकडे (8 X 3 = 24) हो जाएंगे और हम तीनों में 8 - 8 टुकड़े बराबर बराबर बंट जाएंगे।_
    _तीनों को उसकी राय अच्छी लगी और 8 रोटी के 24 टुकडे करके प्रत्येक ने 8 - 8 रोटी के टुकड़े खाकर भूख शांत की और फिर बारिश के कारण मंदिर के प्रांगण में ही सो गए ।_
_सुबह उठने पर तीसरे आदमी ने उनके उपकार के लिए दोनों को धन्यवाद दिया और प्रेम से 8 रोटी के टुकड़ों के बदले दोनों को उपहार स्वरूप 8 सोने की गिन्नी देकर अपने घर की ओर चला गया ।_
_उसके जाने के बाद दूसरे आदमी ने  पहले आदमी से कहा हम दोनों 4 - 4 गिन्नी बांट लेते हैं ।_
_पहला आदमी बोला नहीं मेरी 3 रोटी थी और तुम्हारी  5 रोटी थी, अतः मैं 3 गिन्नी लुंगा, तुम्हें 5 गिन्नी रखनी होगी ।_
_इस पर दोनों में बहस होने लगी ।_
_इसके बाद वे दोनों समाधान के लिये मंदिर के पुजारी के पास गए और उन्हें  समस्या बताई तथा  समाधान के लिए प्रार्थना की ।_
_पुजारी भी असमंजस में पड़ गया, दोनों  दूसरे को ज्यादा  देने के लिये लड़ रहे है ।  पुजारी ने कहा तुम लोग ये 8 गिन्नियाँ मेरे पास छोड़ जाओ और मुझे सोचने का समय दो, मैं कल सवेरे जवाब दे पाऊंगा ।_
_पुजारी को दिल में वैसे तो दूसरे आदमी की 3-5 की बात ठीक लग रही थी पर फिर भी वह गहराई से सोचते-सोचते गहरी नींद में सो गया।_
_कुछ देर बाद उसके सपने में भगवान प्रगट हुए तो पुजारी ने सब बातें बताई और न्यायिक मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना की और बताया कि मेरे ख्याल से 3 - 5 बंटवारा ही उचित लगता है ।_

_भगवान मुस्कुरा कर बोले- नहीं,
पहले आदमी को 1 गिन्नी मिलनी चाहिए और दूसरे आदमी को 7 गिन्नी मिलनी चाहिए ।_
_भगवान की बात सुनकर पुजारी अचंभित हो गया और अचरज से पूछा- *प्रभु, ऐसा कैसे  ?*_

_भगवन फिर एक बार मुस्कुराए और बोले :_

_इसमें कोई शंका नहीं कि पहले आदमी ने अपनी 3 रोटी के 9 टुकड़े किये परंतु उन 9 में से उसने सिर्फ 1 बांटा और 8 टुकड़े स्वयं खाया अर्थात उसका *त्याग* सिर्फ 1 रोटी के टुकड़े का था इसलिए वो सिर्फ 1 गिन्नी का ही हकदार है ।_
    _दूसरे आदमी ने अपनी 5 रोटी के 15 टुकड़े किये जिसमें से 8 टुकड़े उसने स्वयं खाऐ और 7 टुकड़े उसने बांट दिए । इसलिए वो न्यायानुसार 7 गिन्नी का हकदार है .. ये ही मेरा गणित है और ये ही मेरा न्याय है  !_

_ईश्वर की न्याय का सटिक विश्लेषण सुनकर पुजारी  नतमस्तक हो गया।_

_इस कहानी का सार ये ही है कि हमारी वस्तुस्थिति को देखने की, समझने की दृष्टि और ईश्वर का दृष्टिकोण एकदम भिन्न है । हम ईश्वरीय न्यायलीला को जानने समझने में सर्वथा अज्ञानी हैं ।_
   _हम अपने त्याग का गुणगान करते है, परंतु ईश्वर हमारे त्याग की तुलना हमारे सामर्थ्य एवं भोग तौर कर यथोचित निर्णय करते हैं ।_

*_यह महत्वपूर्ण नहीं है कि हम कितने धन संपन्न है, महत्वपूर्ण यहीं है कि हमारे सेवाभाव कार्य में त्याग कितना है।

राधास्वामी
राधास्वामी
🙏🙏_*
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
।।।।।।।।।।





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