भप्तियाही चैंतीस दस का इलाका। हालाकि यह कोई आबादी वाली जगह नहीं है। कोसी नदी के पूर्वी तट पर बसे 30 झोपड़ी में कोई 100 से ज्यादा परिवारों का रहबास है यहां। एक एक झोपड़ी में चार-चार परिवारों की गुंजाइश। कोसी में समा गए बलथरबा और भुलिया गांव के लोगों का कैंप भी आप कह सकते हैं। कीचड़ भरे झोपड़ी के भीतर खाट, टूटे फुटे बर्तन, कीचड़ भरे बिछावन और जलावन के लिए कुछ लकडि़यां। इन झोपडि़यों में रह रहे लोग अपने गांवों में बड़े किसान कहलाते थे और इलाके में उनकी अपनी पूछ थी। लेकिन यहां उनकी हालत किसी भिखारियों से भी बदतर है। अमीरी की कब्र पर पनपी हुई गरीबी कितनी जहरीली होती है, उसका आभास आप यहां आकर कर सकते हैं। कोसी नदी पर बन रहे रेल और सड़क पुल की वजह से अपनी जमीन से कटने और विस्थापित होने के बाद जिस गरीबी, बेकारी, अशिक्षा और बीमारी से यहां के लोग बिलख रहे हैं वह अब उनके छोटी हो गई है। इनकी सबसे बड़ी समस्या विस्थापन के बाद बेटे -बेटी की शादी न होने की है। इस संवाददाता की मुलाकात रामप्रसाद राम से हुई। रामप्रसाद कहने लगे- ‘हमारा दुख मत पूछो साहब। गरीबी और भुखमरी से तो हम जुझ ही रहे हैं लेकिन हम अपनी बेटिया को मुंह दिखाने लायक नहीं हैं। हर बाप अपनी बेटी का हाथ पीला करना चाहता है लेकिन हमारे यहां तो कोई रिश्ता ही करना नहीं चाहता। गांव में थे तो बेटे की शादी के लिए लोगों की लाइन लगी रहती थी। हमारे पास धन के साथ ही इज्जत भी भी थी। अब तो हम भिखारी हो गए हैं हमारी बेटी का क्या होगा भगवान जाने।’ आगे बढे़ तो सोमनी से मुलाकात हो गई। सोमनी देवी देवराम सिंह की पत्नी है और बलथरबा गांव की रहने वाली थी, जो अब प्लास्टिक की झोपड़ी में रह रही है। सोमनी बूढ़ी हो चली है। बेटा जवान है लेकिन बेकार। काम है नहीं। मजदूरी के लिए पंजाब गया है। सोमनी बेटे की शादी के लिए हाथ पांव मार रही हैं लेकिन भला कोई बाप अपनी बेटी की शादी भिखारी और घरविहिन आदमी से करेगा? सोमनी को कई लड़की वालों से यही उत्तर मिला है। सोमनी कहती है कि - ‘मेरे भाग्य में बहू का मुंह देखना नहीं है। अब तो मेरा खानदान ही समाप्त हो जाएगा।’ इसी कैंप में हम सीता देवी और कौशल्या देवी से मिले। इनकी अपनी राम कहानी है। इनकी बेबसी देखकर कोई भी आदमी शर्म से पानी पानी हो जा सकता है। दोनों महिलाओं के तन पर पूरे कपड़े नहीं थे। 40 की उम्र में ही विकट बुढ़ापा की साया। कौशल्या देवी कहती है कि ‘हम अपनी जान की अब परवाह नहीं करते। एक शाम खाना खाकर दिन गुजार रहे हैं ताकि बेटी की शादी हो जाए। लेकिन कोई हमारे घर शादी करने को तैयार नहीं हैं। हमारे पति दो साल से लड़का तलास रहे हैं लेकिन हम विस्थापितों के यहां कोई शादी करने को तैयार नहीं है। पता नहीं सरकार हमें क्यों इस हालत में खड़ा किया है।’ विकास के साथ ही विनाश की कहानी तो देश के कई इलाके में देखी जा रही है, लेकिन विकास के कारण जो सामाजिक ताना बाना यहां बिगड़ रहा है, इसकी मिशाल शायद ही कहीं देखने को मिलेगा। आगे बढ़ने पर माणिक लाल मंडल मिले। दो बेटी के बाप हैं। परवाहा गांव के रहने वाले माणिक गांव में दवंग थे, धनी थे अब मजदूर भी नहीं हैं। माणिक कहने लगे - बेटी की शादी कैसे हो यही हमारी सबसे बड़ी समस्या है। अब न हमारे पास पूंजी है और शादी के लिए दहेज। दो दो बेटी की शादी कैसे होगी नहीं कह सकता। लड़के वाले हमारे यहां रिश्ता करने से कतराने लगे हैं। हमको तो नरक में भी जगह नहीं मिलेगा भाईसाहब अगर बेटी की शादी नहीं होगी? हम गांव सनपतहाडीह गांव के विस्थापितों के बीच पहुंच गए। यह गांव तन सौ घरों का बड़ा और सुखी संपन्न गांव था। अब कही इसका नामोनिशान नहीं है। सुशील मंडल कहने लगे गांव के हम जमींदार रहे हैं। 60 बीघा जमीन के मालिक थे अब भिखारी के हालत में हैं। मचान पर बैठे सुशील मंडल रोने लगे। चुप हुए तो कहने लगे दो बेटे जवान हैं और उसकी शादी नहीं हो रही है। लड़की वाले हम बेघर लोगों के यहां अपनी बेटी ब्याहने को तैयार नहीं हैं। हालाकि यह भी सच है कि हमारे पास उस लड़की को खिलाने के लिए भी कुछ नहीं हैं। लगता है अब हमारा खानदान ही समाप्त हो जाएगा। और ये हैं इंदल मंडल। बननिया पंचायत के औरही गांव के रहने वाले हैं। औरही गांव की भी जल समाधि हो चुकी हैं। इंदल कहने लगे -बेटी सयानी है और शादी करने को कोई तैयार नहीं। दूर के गांवों मे भी शादी की बात करते तो उसके लिए पैसे नहीं हैं। जब अपना ही पेट नहीं भरता तो शादी कैसे होगी? हमारी पत्नी बीमार है और उसकी अब यही तमन्ना रह गई है कि उसके जीते जी लड़की की शादी हो जाए लेकिन हम करे क्या? दयमंती देवी को चार लड़की हैं। सब सयानी। कहती है कि लगता है कि भगवान ने ही हमें दंड दिया है। हम शापित लोग हैं तभी तो कोई शादी करने को तैयार नहीं है। हमने सरकार का क्या बिगाड़ा था जो इस हालत में हमें लाकर खड़ा कर दिया। इसी गांव के देवनारायण साह और नंदलाल राम से हमारी मुलाकात हुई। साह और राम अपनी अपनी बेटी की शादी के लिए दो सालों से हाथ पैर मार रहे हैं लेकिन शादी नहीं हो रही है। राम कहते हैं ‘कि गांव में 2 बीघा जमीन थी, सोचा था कि बेचकर बेटी की शादी कर देंगे अब तो जमीन भी नहीं रही। उपर से भोजन के लाले अलग से। इस पुल ने तो हम लोगों को बर्बाद कर दिया साहब।' योगेंद्र प्रसाद मंडल। गांव इटहरी।2500 आवादी वाला इटहरी गांव कोसी की पेट में समा गया हैं। उफनते पानी के बीच कोसी नदी में इटहरी गांव के दो पेड़ नजर आ रहे हैं। पानी की तेज धार ने उन दोनों पेडों को भी झुका दिया हैं। मंडल इसी गांव के पूर्व सरपंच हैं। मंडल कहते हैं कि अब कुछ नहीं है। देखने की बात हैं। हमारी संस्कृति खत्म हो गई और हम बंजारे बन गए। हमारे गांव के और लोग कहां गए हमें ढूंढना पड़ रहा है। हम गांव में रह कर 600 मन धान उपजाते थे, 100 मन पटुआ होता था आज हम दाने-दाने को मोहताज हैं। हमारे घरों में लोग अपनी बेटी नहीं देना चाहते और न ही हमारे घरों की लड़की से कोई शादी करना चाहता है। यह कहां का और कैसा न्याय है? ऐसी ही कहानी 58 गांव के सभी घरों में है। बेचन शर्मा, अनिता देवी, बुधेसर राम और प्रकाश मंडल की आपबीती सीने को चीरने वाली है। इसी गांव के गोपाल राम कहने लगे-किसी के लिए यह विकास का काम हो रहा होगा लेकिन हमारे लिए तो विनाश से कम नहीं हैं। हम डूब गए होते और मर गए होते तो अच्छा होता कि ऐसा दिन हमें देखने को नहीं मिलता। गांव छोड़कर भागे तो यहां झोपड़ी में आए तो यहां फिर पानी में डूब गए। सरकार तो हमे बेकार समझ ही रही है अब दूसरे गांव के लोग भी हमे हीन समझते हैं और हमारे साथ संबंध नहीं रखना चाहते। हमसे जीने का अधिकार छिन लिया गया है। हम अपनी बात किसे सुनाएं? कौन सुन रहा है हमारी आवाज?
Saturday, February 11, 2012
शादी के लिए बिलखते गांव / अखिलेश अखिल
भप्तियाही चैंतीस दस का इलाका। हालाकि यह कोई आबादी वाली जगह नहीं है। कोसी नदी के पूर्वी तट पर बसे 30 झोपड़ी में कोई 100 से ज्यादा परिवारों का रहबास है यहां। एक एक झोपड़ी में चार-चार परिवारों की गुंजाइश। कोसी में समा गए बलथरबा और भुलिया गांव के लोगों का कैंप भी आप कह सकते हैं। कीचड़ भरे झोपड़ी के भीतर खाट, टूटे फुटे बर्तन, कीचड़ भरे बिछावन और जलावन के लिए कुछ लकडि़यां। इन झोपडि़यों में रह रहे लोग अपने गांवों में बड़े किसान कहलाते थे और इलाके में उनकी अपनी पूछ थी। लेकिन यहां उनकी हालत किसी भिखारियों से भी बदतर है। अमीरी की कब्र पर पनपी हुई गरीबी कितनी जहरीली होती है, उसका आभास आप यहां आकर कर सकते हैं। कोसी नदी पर बन रहे रेल और सड़क पुल की वजह से अपनी जमीन से कटने और विस्थापित होने के बाद जिस गरीबी, बेकारी, अशिक्षा और बीमारी से यहां के लोग बिलख रहे हैं वह अब उनके छोटी हो गई है। इनकी सबसे बड़ी समस्या विस्थापन के बाद बेटे -बेटी की शादी न होने की है। इस संवाददाता की मुलाकात रामप्रसाद राम से हुई। रामप्रसाद कहने लगे- ‘हमारा दुख मत पूछो साहब। गरीबी और भुखमरी से तो हम जुझ ही रहे हैं लेकिन हम अपनी बेटिया को मुंह दिखाने लायक नहीं हैं। हर बाप अपनी बेटी का हाथ पीला करना चाहता है लेकिन हमारे यहां तो कोई रिश्ता ही करना नहीं चाहता। गांव में थे तो बेटे की शादी के लिए लोगों की लाइन लगी रहती थी। हमारे पास धन के साथ ही इज्जत भी भी थी। अब तो हम भिखारी हो गए हैं हमारी बेटी का क्या होगा भगवान जाने।’ आगे बढे़ तो सोमनी से मुलाकात हो गई। सोमनी देवी देवराम सिंह की पत्नी है और बलथरबा गांव की रहने वाली थी, जो अब प्लास्टिक की झोपड़ी में रह रही है। सोमनी बूढ़ी हो चली है। बेटा जवान है लेकिन बेकार। काम है नहीं। मजदूरी के लिए पंजाब गया है। सोमनी बेटे की शादी के लिए हाथ पांव मार रही हैं लेकिन भला कोई बाप अपनी बेटी की शादी भिखारी और घरविहिन आदमी से करेगा? सोमनी को कई लड़की वालों से यही उत्तर मिला है। सोमनी कहती है कि - ‘मेरे भाग्य में बहू का मुंह देखना नहीं है। अब तो मेरा खानदान ही समाप्त हो जाएगा।’ इसी कैंप में हम सीता देवी और कौशल्या देवी से मिले। इनकी अपनी राम कहानी है। इनकी बेबसी देखकर कोई भी आदमी शर्म से पानी पानी हो जा सकता है। दोनों महिलाओं के तन पर पूरे कपड़े नहीं थे। 40 की उम्र में ही विकट बुढ़ापा की साया। कौशल्या देवी कहती है कि ‘हम अपनी जान की अब परवाह नहीं करते। एक शाम खाना खाकर दिन गुजार रहे हैं ताकि बेटी की शादी हो जाए। लेकिन कोई हमारे घर शादी करने को तैयार नहीं हैं। हमारे पति दो साल से लड़का तलास रहे हैं लेकिन हम विस्थापितों के यहां कोई शादी करने को तैयार नहीं है। पता नहीं सरकार हमें क्यों इस हालत में खड़ा किया है।’ विकास के साथ ही विनाश की कहानी तो देश के कई इलाके में देखी जा रही है, लेकिन विकास के कारण जो सामाजिक ताना बाना यहां बिगड़ रहा है, इसकी मिशाल शायद ही कहीं देखने को मिलेगा। आगे बढ़ने पर माणिक लाल मंडल मिले। दो बेटी के बाप हैं। परवाहा गांव के रहने वाले माणिक गांव में दवंग थे, धनी थे अब मजदूर भी नहीं हैं। माणिक कहने लगे - बेटी की शादी कैसे हो यही हमारी सबसे बड़ी समस्या है। अब न हमारे पास पूंजी है और शादी के लिए दहेज। दो दो बेटी की शादी कैसे होगी नहीं कह सकता। लड़के वाले हमारे यहां रिश्ता करने से कतराने लगे हैं। हमको तो नरक में भी जगह नहीं मिलेगा भाईसाहब अगर बेटी की शादी नहीं होगी? हम गांव सनपतहाडीह गांव के विस्थापितों के बीच पहुंच गए। यह गांव तन सौ घरों का बड़ा और सुखी संपन्न गांव था। अब कही इसका नामोनिशान नहीं है। सुशील मंडल कहने लगे गांव के हम जमींदार रहे हैं। 60 बीघा जमीन के मालिक थे अब भिखारी के हालत में हैं। मचान पर बैठे सुशील मंडल रोने लगे। चुप हुए तो कहने लगे दो बेटे जवान हैं और उसकी शादी नहीं हो रही है। लड़की वाले हम बेघर लोगों के यहां अपनी बेटी ब्याहने को तैयार नहीं हैं। हालाकि यह भी सच है कि हमारे पास उस लड़की को खिलाने के लिए भी कुछ नहीं हैं। लगता है अब हमारा खानदान ही समाप्त हो जाएगा। और ये हैं इंदल मंडल। बननिया पंचायत के औरही गांव के रहने वाले हैं। औरही गांव की भी जल समाधि हो चुकी हैं। इंदल कहने लगे -बेटी सयानी है और शादी करने को कोई तैयार नहीं। दूर के गांवों मे भी शादी की बात करते तो उसके लिए पैसे नहीं हैं। जब अपना ही पेट नहीं भरता तो शादी कैसे होगी? हमारी पत्नी बीमार है और उसकी अब यही तमन्ना रह गई है कि उसके जीते जी लड़की की शादी हो जाए लेकिन हम करे क्या? दयमंती देवी को चार लड़की हैं। सब सयानी। कहती है कि लगता है कि भगवान ने ही हमें दंड दिया है। हम शापित लोग हैं तभी तो कोई शादी करने को तैयार नहीं है। हमने सरकार का क्या बिगाड़ा था जो इस हालत में हमें लाकर खड़ा कर दिया। इसी गांव के देवनारायण साह और नंदलाल राम से हमारी मुलाकात हुई। साह और राम अपनी अपनी बेटी की शादी के लिए दो सालों से हाथ पैर मार रहे हैं लेकिन शादी नहीं हो रही है। राम कहते हैं ‘कि गांव में 2 बीघा जमीन थी, सोचा था कि बेचकर बेटी की शादी कर देंगे अब तो जमीन भी नहीं रही। उपर से भोजन के लाले अलग से। इस पुल ने तो हम लोगों को बर्बाद कर दिया साहब।' योगेंद्र प्रसाद मंडल। गांव इटहरी।2500 आवादी वाला इटहरी गांव कोसी की पेट में समा गया हैं। उफनते पानी के बीच कोसी नदी में इटहरी गांव के दो पेड़ नजर आ रहे हैं। पानी की तेज धार ने उन दोनों पेडों को भी झुका दिया हैं। मंडल इसी गांव के पूर्व सरपंच हैं। मंडल कहते हैं कि अब कुछ नहीं है। देखने की बात हैं। हमारी संस्कृति खत्म हो गई और हम बंजारे बन गए। हमारे गांव के और लोग कहां गए हमें ढूंढना पड़ रहा है। हम गांव में रह कर 600 मन धान उपजाते थे, 100 मन पटुआ होता था आज हम दाने-दाने को मोहताज हैं। हमारे घरों में लोग अपनी बेटी नहीं देना चाहते और न ही हमारे घरों की लड़की से कोई शादी करना चाहता है। यह कहां का और कैसा न्याय है? ऐसी ही कहानी 58 गांव के सभी घरों में है। बेचन शर्मा, अनिता देवी, बुधेसर राम और प्रकाश मंडल की आपबीती सीने को चीरने वाली है। इसी गांव के गोपाल राम कहने लगे-किसी के लिए यह विकास का काम हो रहा होगा लेकिन हमारे लिए तो विनाश से कम नहीं हैं। हम डूब गए होते और मर गए होते तो अच्छा होता कि ऐसा दिन हमें देखने को नहीं मिलता। गांव छोड़कर भागे तो यहां झोपड़ी में आए तो यहां फिर पानी में डूब गए। सरकार तो हमे बेकार समझ ही रही है अब दूसरे गांव के लोग भी हमे हीन समझते हैं और हमारे साथ संबंध नहीं रखना चाहते। हमसे जीने का अधिकार छिन लिया गया है। हम अपनी बात किसे सुनाएं? कौन सुन रहा है हमारी आवाज?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
पूज्य हुज़ूर का निर्देश
कल 8-1-22 की शाम को खेतों के बाद जब Gracious Huzur, गाड़ी में बैठ कर performance statistics देख रहे थे, तो फरमाया कि maximum attendance सा...
-
संत काव्य : परंपरा एवं प्रवृत्तियां / विशेषताएं ( Sant Kavya : Parampara Evam Pravrittiyan / Visheshtayen ) हिंदी साहित्य का इतिहास मुख्...
-
प्रस्तुति- अमरीश सिंह, रजनीश कुमार वर्धा आम हो रहा है चुनाव में कानून तोड़ना भारतीय चुनाव पूरे विश्व में होने वाला सबसे बड़ा चुनाव ह...
-
Radha Soami From Wikipedia, the free encyclopedia This article is about the Radha Soami Satsang (Radha Swami Satsang). For Radha Swa...
No comments:
Post a Comment