Sunday, February 5, 2012

फीकी पड़ती मनमोहनी चमक

By | February 1, 2012 at 10:21 pm | No comments | राज दरबार
हिमांशु शेखर
जब 2004 में सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री का पद ठुकराकर वित्त मंत्री रहे मनमोहन सिंह को इस पद पर बैठाया था तो पूरे पंजाब में खुशियों की लहर दौड़ गई थी. लोगों को इस बात का बड़ा गर्व हुआ कि उनके यहां का कोई नेता पहली बार प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचा. पंजाब के अलावा देश के अन्य हिस्से में रहने वाले सिखों को भी मनमोहन सिंह का देश के सबसे बड़े राजनीतिक पद तक पहुंचना बहुत अच्छा लगा था. यही वजह थी कि बिहार के गया में रहने वाले सिखों की पगड़ी का रंग अचानक आसमानी हो गया था. इसी रंग की पगड़ी मनमोहन सिंह भी पहनते हैं.
पंजाब में मनमोहन सिंह के असर का विस्तार 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन के तौर पर दिखा. कांग्रेस ने प्रदेश के 13 लोकसभा चुनावों में से आठ पर जीत दर्ज की. 2009 के चुनाव में कांग्रेस राज्य में यह कहते हुए वोट मांग रही थी कि एक पंजाबी को दोबारा प्रधानमंत्री पद पर देखना है तो कांग्रेस के पक्ष में मतदान करो. उस चुनाव के नतीजे यह साबित करते हैं कि पंजाब के लोगों ने कांग्रेस की इस अपील को माना और मनमोहन सिंह को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने के मकसद से कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया. लेकिन ढाई साल में पंजाब में काफी चीजें बदल गई हैं.
इस बार के विधानसभा चुनाव में मनमोहन सिंह की चमक फीकी पड़ती दिखी. कांग्रेस ने पंजाब में उनकी दो चुनावी रैलियां आयोजित करने की घोषणा की थी. ये रैलियां अमृतसर और लुलिधाना में होनी थीं. लेकिन इनमें से सिर्फ अमृतसर की रैली ही हो पाई और पार्टी को लुधियाना की रैली रद्द करनी पड़ी. पंजाब में मनमोहन सिंह से लोगों का किस कदर मोहभंग हो गया है, इसकी पुष्‍टि इसी बात से हो जाती है कि अमृतसर की रैली के लिए लगाई गई 10,000 कुर्सियों में से तकरीबन 7,000 कुर्सियां खाली रहीं और लुधियाना की रैली रद्द करनी पड़ी. कांग्रेस आधिकारिक तौर पर इसके लिए मौसम को जिम्मेदार ठहरा रही है लेकिन इन रैलियों के अयोजन से जुड़े कांग्रेस प्रचार समिति के वरिष्ठ लोग नाम नहीं छापने की शर्त पर यह बता रहे हैं कि असली वजह तो मनमोहन सिंह की घटी लोकप्रियता है.
राज्य में कांग्रेस की सरकारों में मंत्री रहे और प्रचार समिति के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं, ‘पंजाब के लोगों और खास तौर पर सिखों में मनमोहन सिंह का अब वह असर नहीं रहा जो 2009 में था. उस समय सिखों ने मनमोहन सिंह के नाम पर कांग्रेस को वोट दिया था. लेकिन अब मनमोहन सिंह के नाम पर वोट देने की बात तो दूर अब उन्हें सुनने तक के लिए कोई तैयार नहीं है. यही वजह है कि अमृतसर की रैली में लोगों की संख्या काफी कम रही और लुधियाना की रैली रद्द करनी पड़ी.’
कांग्रेस की तरफ से लुधियाना की रैली रद्द करने के लिए मौसम को वजह बताने के सवाल पर वे कहते हैं कि अमृतसर और लुधियाना के मौसम में कोई फर्क तो है नहीं इसलिए मौसम के मसले को मनमोहन सिंह की नाकामी को छिपाने के लिए बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है. पंजाब के आम मतदाताओं में मनमोहन सिंह की घटी लोकप्रियता से चुनाव में उतरे उम्मीदवार भी वाकिफ हैं और पंजाब प्रदेश कांग्रेस समिति भी. यही वजह है कि उम्मीदवारों की तरफ से प्रदेश कांग्रेस समिति को स्टार प्रचारकों की जो सूची दी जा रही थी उनमें मनमोहन सिंह का जिक्र नहीं था.
इस बात की पुष्‍टि खुद प्रदेश कांग्रेस समिति कार्यालय में काम करने वाले एक पदाधिकारी ने की. वे कहते हैं, ’2009 के लोकसभा चुनावों में भी स्टार प्रचारकों के कार्यक्रम तय करने का काम हम लोग ही कर रहे थे. उस समय हर उम्मीदवार यह चाहता था कि उसके पक्ष में प्रचार करने एक बार मनमोहन सिंह उसके क्षेत्र में आ जाएं. लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में ऐसे उम्मीदवारों की संख्या बेहद कम है.’ यह पूछे जाने पर कि क्या लुधियाना रैली रद्द होने पर फिर से प्रधानमंत्री को पंजाब में चुनावी रैली संबोधित करने को क्यों नहीं बुलाया गया, वे कहते हैं, ‘उम्मीदवारों की तरफ से प्रधानमंत्री की रैली के लिए अनुरोध आ नहीं रहे थे इसलिए प्रधानमंत्री ने कोई और चुनावी रैली नहीं संबोधित की.’
पंजाब में प्रधानमंत्री की घटती लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि राज्य में कांग्रेस के प्रचार के लिए जो पोस्टर-बैनर लगे उनमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी, अमरिंदर सिंह तो हैं लेकिन मनमोहन सिंह ज्यादातर पोस्टरों-बैनरों में गायब दिखे. जबकि 2009 के चुनावों में कांग्रेस के हर पोस्टर-बैनर पर मनमोहन सिंह दिख जाते थे.
अहम सवाल यह है कि आखिर मनमोहन सिंह से पंजाब के लोगों के मोहभंग की वजह क्या है? इस बारे में पूर्व कांग्रेसी मंत्री कहते हैं, ‘पहली बात तो यह कि पंजाब के लोगों को यह लगता है कि पिछले आठ साल से प्रधानमंत्री रहने के बावजूद मनमोहन सिंह ने सूबे के लिए कुछ नहीं किया. जब वे प्रधानमंत्री बने थे तो यहां के लोगों को लगा था कि अब प्रदेश की तसवीर बदलेगी. मनमोहन सिंह से मोहभंग की दूसरी बड़ी वजह यह है कि लोगों के बीच में यह धारणा बन गई है कि वे कहने को तो प्रधानमंत्री हैं लेकिन उनके हाथ में कुछ नहीं है और उन्हें हर फैसला सोनिया गांधी से पूछकर करना पड़ता है. आठ साल में मनमोहन सिंह की अपनी एक अलग छवि नहीं बन पाने से यहां के लोगों पर उनका असर खत्म हुआ है. तीसरी वजह यह है कि पंजाब का समाज वैसे लोगों को पसंद करता आया है जो मजबूती से अपनी बात रखने के लिए जाने जाते हों और हर मोर्चे पर मजबूत दिखते हैं. मनमोहन सिंह इस मामले में भी सफल नहीं दिखते. इन वजहों से यहां के लोगों की नजर से मनमोहन सिंह उतर गए हैं और उम्मीदवारों ने भी उन्हें चुनाव प्रचार के लिए बुलाना नहीं चाहा.’
विपक्षी दल मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधानमंत्री कहकर राष्ट्रीय राजनीति में उन पर निशाना साधते हैं और यही खेल पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान जमकर चला. प्रधानमंत्री की रैली के एक दिन बाद ही भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने पंजाब में एक चुनावी रैली में कहा, ‘मनमोहन सिंह एक कमजोर प्रधानमंत्री हैं और इसी वजह से कांग्रेस भी कमजोर है. संयुक्त प्रगतिशील एक कमजोर गठबंधन है और निर्णय प्रक्रिया में कांग्रेस और सहयोगी दलों ने बार-बार हस्तक्षेप करके प्रधानमंत्री पद की गरिमा को कम किया है.’ जेटली के बयान से साफ है कि मनमोहन को लेकर पंजाब के लोगों में जो धारणा बनी है उसे हवा देने का काम विपक्ष भी कर रहा है.
हालांकि, जब मनमोहन सिंह अमृतसर चुनावी रैली संबोधित करने पहुंचे तो उन्होंने यहां के लोगों का मन मोहने की पूरी कोशिश की. उन्होंने इस शहर में गुजारे दिनों को याद किया और स्‍थानीय लोगों को यह संदेश देने के लिए कि वे उनके बीच के ही हैं, उन्होंने अपना भाषण पंजाबी में दिया. मनमोहन सिंह ने केंद्र सरकार द्वारा पंजाब के लिए किए गए कई कार्यों को भी गिनाया. उन्होंने बताया कि वे चाहते थे कि अमृतसर में केंद्रीय विश्वविद्यालय बने लेकिन राज्य सरकार ने इसके लिए जमीन नहीं दी. प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि उन्होंने पंजाब के लिए और भी कई योजनाओं को लागू कराने की कोशिश की लेकिन राज्य सरकार सहयोग नहीं कर रही.
इसके बावजूद प्रदेश के राजनीति को जानने वाले लोग और खुद कांग्रेस के अंदर के लोग इस बात को मानने को तैयार नहीं हैं कि प्रधानमंत्री की इन बातों ने 30 जनवरी को हुए चुनाव में मतदाताओं के मत डालने के निर्णय पर कोई असर डाला होगा. इस बात की पुष्‍टि कांग्रेस उम्मीदवारों की तरफ से मनमोहन सिंह की रैली के लिए प्रदेश कांग्रेस समिति के पास अनुरोध नहीं आना भी करता है.
चंडीगढ़ में यह बात भी चल रही है कि प्रधानमंत्री ने सुरिंदर सिंगला और राजबीर चौधरी को टिकट दिलाने के लिए पैरवी की थी लेकिन इनमें से किसी को भी टिकट नहीं मिला. सिंगला जालंधर कैंट या जालंधर सेंट्रल और चौधरी सुजानपुर से टिकट मांग रहे थे. प्रधानमंत्री की पैरवी की बावजूद इन्हें टिकट नहीं दिए जाने पर जब अमरिंदर सिंह से सवाल पूछा गया तो उन्होंने न तो प्रधानमंत्री की पैरवी की पुष्‍टि की और न ही इसे खारिज किया.
एक तरफ तो मनमोहन सिंह के कहने पर दो टिकट भी नहीं दिए गए वहीं राहुल गांधी की सिफारिश पर राज्य में छह उम्मीदवारों को टिकट मिला. इससे यह संकेत भी मिलता है कि मनमोहन सिंह ने न सिर्फ पंजाब के लोगों के बीच अपनी लोकप्रियता गंवाई है बल्‍कि प्रदेश के नेताओं के बीच भी उनका असर कम हुआ है.

हिमांशु शेखर रांची में जन्मे और बिहार के औरंगाबाद के एक गांव में पले-बढ़े। दसवीं तक की पढ़ाई कई स्कूलों में घूमते-फिरते हुई। इसके बाद गंगा किनारे बसी नगरी पटना से बारहवीं तक की पढ़ाई करके यमुना तीरे पत्रकार बनने का ख्वाब संजोए पहुंच गए। दिल्ली विश्वविद्यालय में पत्रकारिता में दाखिला। पहले साल की पढ़ाई के बाद जनसत्ता में इंटर्नशिप करने गए और वहां से लिखने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह कई अखबारों और पत्रिकाओं तक पहुंच गया। भारतीय जनसंचार संस्थान यानी आईआईएमसी से पत्रकारी का पाठ पढऩे के बाद आजकल आर्थिक पत्रकारिता में हाथ आजमा रहे हैं।

1 comment:

  1. प्रिय हिमांशु लेख vvvvvg लगा।बहुत खूब। 09868568501
    अनामी शरण बबल

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