Wednesday, December 19, 2012

सामाजिक सरोकारों से जुडा एक कवि सुरेश नीरव








बी.एल. गौड़

(संपादकः गौड़ टाइम्स)
हिंदी साहित्य में समय-समय पर अनेक शब्द साधक हुए हैं,जिन्होंने अपनी-अपनी प्रतिभा के अनुसार साहित्य को संपन्न और गरिमा-मंडित किया है।
साहित्य में मैंने एक दौर ऐसा भी देखा है जब कभी वाचिक परंपरा और लेखन विधा दोनों में कवि समानरूप से स्वीकार्य होते थे। धीरे-धीरे मुद्रित
शब्द और मंच के बीच दूरियां बढ़ने लगीं। क्योंकि मंच के व्यावसायिक आकर्षण ने एक ऐसी जमात को मंच पर लाकर खड़ा कर दिया जो फूहड़पन और
लतीफेबाजी के बल पर जनता के बीच मज़मेबाजी करने लगी। और इनके लिए तालियां कविताओं के नापने का पैमाना बन गया। दूसरी तरफ पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों के जरिए ऐसी कविताएं लिखी जाने लगीं जो नीरसता की हद तक गूढ़ होने लगीं। नतीज़ा यह हुआ कि संभ्रांत और कविता के सुधि अनुरागियों के
लिए ऐसी कविताएं बोझिल व्यायाम साबित होने लगीं। कविता के इस दो तरफा नुकसान के दौर में फिर भी कुछ काव्य हस्ताक्षर ऐसे निकले जिन्होंने कविता की वाचिक और अकादमिक परंपरा के बीच सेतु का कार्य किया। अपसंस्कृति के कुहासे में निकले ऐसे ही एक समझदार संस्कृति के चेहरे का नाम है-पंडित सुरेश नीरव। मैंने जब-जब उन्हें सुना यह देखकर मैं चकित,विस्मित और मुदित हुआ कि किस तरह कविता की वैचारिक शुचिता और श्रुति-माधुर्य को नीरवजी ने हासिल किया है। कैसे इनका व्यक्तित्व अपनी अग्रज पीढ़ी और अनुज पीढ़ी दोनों को मोहित-सम्मोहित कर लेता है। ओशो रजनीश,मुज़फ्फ़र रज्मी,आचार्य
निशांत केतु-जैसे वरिष्ठ शब्द साधकों और बशीर बद्र, क़ाज़ी तनवीर-जैसे शायरों सहित लगभग तीन सौ से अधिक पुस्तकों की भूमिका लिखने का हुनर इस बात की ताकी़द करता है कि रचना-जगत में पंडित नीरव को वाकई गंभीरता से लिया जाता है। मैं स्वयं नीरवजी से उम्र में वरिष्ठ हूं और यह दावा तो नहीं कर सकता कि कि मैंने हिंदी-उर्दू के सभी श्रेष्ठ रचनाकारों को सुना है मग़र विनम्रतापूर्वक यह जरूर कह सकता हूं कि अपनी उम्र के लंबे सफ़र में काफी नामचीन और प्रतिष्ठित कवियों-शायरों को सुनने का मुझे सौभाग्य मिला है। फिर भी पंडित नीरव को सुनने में मुझे हमेशा एक अलग तरह की सारस्वत आनंद की अनुभूति हुई है। शब्दों की उत्पत्ति और भारतीय दर्शन की वैदिक गंध और विज्ञान के शब्दों का अभिनव संयोजन वो जिस तरह करते
हैं,उनका यह सृजन-लाघव उन्हें अन्य रचनाकारों की क़तार से अलग खड़ा कर देता है। मशहूर शायर बशीर बद्र ने इनके लिए एक जगह ठीक ही लिखा है कि- पंडित नीरव ने विज्ञान के ऐसे तमाम शब्दों को ग़ज़लों में ढाल दिया है कि लगता ही नहीं कि ये कभी बाहरी लफ्ज़ रहे होंगे। ऐसे वैज्ञानिक और दार्शनिक चेतना से लैस कवि को जब–जब मैंने सुना मेरी इच्छा हुई कि मैं इनके बारे में कभी कुछ कहूं,कभी कुछ लिखूं।

पिछले दिनों साहित्य अकादेमी ने दिल्ली में पंडित सुरेश नीरव का एकल काव्य-पाठ आयोजित किया था। मैं भी वहां ससम्मान आमंत्रित था। मैंने नीरवजी को पद्य में सुना। फिर प्रश्नोत्तरकाल में रचनाकारों के उन के दिये उत्तरों को सुना। उन्होंने जो उत्तर दिए उसे सुनने के बाद मुझसे रहा नहीं गया। मैंने अपने वक्तव्य में सार्वजनिकरूप से कहा कि- मैंने अपने जीवन में अनेक कवियों को सुना है मग़र मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि पंडित नीरव-जैसे विद्वान को मैंने आज तक नहीं सुना। मेरे इस कथन की ताक़ीद करते हुए हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष विमलेश कांति ने कहा- अक्सर कवि विद्वान नहीं होते और विद्वान कवि नहीं होते मग़र सुरेश नीरव में ये मणि-कंचन संयोग विद्यमान है। तब मुझे लगा कि जैसा मैं सोचता हूं वैसा में अकेला नहीं सोचता हूं। और इस तरह यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं कि वे आज के दौर के एक ज़रूरी कवि हैं जिनमें समाज को कविता के जरिए एक संदेश देने की ललक है। और सामर्थ्य भी। वे यशस्वी हों..मेरी अनेक मंगल कामनाएं।

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