Monday, February 27, 2023
Saturday, February 25, 2023
मनुष्य होने की कला
एक बार सूफी फकीर फरीद बनारस के निकट होकर गुजर रहे थे, जहां कबीर रहते थे। फरीद के शिष्यों ने कहा- "यदि आप कबीर से भेंट करें तो आप दोनों का मिलना हम सभी के लिए अद्भुत, रोमांचकारी, आनन्दमय और आशीर्वाद स्वरूप होगा।"
ऐसा ही कबीर और उनके शिष्यों के मध्य भी हुआ। जब उन्होंने सुना कि फरीद उधर से गुजर रहे हैं। इसलिए उन्होंने कबीर से कहा- "यदि आप फरीद साहब से कुछ दिन आश्रम में रुकने का आग्रह करें तो हम सभी के लिए यह बहुत अच्छा होगा।"
फरीद के शिष्यों ने कहा- "आप दोनों के मध्य हुए वार्तालाप को सुनने का हमें महान अवसर मिलेगा। हम लोग वह सब कुछ सुनने को बहुत आतुर हैं कि बुद्धत्व को उपलब्ध हुए दो संत एक दूसरे से क्या कहते हैं।"
अपने शिष्यों की बात सुनकर फरीद हंसा और उसने कहा- "हम दोनों मिलेंगे तो जरूर, लेकिन मैं नहीं सोचता कि वहां कोई बातचीत भी होगी, लेकिन अच्छा है। तुम लोग खुद देखना, क्या होता है?"
कबीर ने अपने शिष्यों से कहा- " से जाकर कहो कि वह यहां पधारें और विश्राम करें, लेकिन जो भी पहले बोलेगा वह यह सिद्ध करेगा कि वह बोध को उपलब्ध नहीं है।"
फरीद आए कबीर ने उनका स्वागत किया। वे दोनों हंसे। उन्होंने एक दूसरे का आलिंगन किया और मौन बैठे रहे। फरीद वहां दो दिन रुके और वे कबीर के साथ कई घंटे साथ बैठे रहे। दोनों के ही शिष्य बहुत बेचैनी से प्रतीक्षा कर रहे थे कि दोनों के मध्य कुछ बातचीत हो। कोई कुछ तो कहे, लेकिन कोई एक शब्द तक न बोला। तीसरे दिन फरीद जब चलने लगे तो कबीर ने उन्हें विदा किया। वे दोनों फिर हंसे। एक दूसरे से आलिंगनबद्ध हुए और फिर अलग हो गए।
विदा होने के क्षण फरीद के शिष्यों ने उन्हें चारों ओर से घेर कर कहा- "सब कुछ व्यर्थ रहा। समय ही बरबाद हुआ। हम लोगों को आशा थी कि आप दोनों के मिलने पर कुछ अभूतपूर्व घटेगा। पर कुछ भी तो नहीं हुआ। आप अचानक वहां इतने गुंगे क्यों बन गए। आप हम लोगों से तो बहुत-सी बातें करते हैं।"
फरीद ने उत्तर दिया- "वह सभी जो मैं जानता हूं वह भी जानते हैं। कुछ भी कहने को रहा ही नहीं। मैंने उनकी आंखों में झांका और वह वहीं दिखाई दिए जहां मैं हूं। जो कुछ उन्होंने देखा, वही सब कुछ मैंने भी देखा। जो कुछ उन्होंने महसूस किया, मैंने भी वैसा ही महसूस किया। अब वहां कहने को कुछ था ही नहीं।"
- मनुष्य होने की कला
Thursday, February 16, 2023
सतसंग में पढ़ा गया बचन-
*रा धा स्व आ मी!
15-02-23-आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे:- (18.4.31 सनीचर)-
आज शाम को स्कूल हॉस्टल्स की जानिब(ओर) से पार्टी थी। लेकिन खाने का इन्तजाम ठीक न था। मालूम होता है कि रसोईघर के मुन्तजिमान(प्रबंधकों) अपने घर में भी ऐसा ही खाना खाते हैं।
रात के सतसंग में सवाल पेश(प्रस्तुत) हुआ कि सतगुरु को मत्था टेकने से क्या लाभ होता है। जवाब में बतलाया गया कि यह रोजाना तजरबे(अनुभव) की बात है कि अगर सड़क पर जाते हुए कोई आदमी हमारे पास से गुजरे तो हम कुछ परवा नहीं करते लेकिन अगर मालूम हो जाये कि वह आदमी हमारा अजीज(प्रिय) या बुजुर्ग(बड़ा) है तो हम फ़ौरन(तुरन्त) खास तवज्जुह (ध्यान) के साथ उसकी जानिब मुखातिब(आकृष्ट) होते हैं और यथा योग्य बरताव करते हैं। अगर वह हमारा बुजुर्ग है तो फ़ौरन मारे अदब व प्यार के झुक जाते हैं। ऐसे ही जब किसी को तलाश करने पर सच्चे सतगुरु मिल जायें और साधन करने और उनकी मेहर होने पर उनकी पूरी पहचान आ जाये तो मारे प्रेम के बेसाख्ता(बेधड़क) प्रेमी जन उसके चरनों में लिपट जाता है। जब तक सतगुरु की पहचान नहीं आती तब तक उसके मन में तरह तरह के सवालात उठते हैं और वह महज दूसरों की देखा देखी सतगुरु के चरन छूने की कोशिश करता है। और जब अपनी कोशिश में कामयाब(सफ़ल) हो जाता है तो सिवाय इसके कि उसने अपने मन को खुश कर लिया दूसरा कोई फ़ायदा नहीं देखता। बरखिलाफ़ (विपरीत) इसके अधिकारी पुरुष सतगुरु के बदन से स्पर्श होने पर वही असर महसूस करता है जो एक प्रेमी अपने प्रीतम से मिलने पर महसूस करता है या लोहे का एक टुकड़ा चुम्बक से स्पर्श करने पर महसूस करता है। उस असर का लफ्जों(शब्दों) में बयान करना नामुमकिन(असम्भव) है।
🙏🏻रा धा स्व आ मी🙏🏻
रोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*
Saturday, February 11, 2023
गुरु से बड़ा कोई नहीं है।*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
*गुरु ही मेरी शरण है।*
*मैं केवल गुरु की पूजा करता हूं।*
*मैं हमेशा गुरु के साथ हूं।*
*गुरु को प्रणाम।*
*गुरु से बड़ा कोई नहीं है।*
*मैं गुरु की संतान हूं।*
*मेरी बुद्धि गुरु पर टिकी है।*
*हे गुरु ! मेरी रक्षा करो !!*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Friday, February 10, 2023
रवि अरोड़ा की नजर से......
तेंदुआ आला रे / रवि अरोड़ा
लीजिए एक बार फिर आ गया तेंदुआ। न आने की पहले कोई ख़बर दी और न ही आने से पहले इजाज़त ली। मुंह उठाया और आ गया । इस बार मूड भी ठीक नहीं था उसका । यही वज़ह हो सकती है जो उसने दस दस लोगों को लहुलुहान कर दिया । हालांकि आया तो वो पहले भी कई बार है मगर इस बार का उसका आना किसी को भी अच्छा नहीं लगा । वैसे अभी तक तो यह भी पता नहीं चला है कि आख़िर वो आया क्यों था ? कोई कह रहा है कि कोर्ट में तारीख़ पर आया था तो कोई कह रहा है कि किसी वकील से मिलने आया था । किसी किसी का अनुमान है कि पेशी पर आए किसी कैदी से मिलाई को आया होगा और कोई कोई दूर की यह कौड़ी भी ले आया कि किसी अफसर को ज्ञापन व्यापन देने आया था मगर किसी ने चाय पानी पूछना तो दूर बैठने को भी नहीं कहा और वन विभाग वालों को बुला कर उल्टा पकड़वा और दिया ।
वैसे रहस्य तो यह भी है कि हर बार वो राज नगर में ही क्यों आता है ? क्या वो पिछले जन्म में कोई अधिकारी वधिकारी था और अपना पुराना घर देखने बार बार यहां आता है ? कहीं ऐसा तो नहीं उसका पेंशन वेंशन जैसा कोई काम अटका हुआ है और उसी के लिए वो बड़े लोगों के यहां चक्कर काट रहा है ? इसका मतलब तो उसके संज्ञान में है कि कलक्टर, पुलिस कमिश्नर, सिटी कमिश्नर, सारे एडीएम-एसडीएम, मंत्री, संत्री, सांसद और कई कई एमएलए यहीं रहते हैं। अगले पिछले अधिकारियों की गिनती करें तो आधी कॉलोनी उन्ही से भरी पड़ी है। फिर तो ठीक है, ऐसे में फरियाद लेकर बेचारा और कहां जाता ? बेशक कवि नगर में भी एमएलए, एमपी और मेयर रहते हैं मगर सिंगल विंडो सिस्टम के जमाने में फरियादी को राजनगर से बढ़िया और भला क्या होता ? अन्य किसी छुटभईया कॉलोनी में तो उसके जाने का खैर कोई मतलब ही नहीं था । वहां तो ले देकर पार्षद ही रहते हैं और पार्षदों का काम ही है टहलवाना, यह बात तेंदुए को पता होगी ।
अदालत परिसर में बुधवार को दिन दहाड़े आए तेंदुए के पक्ष में सबसे वजनी दलील अब तक यही मिली है कि वह अवश्य ही जंगल की समस्याओं से संबंधित कोई शिकायत लेकर आया होगा । अब सारी समस्याओं का ठेका हम मनुष्यों ने ही ले रखा है क्या ? जानवरों की कोई समस्या नहीं हो सकती क्या ? बेशक महंगाई, नाली खड़ंजे और भ्रष्टाचार जैसी शिकायतें उसकी न हों मगर उनकी समस्याएं तो उससे भी बड़ी हो सकती हैं। लेकिन यहीं तेंदुआ मात खा गया । उसकी सारी समस्याओं की जड़ आदमी है और उसका समाधान भी वह आदमी से ही चाहता है । कहीं ऐसा तो नहीं कि उसके दिमाग में कुछ बदला वदला जैसा चल रहा हो ? हम उसके घर में घुस गए और वो हमारे में घुस आया ? यदि ऐसा है तो यह नई मुसीबत है। पहले ही कबूतरों, बंदरों और कुत्तों ने जीना हराम कर रखा है और अब ये तेंदुआ और आ गया । कुत्ते बंदर तो चलो जैसे तैसे झिल भी गए मगर इस तेंदुओं का क्या करेंगे ? ये तो बात बाद में करता है और पंजा पहले मारता है। वैसे साहब लोगों! वो हर बार आपकी ही कालोनी में आता है तो समाधान भी आपको ही ढूंढना पड़ेगा । हो सके तो घायलों को भी कुछ तसल्ली देना जो समझ ही नहीं पा रहे कि वो घर से कचहरी गए थे या कॉर्बेट नेशनल पार्क ? देखो प्लीज़! अब आप झोला उठा कर चल देने की बात मत करना ।
Sunday, February 5, 2023
शाम को खेत पर हुई एनाउंसमेंट
****** सूचना ******
*सभी सत्संगी भाइयों और बहनों को सूचित किया जाता है की -
*दयालबाग की बनी चप्पल स्लीपर व सैंडल में रबड़ का सोल लगाया जाता है जोकि बिजली के झटके ( शाक ) से बचाव करता है ।*
*अतः फ्रिज व अन्य बिजली के उपकरणों को प्रयोग करते समय आप दयालबाग की बनी चप्पल स्लीपर या सैंडल का प्रयोग अवश्य करें।*
इस संदर्भ में एक सेल -
*सोमवार 6 फरवरी से प्रातः 11:00 से 3:00 तक शू फैक्ट्री प्रांगण जो कि एम आई में है 25% कम कीमत पर लगाई जा रही है, सभी सत्संगी भाई और बहन इसका लाभ उठाएं।*
******
Friday, February 3, 2023
सत्संगी होने के फर्ज
रा धा स्व आ मी
सत्संगी होने के नाते हम सभी का फर्ज बनता है अपने सत्संग में जितना हो सके योगदान दें चाहे किसी प्रकार की सेवा हो या सत्संगी भाई बहन बच्चों को किसी प्रकार की शिक्षा जैसे सिलाई बुनाई पढ़ाई संगीत पाक कला आदि सिखाने की सेवा हो । job के लिए भी विशेष ध्यान दें ।
यदि आप सतसंग में किसी पद पर हैं तो लोगों को जोड़ने और आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत रहें ।
कोई सत्संगी आगे बढ़ कर शिक्षा सेवा देना चाहे तो प्रस्ताव स्वीकार करें अपने से बड़े पदाधिकारी से बात करे ना की सेवा का हाथ बढ़ाने वाले व्यक्ति को ये कहे की आप स्वयं उच्चाधिकारी से बात कर लें 😄
ऐसा ही बोलना है तो आप बीच में क्या सिर्फ पोस्ट पर बैठने भर के लिए हैं ?😒
अधिकार पोस्ट मिलते ही याद हो जाते हैं और कर्तव्य भूल जाते हैं तो आप सतसंग में सेवा योग्य नही हैं ।👎
ब्रांच में किसी से मनमुटाव होने के कारण भी यदि ब्रांच का नुकसान किए बिना आप सब को साथ ले कर चलते हैं विन्रम रहते हैं तभी आप मालिक द्वारा दी गई सेवा में उत्त्रीण होते हैं ।👍
रा धा स्व आ मी🙏
Thursday, February 2, 2023
वचन :
'यदि संसार में आज शान्ति नहीं है तो यह भौतिक सम्पत्ति की कमी के कारण नहीं, प्रत्युत् इसका कारण सही और गलत में विभेद करके सही निर्णय करने की शक्ति का अभाव है। हम अपनी आध्यात्मिक माप को स्वीकार करने में और अपने अंदर दैवी चिनगी जाग्रत करने में असफल रहे। जब तक हम सच्चे मालिक को सबका पिता और सब मनुष्यों को अपना भाई नहीं समझते तब तक न हम एक दुसरे पर विश्वास करेंगे और न परम पिता के कर्तव्य परायण बच्चों की भांति व्यवहार करेंगे। इस वास्ते आप अच्छी तरह से अपने मस्तिष्क को अनुशासित करें और अपनी आत्मा को जाग्रत करें।' ( पूज्य डॉ एम परमबी लाल साहब - 01.01.1978)
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