Thursday, February 20, 2020

मिश्रित संदर्भ



 प्रस्तुति -  आत्म स्वरूप / संत शरण
[20/02, 20:07] +91 94162 65214: चींटी कितनी छोटी ! उसको यदि मुंबई से पूना यात्रा करनी हो, तो लगभग ३-४ जन्म लेना पडेगा । लेकिन यही चींटी पूना जाने वाले व्यक्ति के कपड़े पर चढ़ जाये, तो सहज ही ३-४ घंटे में पूना पहुंच जाएगी कि नहीं  !
ठीक इसी प्रकार अपने प्रयास से भवसागर पार करना कितना कठिन ! पता नहीं कई जन्म लग सकते हैं । इसकी अपेक्षा यदि हम गुरू का हाथ पकड लें और उनके बताये सन्मार्ग पर  श्रद्धापूर्वक चलें, तो सोचिये कितनी सरलता से वे आपको  सुख, समाधान व अखंड आनंदपूर्वक भव सागर पार करा सकते हैं !!
😇🙏😇🙏😇🙏😇🙏😇
*वे लोग कितने सौभाग्यशाली हैं, जिनके जीवन में गुरु है ।*
[21/02, 07:10] +91 97830 60206: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजानावाकियात-13 जुलाई 1932-बुद्धवार:- आज खान बहादुर अख्तर आदिल साहब मिलने के लिये तशरीफ लाये। आप बडे नेकदिल व मिलनसार है। आपसे मिलकर तबीयत को अत्यधिक सुख हासिल होता है। मैने जिक्र किया कि अखबारों से मालूम हुआ कि पिछले दिनों मेरी गैर हाजिरी में मौलाना शौकत अली साहब आगरा आये थे। मौलाना मोहम्द अली साहब ने दयालबाग देखने के लिये ख्वाहिश जाहिर की थी।बेहतर होता कि उनकी ख्वाहिश मौलाना शौकत अली साहब पूरी कर देते ।                            मिस्टर हुई सुपरीटेंडिंग इंजीनियर, व मिस्टर पूरन चंद  एग्जीक्यूटिव इंजनीयर पव्लिक हैल्थ डिपार्टमेंट भी तशरीफ लाये। मालूम हुआ कि दयालबाग की नालियों की स्कीम अब करीबन तैयार है। कुल व्यय डेढ लाख से ऊपर होगा। लेकिन एक मर्तबा खर्च कर देने के बाद तमाम बस्ती को मक्खियों मच्छरों से कतई छुटकारा हासिल हो जायेगा और सब घरों में फ्लश सिसटम कायम हो जायेगा। जो लोग पश्चिम के ढंग सीखना व अपनाना पसंद करते है उन्हे खर्च की ज्यादा परवाह नही करनी चाहिए। मरगिब के ढंग अगर विस्तृत पैमाने पर अख्तियार किये जावें तो अलबत्ता व्यय कम पडता है। इसलिये शुरु में डेढ लाख का व्यय ज्यादा मालूम पडता है लेकिन आयंदा चलकर यानी दयालबाग कॉलोनी के बढ जाने पर इस इंतजाम की कद्र मालूम होगी।🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
[21/02, 07:10] +91 97830 60206: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-सतसंग के उपदेश-भाग 2-(27)-【मनुष्य शरीर सिर्फ हाड, माँस व चाम का ढेर नही है।】:- संतमत की तालीम का एक बुनियादी उसूल यह है कि मनुष्य-शरीर निहायत अमूल्य है, इसकी पूरी कदर करनी चाहिए। इस शरीर को सिर्फ संसार के विषय भोगने व औलाद पैदा करने में सर्फ करना परले दर्जे की अभाग्यता है। इस शरीर के अंदर ऐसा इन्तिजाम है कि अगर मनुष्य कोशिश करे तो देवता, हँस और परमहँस गति को प्राप्त हो सकता है। किसी सिद्ध पुरुष की सेवा में हाजिर रहकर यह भेद बखूबी समझ में आ सकता है। जैसे लौकिक रहस्यों के समझने व सीखने के लिये काबिल उस्ताद की शागिर्दी जरुरी है ऐसे ही इस रहस्य के समझने व सीखने के लिये सच्चे सतगुरु की शागिर्दगी लाजिमी है।।    बाज लोग कहते है कि देखने में मनुष्यशरीर हड्डियों व चमडे का ढेर ही तो है मगर ऐसी दृष्टि रखने वाले पुरूषों के लिये मनुष्म जीवन सिर्फ वासनाओं व इच्छाओं में बर्तने का जरिया है। गम्भीर दृष्टि वाले पुरुष जानते है कि हड्डियों और चमडे को जान देने वाला जौहर, जिसे सुरत या आत्मा कहते है, इस रचना में बहुमूल्य जौहर है। इस जिस्म के सूराखों या रौजनों की मार्फत मनुष्य रचना के पदार्थों व कुदरत की शक्तियों से मेल कर सकता है और जिस्म के अंदर कायम गुप्त चक्रों या कमलों के जगा लेने पर इसके अंदर उँचे घाट की शक्तियाँ जाग जाती है, यहाँ तक कि आत्मा व सच्चे कुल मालिक का साक्षात्कार होकर जन्म मरण का खात्मा और अमर आनंद व अविनाशी सुख की प्राप्ति हो जाती है इसलिये संतमत तालीम देता है कि ऐसा अमूल्य शरीर पाकर उसे वृथा खोना नहीं चाहिये।क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
[21/02, 07:10] +91 97830 60206: **परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे:- संत महात्मा अनेक रीति से समझाते हैं और तरह-तरह के डर नरको और 84 के दिखलाते हैं और अमर सुख और आनंद का, जो संतों के निज देश में प्राप्त होगा, भेद और जुगत उसकी प्राप्ति की बताते हैं। और किसी कदर यह मन भी अपने बर्ताव की परख करके मालूम कर लेता है कि फलां बात में उसका नुकसान है या फायदा, फिर भी झोका नुकसान ही की तरफ खाता है और फायदे के काम की सुध नहीं लाता है। ऐसा जो मन है उसकी तरफ से परमार्थी को खूब होशियार रहना चाहिए और चाहिए कि सच्चे मालिक राधास्वामी और सतगुरु की दया बल लेकर सत्संग खूब होशियारी के साथ करें और सुरत शब्द के अभ्यास को बराबर शौक के साथ जारी रखें, तो आहिस्ता आहिस्ता कोई अर्से में मुमकिन है कि मन दुरुस्त हो जावेगा। सिवाय इसके और कोई जतन मन की दुरुस्ती का नहीं है।।                               जवानी में मन की तरंगों का जोर का रोकना अलबत्ता किसी कदर कठिन है, पर अधेड़ अवस्था और जबकि बुढापे की अवस्था शुरू होती है मन और इंद्रियों का भोग विलास की तरफ से रोकना बहुत कठिन है। पर जो सच्चा शौकीन और अनुरागी है तो राधास्वामी दयाल की दया से उसका यह काम जवानी में भी किसी कदर आसानी के साथ बन सकता है, जो उसको सतगुरु का संग भाग से मिल जाए।।                           सच तो यह है कि हर एक जीव पर फर्ज है कि मन की सँभाल जिस कदर हो सके जरूर करें। वाजिबी और मुनासिब तौर पर तो उसका बर्ताव दुरुस्त है पर किसी बात में ज्यादती नहीं होनी चाहिए, नहीं तो परमार्थ की कार्रवाई और तरक्की में खलल पड़ेगा तो जो काम की थोड़े दिन में बन सकता है उसको बहुत अरसा लगेगा। क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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