Monday, March 16, 2020

सत्संग के मिश्रित प्रसंग और बचन





प्रस्तुति - कृति - सृष्टि - दृष्टि - अमी - मेहर



[17/03, 05:49] +91 97830 60206:

*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-रोजाना वाक्यात-

7 अगस्त 1932:- रविवार-

तीसरे पहर विद्यार्थीयों के सत्संग में आज फिर कुरान मजीद से कुछ हिस्सा पढ़ा गया ।पैगंबर साहब के लिए पीढियों से मूर्तिपूजक व मामूली समझ बूझ वाले अरबों में को खुदा के प्रकाश का अस्तित्व का अनुमान कराना नेहा एक मुश्किल काम था मगर सूरत नूर में जिस खूबसूरती से यह विषय बयान हुआ है निहायत काबिले तारीफ है। अब विद्यार्थी अमृत बचन पढ़ना चाहते हैं लेकिन चूँकि यह निहायत मुश्किल किताब है इसलिए मशवरा दिया गया कि राधास्वामी मत संदेश पढी जावे। उन्होंने मंजूर कर लिया लेकिन  बहुत क्रोध के अधीन। काश हमारे संस्थाओं से जो विद्यार्थी निकले उन्हें मालूम रहे कि दुनिया में जितने सच्चे रसूल ऋषि व संत सबके सब सच्चाई का उपदेश करते थे । सबकी गरज इंसानों को लाभ पहुंचाना थी और सब की तालीम जानने को दूर करने के लायक है।।                                          क्षत्रिय महासभा के एक उपदेशक साहब अपने साथियों के साथ तशरीफ लायें। बातों बातों में क्षत्रियों की बहादुरी का चल पड़ा। उन्होंने फरमाया -देखो हमारे क्षत्रिय मुस्कुराते हुए जेल जाते हैं और जेल की तकलीफ उठाते हैं। जवाब दिया गया बेहतर होता कि वह जेल में रहकर वक्त नष्ट करने के बजाय किसी हस्तकलाँ को उन्नयन देते या कोई अविष्कार करते। टॉडस राजस्थान व कहानियां-ए-हिंद में राजपूत रानियों के बडे दर्दनाक किस्से दर्ज है और लोग गर्व के साथ कहते हैं कि हजारों राजपूत रानियों ने मुसलमानों के कब्जे में जाना मंजूर करने के बजाय अपने स्वयं को जलाकर खाक कर दिया उन रानियों की कुर्बानीनियों में कतई शक नहीं है लेकिन उन्होंने सख्त कमजोरी दिखलाई। बेहतर होता कि अपने मर्दों की तरह आक्रमणकारियों से लड़ती हुई हलाक होती। मरना तो उन्हे था ही लेकिन अगर सौ पचास दुश्मन मारकर मरती तो ज्यादा लाभकारी व प्रभावशाली होता। यह दुरुस्त है कि जान कुर्बान कर देना हर किसी के बस की बात नहीं है लेकिन व्यर्ध जान गवाँ देना बहादुर का चिन्ह नहीं है। अगर आप कोई ऐसा काम करें जिससे दूसरों को जबर्दस्त फायदा पहुंचे या खुद आपका भला हो और उस सिलसिले में आपके जान का खतरे में पढ़ना आवश्यक हो और आप खुशी से अपनी जान खतरे में डाले और जान चली जाए तो बिना शुबह आप बहादुरी करते हैं और आप सच्चे बहादुर है।  इसके अलावा गौर करना चाहिए कि हर वक्त एक ही कसम के हथियारों से लड़ाई नहीं लड़ी जाती । हिंदुस्तान की मौजूदा मुसीबतों का कारण तालीम और  योग्यता की कमी है। इस वक्त क्षत्रियों के जिम्में फर्ज है कि इस दिशा में कदम बढ़ा कर बहादुरी दिखलावें। रात के सतसंग में बहुत देर तक सन्यासी साहब के सवालात के जवाबात दिए गए लेकिन उनको इत्मीनान नहीं हुआ। उनको भी समझ में नहीं आता कि वेदों के बाहर भी कोई इल्म हो सकता है।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻*


[17/03, 05:49] +91 97830 60206:

 *परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

सत्संग के उपदेश -भाग 2 -(36)-

राधास्वामी 【 भजन के लिए समय मुकर्रर करने की जरूरत क्यों है?】

- एक प्रेमी जन का प्रश्न है कि भजन किस वक्त करना चाहिए । हिंदू भाई दो काल या त्रिकाल संध्या करते हैं, मुसलमान भाई पांच वक्त नमाज पढ़ते हैं, ऐसे ही इसाई भाई मुकर्रर वक्तों पर मास पढ़ते हैं और सुमरनी फेरते हैं और सिख भाई सुबह व शाम के वक्त मुकर्ररा वाणी का पाठ करते हैं इसलिए सवाल होता है कि क्या मालिक की याद के लिए कोई खास वक्त मुकर्रर करना लाजमी है ।।         इस सवाल का जवाब यह है कि सुबह का वक्त अभ्यास के लिए सबसे योग्य है क्योंकि उस वक्त आमतौर पर दुनिया खामोश होती है और रात भर आराम करने पर चुपचाप रहने से बदन में थकान नहीं रहती। खाना हजम हो चुकने से मैदा हल्का रहता है और दिमाग काफी अर्सा आराम में रहने से दुनिया के झमेलों की याद से आजाद होता है लेकिन इसके यह मानी नहीं है कि किसी दूसरे वक्त अभ्यास करना ही नहीं चाहिए । क्योंकि अभ्यास खास किस्म की अंतरी हालत पैदा करने की गरज से किया जाता है और दुनिया के कम काज का असर हमारे जिस्म  व मन को अंतरी हालत की प्राप्ति के नाकाबिल बना देता है इसलिए रात को 5-7 घंटे दुनिया से अलग  रहने पर हम कुदरतन अभ्यास के लिए किसी कदर काबिल हो जाते हैं लेकिन अगर कोई शख्स दिन में कामकाज करते हुए भी अपनी तबीयत व तवज्जह पर काबू रखें और वक्तन फवक्तन प्रेम अंग में आकर तवज्जुह अंतर्मुख जोड़ता रहे तो ऐसा शख्स दिनभर अभ्यास में गुजार सकता है।

क्रमशः

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


: **परम गुरु हुजूर महाराज-

प्रेम पत्र भाग -1-( 12)-

【 भेद नाम का】:-

नाम की दो किस्में है- धुन्यात्मक और वर्णात्मक। धुन्यात्मक  उसको कहते हैं जिसकी धुन घट घट के आकाश में आप ही आप हो रही है और वर्णनात्मक जो जबान से बोला जावे और लिखने में आवे। वर्णनात्मक नाम धुन्यात्मक नाम का प्रकट करने वाला है, यानी उसका स्वरूप है, जिस कदर कि बोलने में आ सकता है ।।                    धुन्यात्मक नाम के तीन दर्दे हैं, उसी मुआफिक जैसे की कुल रचना के संतों में तीन दर्जे मुकर्रर किए हैं ।पहले दर्जे का धनात्मक नाम वह है कि जो निर्मल चेतन देश यानी संतो के देश में प्रकट हो रहा है ।और वह राधास्वामी नाम है कि जो कुल और सच्चे मालिक का नाम है और जो आदि धार के साथ अनामी पुरुष से प्रगट हुआ जिसकी धुन ऊंचे से ऊँचे  देश में, जिसको राधास्वामी धाम कहते हैं, आप ही आप हो रही है। इस नाम के अर्थ यह है कि राधा आदि सुरत या आदि धुन या आदि धारा का नाम है और स्वामी कुल मालिक जिसमें से कि वह धुन या धारा निकली है । दूसरा नाम इसी दर्जे में सत्तनाम सत्तपुरुष है , जहां से दो धारें रे निरंजन और जोत की निकली और जिन्होंने नीचे उतर कर ब्रह्मांड की रचना करी।

 क्रमशः

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
।।।।।।।।।।।।।।




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