Tuesday, February 9, 2021

जाप जाप कृष्ण जाप की महिमा ))))

 *(((( कृष्ण जाप की महिमा ))))

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एक बार एक गांव में बहुत से महात्मा आकर यज्ञ कर रहे थे और वह वृक्षों के पत्तों पर चंदन से श्री कृष्ण का नाम लिखकर पूजा कर रहे थे।

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वह जगह गांव से बाहर थी। वहां एक आदमी अपनी बकरियों को रोज घास चराने जाता था। 

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साधु हवन यज्ञ करके वहां से जा चुके थे, लेकिन वह पत्ते वहीं पड़े रह गए...

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तभी घास चरती बकरियों में से एक बकरी ने वो कृष्ण नाम रूपी पत्तों को खा लिया।

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जब आदमी सभी बकरियों को घर लेकर गया तो सभी बकरियां अपने बाड़े में जाकर मैं मैं करने लगी.. 

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लेकिन वह बकरी जिसने कृष्ण नाम को अपने अंदर ले लिया था, वह मैं मैं की जगह कृष्ण कृष्ण करने लगी क्योंकि उसके अंदर कृष्ण वास करने लगे थे। 

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उसका मैं यानी अहम तो अपने आप ही दूर हो चुका था !

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जब सब बकरियां उसको कृष्ण कृष्ण कहते सुनती हैं तो वह कहती हैं, यह क्या कह रही हो? अपनी भाषा छोड़ कर यह क्या बोले जा रही है, मैं मैं बोल। 

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वह कहती है, कृष्ण नाम रूपी पत्ता मेरे अंदर चला गया। मेरा तो "मैं" भी चला गया। 

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सभी बकरियां उसको अपनी भाषा में बहुत कुछ समझाती परंतु वह टस से मस ना हुई और कृष्ण कृष्ण रटती रही। 

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सभी बकरियों ने यह निर्णय किया कि इसको अपनी टोली से बाहर ही कर देते हैं। वह सब उसको सींग और धक्के मार कर बाड़े से बाहर निकाल देती हैं । 

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सुबह जब मालिक आता है तो उसको बाड़े से बाहर देखता है, तो उसको पकड़ कर फिर अंदर कर देता है 

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परंतु बकरियां उसको फिर सींग मार कर बाहर कर देती हैं। 

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मालिक को कुछ समझ नहीं आता यह सब इसकी दुश्मन क्यों हो गई। 

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मालिक सोचता है कि जरूर इसको कोई बीमारी होगी जो सब बकरियां इसको अपने पास भी आने नहीं दे रही, वह सोचता है कि यह ना हो कि एक बकरी के कारण सभी बीमार पड़ जाए।

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वह रात को उस बकरी को जंगल में छोड़ देता है। सुबह जब जंगल में अकेली खड़ी बकरी को एक व्यक्ति जो कि चोर होता है देखता है...

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वह उस बकरी को लेकर जल्दी से भाग जाता है और दूर गांव जाकर उसे किसी एक किसान को बेच देता है।


किसान जो कि बहुत ही भोला भाला और भला मानस होता है उसको कोई फर्क नहीं पड़ता की बकरी मै मैं कर रही है या कृष्ण कृष्ण। 

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वह बकरी सारा दिन कृष्ण कृष्ण जपती रहती। अब वह किसान उस बकरी का दूध बेच कर अपना गुजारा करता है। 

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कृष्ण नाम के प्रभाव से बकरी बहुत ही ज्यादा और मीठा दूध देती है। दूर-दूर से लोग उसका दूध उस किसान से लेने आते हैं। 

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किसान जो की बहुत ही गरीब था बकरी के आने और उसके दूध की बिक्री होने से उसके घर की दशा अब सुधरने लगी।

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एक दिन राजा के मंत्री और कुछ सैनिक उस गांव से होकर गुजर रहे थे। उसको बहुत भूख लगी तभी उन्हें किसान का घर दिखाई दिया किसान ने उनको बकरी का दूध पिलाया। 

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इतना मीठा और अच्छा दूध पीकर मंत्री और सैनिक बहुत खुश हुए।  

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उन्होंने किसान को कहा कि हमने इससे पहले ऐसा दूध कभी नहीं पिया।

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किसान ने कहा यह तो इस बकरी का दूध है जो सारा दिन कृष्ण कृष्ण करती रहती है। मंत्री उस बकरी को देखकर और कृष्ण नाम जपते देखकर हैरान हो गया। 

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वो किसान का धन्यवाद करके वापस नगर में राज महल चले गए। 

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तभी उन दिनों राजमाता जो कि काफी बीमार थी, बहुत उपचार के बाद भी वह ठीक ना हुई। 

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राजगुरु ने कहा माताजी का स्वस्थ होना मुश्किल है, अब तो भगवान इनको बचा सकते हैं। 

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राजगुरु ने कहा कि अब आप माता जी के पास बैठकर ज्यादा से ज्यादा ठाकुर जी का नाम लो, 

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राजा जो कि काफी व्यस्त रहता था वह सारा दिन राजपाट संभाले या माताजी के पास बैठे ?

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नगर में किसी के पास भी इतना समय नहीं की राजमाता के पास बैठकर भगवान का नाम ले सके... 

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तभी मंत्री को वह बकरी याद आई जो कि हमेशा कृष्ण कृष्ण का जाप करती थी। मंत्री ने राजा को इसके बारे में बताया। 

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पहले तो राजा को विश्वास ना हुआ परंतु मंत्री जब राजा को अपने साथ उस किसान के घर ले गया तो राजा ने बकरी को कृष्ण नाम का जाप करते हुए सुना तो वह हैरान हो गया। 

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राजा किसान से बोला कि आप यह बकरी मुझे दे दो। 

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किसान बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़कर राजा से बोला कि इसके कारण ही तो मेरे घर के हालात ठीक हुए, अगर मैं यह आपको दे दूंगा तो मैं फिर से भूखा मरूँगा। 

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राजा ने कहा कि आप फिकर ना करो, मैं आपको इतना धन दे दूंगा कि आप की गरीबी दूर हो जाएगी।

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अब किसान ने खुशी-खुशी बकरी को राजा को दे दिया। अब तो बकरी राज महल में राजमाता के पास बैठकर निरंतर कृष्ण कृष्ण का जाप करती। 

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कृष्ण नाम के कानों में पढ़ने से और बकरी का मीठा और स्वच्छ दूध पीने से राजमाता की सेहत में सुधार होने लगा और धीरे-धीरे वह बिल्कुल ठीक हो गई।

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अब तो बकरी राज महल में राजा के पास ही रहने लगी। तभी उसकी संगत से पूरा राजमहल कृष्ण कृष्ण का जाप करने लगा।अब पूरे राज महल और पूरे नगर में कृष्ण रूपी माहौल हो गया।

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एक बकरी जो कि एक पशु है कृष्ण नाम के प्रभाव से  सीधे राज महल में पहुंच गई और उसकी मैं यानी अहम खत्म हो गई...

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तो क्या हम इंसान निरंतर कृष्ण का जाप करने से हम भव से पार नहीं हो जाएंगे हमे अपने आराध्य देव की शरण में जाना चाहिए।

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  ((((((( जय जय श्री राधे )))))))

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