Tuesday, April 5, 2011

याद नहीं


 याद नहीं
आज से 21 साल पहले आज ही के दिन शहर छोड़ना पड़ा था। केवल एक माह के बाद। 21 साल गुजर गए। जमाना बदल गया मगर नहीं बदला तो यादों का सिलसिला। क्या रिश्ता था कि फिर कभी अलग नहीं हो पाए। यादें भी मानों कल सी लगती है। कल यानी कभी ना आने वाला कल । एक तरफ तकरार इंतजार तो एक तरफ इंकार। आज भी लगता है मानों कुछ होकर भी नहीं है या कुछ नहीं होकर भी सब कुछ है। बस साथ नहीं है, मगर यादों से कब अलग हुए ? याद नहीं।
शुक्र है कि देख लिया चेहरा
शायद वो पूरी तरह याद नहीं था।
महज एक इतफाक नहीं था यार मिलना।
सैकड़ों से मिलकर नाम तक भूल गए मगर,
भूलना चाहकर भी नहीं भूल पाना किसी को
क्या है पता नहीं ?
क्या है ये , पता है किसी को ?
फिर भी 21 साल हो गए (यानी यादें भी अब बालिग हो गई)
मगर
अगले 21 साल में क्या होगा ?
हमें पता है।
य़ादें तो रहेंगी, हमेशा ......
मगर हम नहीं होगें..... हम नहीं होगें।
 पक्का
हम नहीं होगें।

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