Saturday, July 23, 2022

यथार्थ प्रकाश

 

राधास्वामी सम्वत् 204

अर्ध-शतक 101       सोमवार  जुलाई 25, 2022     अंक 37       दिवस 1-7




यथार्थ-प्रकाश


भाग पहला


परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज


(प्रेम प्रचारक दिनांक 18 जुलाई, 2022 से आगे)


राधास्वामी (’रा-धा-स्व-आ-मी’) नाम का तथ्य (असलियत)


         परम पूज्य हुज़ूर प्रो. प्रेम सरन सतसंगी साहब द्वारा की गई व्याख्याः- रा-सहस्त्रदल कमल (निरंजन), धा- त्रिकुटी (ओम), स्व-सुन्न/महासुन्न मानसरोवर, झील, आ-विशुद्ध परमार्थिक गति, मी-अनामी पुरुष द्वारा संचालित अन्तिम परमार्थी यथार्थ (गतिशील परमार्थी लाभ से सुसज्जित अलख पुरुष-अगम पुरुष एवं अतीव गतिशील निज-धाम राधास्वामी दर्बार)


            40. राधास्वामी-मत की जान राधास्वामी (’रा-धा-स्व-आ-मी’) नाम है। यह वह नाम है जो रचना के आदि में प्रकट हुआ और जिसकी ध्वनि चेतनता के प्रत्येक केन्द्र अर्थात् रचना के प्रत्येक पुरुष के अन्तर के अन्तर निरन्तर हो रही है, या यों कहो कि जहाँ कहीं आत्मा अर्थात् सुरत-शक्ति क्रियावान् है वहाँ इस नाम की ध्वनि विद्यमान है। वर्तमान अवस्था में मनुष्य की सुरत तन तथा मन के कोशों के भीतर गुप्त है, आत्मा की शक्ति से जान पाकर उसके तन तथा मन क्रियावान् हो रहे हैं और उनके क्रियावान् होने से उनके गुण अर्थात् स्वभाव का प्रादुर्भाव हो रहा है परन्तु उनके अन्तर के अन्तर चैतन्य मण्डल अर्थात् घाट पर, जहाँ सुरत की धारें प्रकट हैं, राधास्वामी (’रा-धा-स्व-आ-मी’) नाम की ध्वनि हो रही है। इसी प्रकार ओ3म्, सोहम् तथा सत्यपुरुष आदि के अन्तर के अन्तर इस नाम की ध्वनि विद्यमान है और राधास्वामी-धाम में, जो रचना का सबसे ऊँचा स्थान है, गति प्राप्त होने पर प्रत्येक अभ्यासी को इस नाम की ध्वनि सुनाई देती है। इसलिए इस नाम या शब्द को समस्त रचना की जान कहते हैं।


            41. रचना से पहले ये सब पदार्थ, जो अब दृष्टिगोचर हो रहे हैं, गुप्त अवस्था में थे अर्थात् पिण्ड, ब्रह्माण्ड, चन्द्र, सूर्य आदि कुछ भी प्रकट न थे, एक कुलमालिक ही था और उसकी शक्ति अपने केन्द्र में समाई हुई थी। संसार में प्रत्येक शक्ति की दो अवस्थाएँ होती हैं- एक गुप्त, दूसरी प्रकट। साधारण रूप से पत्थर के कोयले में अग्नि गुप्त है और प्रज्ज्वलित करने पर वह प्रकट हो जाती है और ताँबे तथा जस्ते में बिजली गुप्त है पर उचित सम्बन्ध स्थापित करने पर उसकी धार जारी होकर विद्युत्-शक्ति का विकास हो जाता है, इसी प्रकार चैतन्य शक्ति की भी दो अवस्थाएँ हैं- एक गुप्त, दूसरी प्रकट। रचना से पहले चैतन्य शक्ति अपने केन्द्र में गुप्त थी। इसी को शून्यसमाधि की अवस्था कहते हैं। धीरे धीरे एक समय आया जब कुलमालिक अर्थात् चैतन्य शक्ति के भण्डार में क्षोभ (हिलोर) होने पर आदि चैतन्य धार प्रकट हुई और जोकि शक्ति के प्रत्येक आविर्भाव के साथ साथ एक शब्द (-समूह) प्रकट होता है इसलिए भण्डार की हिलोर से ‘स्वामी’ शब्द स्व-आ-मी (3 शब्द) और आदि चैतन्य धार से ‘राधा’ (रा-धा) दो शब्द-समूह प्रकट हुआ।

दूसरे शब्दों में यों कहा जा सकता है कि रचना का कार्य आरम्भ होने पर (अर्थात् चैतन्य शक्ति के गुप्त अवस्था से प्रकट रूप धारण करने पर) कुलमालिक से आदिशब्द प्रकट हुआ जिसे मनुष्य की बोली में उच्चारण करने पर ‘राधास्वामी’ (’रा-धा-स्व-आ-मी’) पाँच शब्द-समूह बनता है। इसी कारण यह नाम कुलमालिक का निजनाम माना जाता है।


(क्रमशः)

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