Tuesday, March 7, 2023

गुरु और #शिष्य

 

प्रस्तुति - उषा रानी / राजेंद्र प्रसाद सिन्हा 


जिस प्रकार एक शिष्य गुरु की खोज में रहता है उसी प्रकार है एक गुरु भी समर्पित शिष्य की खोज में रहता है। गुरु चयन करता है उन शिष्यों का जो गुरु परम्परा का मान बढ़ा सकें, गुरु द्वारा दिये ज्ञान का सदुपयोग करे। एक गुरु तंत्र से सबंधित ज्ञान देने से पहले काफी परीक्षाएं लेता है तब ही तन्त्र ज्ञान आरम्भ होता है। तन्त्र का ज्ञान गलत हाथों में चले जाने से गुरु ज्ञान और गुरु परम्परा दोनो का अपमान होता है। आज यदि तन्त्र विद्याएं लुप्त हो रही है इसका कारण एक ही है कि गुरु को समर्पित शिष्य नही मिलते जिसको गुरु ज्ञान दे सके। 





आज का शिष्य सोचता है कि गुरु के पास जाते ही सिद्धि शक्तिया दे दे, तन्त्र ज्ञान कोई मिठाई नही होती कि जो मांगने आये उसे ही दे दिया। यदि एक शिष्य भी गलत मार्ग पर जाता है तो उसमे गुरु और गुरु परंपरा का अपमान होता है। कोई शिष्य को नही देखता की उसने क्या किया है सब गुरु और गुरु परम्परा को देखते है। 


आज भी बहुत से सिद्ध योगी, साधक है जिसके पास दुर्लभ ज्ञान है लेकिन योग्य शिष्य को ही देते है।

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