Tuesday, March 7, 2023

संत तुलसी साहब हाथरस वाले व दक्कनी बाबा

 

प्रस्तुति - नवल किशोर प्रसाद / कुसुम सिन्हा 


तुलसी साहिब 'साहिब पंथ' के प्रवर्तक थे।  ये  बाजीराव पेशवा द्वितीय के बड़े भाई थे। काफ़ी कम आयु में ही इन्होंने घर त्याग दिया था।


असल नाम श्यामराव, दक्षिणी ब्राह्मण| पूना के महाराज के युवराज (बड़े बेटे ) थे | पिता के बार-बार आग्रह करने के बावजूद गद्दी पर बैठने के एक दिन पहले राज-पाट छोड़कर निकल गए| कई साल तक भ्रमण करने के पश्चात आख़िरकार अलीगढ जिले के हाथरस में क़याम किया| तुलसी दास अक्सर हाथरस से बाहर कम्बल ओढ़े और हाथ में डंडा लिए बाहर शहरों में चले जाया करते थे| जोगिया नामक गाँव में जो हाथरस से एक मील की दूरी पर है में, अपना सत्संग शुरू किया| तुलसी दास के अनुयायी हज़ारों की तादाद में हिंदुस्तान के कई शहरों में मौजूद हैं | 

तुलसी साहब ने हृदयस्थ 'कंज गुरु' या 'पद्मगुरु' को ही अपना पथ-निर्देशक माना है। 'घटरामायन', 'शब्दावली', 'रत्नासागर' और 'पद्यसागर' (अपूर्ण) इनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं।

'घट रामायन' के अनुसार काशी में रहते हुए इन्हें मुसलमान, जैनी, गुसाईं, पण्डित, संन्यायी, कबीरपंथी और नानकपंथी साधुओं से आध्यात्मिक प्रश्नों पर वाद-विवाद करना पड़ा था। इन्होंने अपने को पूर्व जन्म में गोस्वामी तुलसीदास बताया है और अपना जीवन-वृत्तांत भी दिया है.

 उन्होंने तीर्थ यात्रा तथा अन्य बाहरी धर्म कर्म की व्यर्थता तथा आंतरिक रूहानी अभ्यास की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया है। अपने ग्रंथ रत्नसागर में आपने सृष्टि के रहस्य, कर्म-सिद्धांत, मृत्यु और वक़्त के पूर्ण गुरु की महिमा तथा महत्त्व के बारे में चर्चा की है।

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