Friday, July 28, 2023

रोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*


*रा-धा-स्व-आ-मी*

रोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*


*25-07-23- आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन-कल से आगे:-*


 *(7-9-31 सोम)* 


*आज फिर सुबह व शाम के वक़्त सवाल व जवाब का सिलसिला (क्रम) जारी रहा। बाहरी साहब हिसार के एक वकील है। गीता से बड़ा प्रेम रखते हैं और दिल के बहुत साफ हैं। आपका सबसे जबरदस्त संशय यह है कि यह कैसे हो सकता है कि रा-धा-स्व-आ-मी मत के बमूजिब (अनुसार ) कुल मालिक ने अभी कलजुग में जीवों पर खास दया फ़रमाई। क्या पिछले जुगों में कोई भी दया के लायक़ न था? जवाब में बतलाया गया कि मालिक की दया हमेशा से कुल जीवों पर रही है और रहेगी। लेकिन दया जीवों के अधिकार के हिसाब से होती है। 

ज्यों ज्यों जमाना गुज़रता है जीवों का अधिकार बढ़ता जाता है इसलिये दया विशेष होती जाती है। मगर आपको यह जवाब पसंद नहीं है क्योंकि आप मानते हैं कि पिछले जमाने के लोग परमार्थ के ज्यादा क़ाबिल थे और अब लोग दिन ब दिन गिरते चले आते हैं। मजबूरन गीता से दिखलाया गया कि कृष्ण महाराज ने फरमाया ए अर्जुन! सिर्फ तुमको विराट स्वरूप के दर्शन कराये गये हैं। यह दर्शन न वेद के पढ़ने से न सख्त रियाजत (तपस्या) से न दान पुण्य से और न यज्ञ से प्राप्त होते हैं और देवता भी इस दर्शन के लिये तरसते हैं और अर्जुन जवाब में कहता है कि ए भगवान! आपने जो दर्शन मुझे इनायत (प्रदान) किया है वह आज से पहले किसी को नहीं मिला वगैरह इन कलाम (बचनों) से अन्दाजा हो सकता है कि पिछले वक्तों में कितने आदमी मालिक के निज स्वरूप के दर्शन के (जो विराट या पॉप विश्वस्वरूप से कहीं सूक्ष्म है अधिकारी हुए। और कितनों पर इसकी बख्शिश (दया) की गई। इन हवालाजात (संदर्भों ) से आपकी किसी क़दर (कुछ) तस्कीन (सांत्वना) हो गई। और आपको यक़ीन हो गया कि जैसा कि गीता में फ़रमाया है हज़ारों मनुष्यों में से कोई एक सिद्धि के लिये कोशिश करता है और हजारों ऐसे लोगों में से कोई एक तत्वदर्शी होता है। मालिक के दर्शन की प्राप्ति भी ऐसा आसान मामला नहीं है।* 

                                                               *सतसंग के दुश्मनों ने और ख़ासकर आर्य समाजी भाइयों ने जो जो बातें सतसंग के ख़िलाफ़ मशहूर कर रखी हैं उनका भी जिक्र हुआ। उनके मुतअल्लिक़ भी कहा गया कि जो लोग खुद अपने मजहब को नहीं समझते वह अपने मजहब को ऊँचा साबित करने के लिये यही तदबीर किया करते हैं कि दूसरे मजहबों में नाहक (व्यर्थ) नुक्स (दोष) निकालें । इसलिये हम लोग ऐसे भाइयों की हालत पर तरस करते हैं। और उसके बाद सतगुरू, सेवा, सतसंग के असली मानी बयान किये गये।*



*🙏🏻रा-धा-स्व-आ-

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