Monday, December 12, 2022

तीन लोक 14 भुवन.../

प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा 


Hamari

 

विष्णुपुराण के अनुसार लोकों या भुवनों की संख्या 14 है। इनमें से 7 लोकों को ऊर्ध्वलोक व 7 को अधोलोक कहा गया है। यहाँ 7 ऊर्ध्वलोकों का विवरण निम्न है।


1. भूलोक: वह लोक जहाँ मनुष्य पैरों से या जहाज, नौका आदि से जा सकता है। अर्थात  हमारी पूरी पृथ्वी भूलोक के अन्तर्गत है।


2. भुवर्लोक: पृथ्वी से लेकर सूर्य तक अन्तरिक्ष में जो क्षेत्र है वह भुवर्लोक कहा गया है और यहाँ उसमें अन्तरिक्षवासी देवता निवास करते हैं।


3. स्वर्लोक: सूर्य से लेकर ध्रुवमण्डल तक जो प्रदेश है उसे स्वर्लोक कहा गया है और इस क्षेत्र में इन्द्र आदि स्वर्गवासी देवता निवास करते हैं।


पूर्वोक्त तीन लोकों को ही त्रिलोकी या त्रिभुवन कहा गया है और इन्द्र आदि देवताओं का अधिकारक्षेत्र इन्हीं लोकों तक सीमित है।


4. महर्लोक: यह लोक ध्रुव से एक करोड़ योजन दूर है। यहाँ भृगु आदि सिद्धगण निवास करते हैं।


5. जनलोक: यह लोक महर्लोक से दो करोड़ योजन ऊपर है और यहाँ सनकादिक आदि ऋषि निवास करते हैं।


6. तपलोक: यह लोक जनलोक से आठ करोड़ योजन दूर है और यहाँ वैराज नाम के देवता निवास करते हैं।


7. सत्यलोक: यह लोक तपलोक से बारह करोड़ योजन ऊपर है और यहाँ ब्रह्मा निवास करते हैं अतः इसे ब्रह्मलोक भी कहते हैं और सर्वोच्च श्रेणी के ऋषि मुनि यहीं निवास करते हैं।


जैसा कि विष्णु पुराण में कहा गया है नीचे के तीनों लोकों का स्वरूप उस तरह से चिरकालिक नहीं है यहाँ जिस तरह से ऊपर के लोकों का है और वे प्रलयकाल में नष्ट हो जाते हैं जबकि ऊपर के तीनों लोक इससे अप्रभावित रहते हैं।


अतः भूलोक, भुवर्लोक और स्वर्लोक को ‘कृतक लोक’ कहा गया है और जनलोक, तपलोक और सत्यलोक को ‘अकृतक लोक’। महर्लोक प्रलयकाल के दौरान नष्ट तो नहीं होता पर रहने के अयोग्य हो जाता है अतः वहाँ के निवासी जनलोक चले जाते हैं। यहां इस कारण महर्लोक को ‘कृतकाकृतक’ कहा गया है।


यहाँ जिस तरह से ऊर्ध्वलोक हैं और उसी तरह से सात अधोलोक भी हैं जिन्हें पाताल कहा गया है। यहाँ इन सात पाताल लोकों के नाम निम्न हैं।


1. अतल: यह हमारी पृथ्वी से दस हजार योजन की गहराई पर है और इसकी भूमि शुक्ल यानी सफेद है।


2. वितल: यह अतल से भी दस हजार योजन नीचे है और इसकी भूमि कृष्ण यानी काली है।


3. नितल: यह वितल से भी दस हजार योजन नीचे है और इसकी भूमि अरुण यानी प्रातः कालीन सूर्य के रङ्ग की है।


4. गभस्तिमान: यह नितल से भी दस हजार योजन नीचे है और इसकी भूमि पीत यानी पीली है।


5. महातल: गभस्तिमान से यह दस हजार योजन नीचे है और इसकी भूमि शर्करामयी यानी कँकरीली है।


6. सुतल: यह गभस्तिमान से दस हजार योजन नीचे है और इसकी भूमि शैली अर्थात पथरीली बतायी गयी है।


7. पाताल: यह सुतल से भी दस हजार योजन नीचे है और इसकी भूमि सुवर्णमयी यानी स्वर्ण निर्मित है।


इन सात अधोलोकों में दैत्य, दानव और नाग निवास करते हैं।


हम यह कह सकते हैं कि अन्ततोगत्वा हर लोक भगवान् के अधीन है। यहां (हर ईश्वरवादी ऐसा ही मानेगा।) फिर भी हम अलग अलग लोकों की प्रकृति को देखें तो यह माननें को बाध्य होगें कि जिस प्रकार हमारे लोक में कई राज्य है और उनकी शासनपद्धति भिन्न है और यहां शासक भी भिन्न हैं उसी प्रकार से अन्य लोकों में भी यही बात है।


पाताललोकों के वर्णन से प्रकट होता है कि उसमें दैत्यों, दानवों और नागों के बहुत से नगर हैं और यहां इसी प्रकार से स्वर्ग में भी इन्द्र, वरुण, चन्द्रमा आदि के नगर हैं। ऊपर के लोक महर्लोक जनलोक, तपलोक और सत्यलोक के निवासी इतने उन्नत हैं कि वहाँ किसी सत्ता की आवश्यकता ही नहीं है।

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