Monday, December 19, 2022

परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज के अनमोल बचन*:

 


- *हमको चाहिए कि हम हुज़ूर राधास्वामी दयाल के चरणों में प्रार्थना करें कि वह दयाल हमारी ग़लतियों, अपराधों व कमज़ोरियों को क्षमा करें और हम पक्का इरादा करें कि आगे हम सब उन अच्छे कामों को करेंगे जो कि हमको करने चाहिए। कोशिश यह हो कि कोई अच्छा काम हमसे छूटने न पावे।*

*अधिकतर लोग कहते हैं कि मेरी अंतर की आँख खोल दो। अंतर की आँख खुलने का आसान अर्थ यह है कि आप में समझ और बुद्धि पैदा हो जाय और वर्तमान दशा, उसका आदर्श और दर्जा ऊँचा हो जाय जिससे कि आप बारीक़, पेचीदा और मुश्किल मामलों को आसानी से हल कर सकें और होने वाली बातों के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी आपको पहले से ही हो जाय जिससे आप इस संबंध में आवश्यक काररवाई कर सकें।*

*तीसरी आँख या अंतर की आँख खोलने का एक तरीक़ा यह है कि आप अपने दिल में बुरे विचार न पैदा होने दें। आपका अंतरी तार राधास्वामी दयाल के चरणों से जुड़ा रहे।  ''साहब इतनी बिनती मोरी- लाग रहे दृढ़ डोरी'' और व्यर्थ बातों से परहेज़ किया जावे। हर वक्त़ मालिक के चरणों की याद बनी रहे। जिनकी ऐसी दशा है या जो इस दशा को पैदा करने की कोशिश में लगे रहते हैं उनका यह वैयक्तिक अनुभव होगा कि उनकी मुश्किलें समय से पहले या ऐन वक्त़ पर हल हो जाती हैं। उनको गुप्त रूप से ऐसी मदद मिलती है और इस तरह से अपनी मुश्किल आसानी से हल होते देख कर वे हैरान हो जाते हैं।*

*(बचन भाग-2, नं 38 का अंश)*



*“अपना तार हमेशा रा धा स्व आ मी दयाल से जोड़ करके रखें”*          


                                                                     *परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज के पवित्र भंडारे के सुअवसर पर ग्रेशस हुज़ूर प्रो. प्रेम सरन सतसंगी साहब के अमृत* *बचन:-11.3.2007:-रा धा स्व आ मी! अभी आपने परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज के अमृत बचन सुने। उसमें जो विशेष सार की बात कही गई है वो यह है कि हम सबको अपना तार रा धा स्व आ मी दयाल से जोड़ कर रखना चाहिए। ऐसा हमने कर लिया तो फिर हमारी सब मंज़िलें समय से तय हो जायेंगी और सब मुश्किलें आसान हो जायेंगी। सब रोग, दुख और दुर्दशा से हम बच जायेंगे। 

हम ऐसा* *उदाहरण संगत के रूप में प्रस्तुत कर सकेंगे, ऐसा आदर्श समस्त प्राणिमात्र के सम्मुख प्रस्तुत कर सकेंगे कि रा धा स्व आ मी सतसंग विश्वव्यापी हो जाये। ऐसी कोई क्रांति या करिश्मा से रा धा स्व आ मी मत सर्वव्यापी नहीं होगा परन्तु क्रमिक विकास और आपके उदाहरण से ही रा धा स्व आ मी मत सर्वव्यापी होगा और इसका एकमात्र तरीक़ा है कि हमारा तार रा धा स्व आ मी दयाल से हमेशा जुड़ा रहे। उसकी विधि भी हुज़ूर ने अपने बचनों में स्पष्ट कर दी है। रा धा स्व आ मी नाम का जाप और स्वरूप का ध्यान जितना अधिक आप कर सकेंगे उतना तार आपका रा धा स्व आ मी दयाल से जुड़ा रहेगा और हर तरह से उनकी रक्षा का हाथ आपके ऊपर बना रहेगा।*

पिछले भंडारे पर मैंने आपको आस्तिक की परिभाषा बताई थी कि आस्तिक वह है जो ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास रखता है कि ईश्वर एक परम ज्ञानमय, परम शक्ति है जिसने इस रचना की न केवल सृष्टि की पर अब भी उसका भरण पोषण कर रहा है। पर मेरी समझ से अब इस बचन के सन्दर्भ में सच्चा आस्तिक वह है जो न केवल ऐसा विश्वास रखता है परन्तु अपना तार रा धा स्व आ मी दयाल से सदैव जोड़ करके रखता है। 

जितना अधिक रा धा स्व आ मी नाम आप सुमिरेंगे, जितना अधिक स्वरूप का ध्यान आप करेंगे उतना अधिक आपका तार, आपकी डोरी रा धा स्व आ मी दयाल के चरनों में दृढ़ होती जायेगी। इससे उतर करके दूसरे दर्जे के जो आस्तिक होते हैं उन्हें ईश्वर पर यह तो विश्वास है कि किसी परम ज्ञानमय शक्ति ने इस रचना की सृष्टि की। पर उसके आगे वे समझते हैं कि एक बार प्रकृति के नियम बना दिये गये और अब उस परम स्रष्टा के हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है। और इसलिए वह हम सबके मामलों में किसी प्रकार से दिलचस्पी नहीं रखता। 

ऐसे लोगों को थीइस्ट (theist) न कहके डीइस्ट (Deist) कहते हैं। जैसा आपने पिछले कई व्याख्यानों में सुना, वैज्ञानिकों में ये एक तरह का फ़ैशन बन गया है कि वो अपने को आस्तिक नहीं कहना चाहते। चाहे उन्हें धार्मिक अनुभूति हो भी तो वो अपने को पैनथीइस्ट (Pantheist) कहते हैं अर्थात् वे प्रकृति की शक्ति, प्रकृति के सौन्दर्य, प्रकृति की संरचना पर श्रद्धा रखते हैं, उससे विस्मय में आ जाते हैं उसका आदर करते हैं और ये समझते हैं कि धीरे-धीरे हम उन प्राकृतिक नियमों की खोज कर रहे हैं। पर इसके परे उन्हें विश्वास नहीं है। इनसे भी नीचे के दर्जे के हैं जिन्हें संशय है ईश्वर के अस्तित्व में। ऐसे लोग एग्नोस्टिक्स (Agnostics) कहलाते हैं। और सबसे नीचे के दर्जे के वे हैं जो पूरी तरह से नास्तिक हैं, वे कहते हैं ईश्वर ऐसी कोई चीज़ ही नहीं है।

 यह तो एक बिग बैंग (Big Bang) हो गया, सारी सृष्टि हो गई, उसके नियमों का पता हम लगा रहे हैं विज्ञान से, और इसके अलावा, इस भौतिक सृष्टि के अलावा कुछ नहीं है। न किसी का कोई अस्तित्व है। इसके आगे। यहीं लोग जीते हैं और मर जाते हैं और इसके बाद कोई और जीवन नहीं है। पुनर्जीवन पर वे विश्वास नहीं रखते। ऐसे लोग एथीइस्ट (Atheist) कहलाते हैं और बहुत से वैज्ञानिक अपने को एथीइस्ट कहने में बहुत गौरव का अनुभव करते हैं।                                                                

🙏🏻रा धा स्व आ मी🙏🏻*



*परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज के* *बचन-भाग-2-

48)-28 दिसम्बर, 1952- 

भंडारे पर आरती के अवसर*

 *पर ‘सतसंग के उपदेश’,भाग 3 से बचन नंबर 45 पढ़ा गया कि मालिक की दया प्राप्त करने के लिये प्रत्येक व्यक्ति को तीन दर्जों से गुज़रना पड़ता है। (1) पिछले संस्कार उस पर ख़ास दया होने की इजाज़त दें (2) उसके अंदर ख़ास दया होने की लालसा पैदा हो (3) उसके अंदर ख़ास दया होने की पात्रता या योग्यता पैदा हो आदि आदि।*

*हुज़ूर मेहताजी साहब ने फ़रमाया- इस बचन से मालूम होता है कि हमारी संगत इस समय दूसरे दर्जे से गुज़र रही है यानी सतसंगियों के अंदर ज़बरदस्त चाह इस बात की पैदा हो रही है कि उनको ऊँचे दर्जे के बढ़िया तजरुबे मिलें। इसके बाद जैसा कि बचन में बतलाया गया कि तीसरा दर्जा तब आवेगा जब हमारे अंदर पात्रता यानी योग्यता ख़ास तजरुबे लेने की पैदा होगी। उसके लिये आवश्यक है कि जिस काररवाई से हम उसके अधिकारी बन सकते हैं उसे अमल में लावें जिससे कि वह योग्यता हमारे अंदर पैदा हो जाय और जो सेवा हुज़ूर राधास्वामी दयाल को हर सतसंगी से या संगत से लेनी मंज़ूर है वह पूरी हो जावे।                                                                (49)-28 दिसम्बर, 1952- भंडारे के मौक़े पर दोपहर को भंडारा शुरू होने के पहले यह शब्द पढ़ा गया- "चेतो मेरे प्यारे, तेरे भले की कहूँ।।1।।*

*(सारबचन, बचन 19,शब्द-1)*


*हुज़ूर ने फ़रमाया- इस शब्द में सतसंगियों के तर्ज़े ज़िन्दगी के बारे में बतलाया गया है। उसके दो पहलू हैं- (1)* *स्वार्थी और (2) परमार्थी। जब तक हमें संसार में रहना है हम सबकी यह ख़्वाहिश रहती है कि हम आराम से, ख़ुशी से, और सुख से रहें। परन्तु यदि हम सुख से रहना चाहते हैं तो इसके लिये आवश्यक है कि हम दूसरों को सुख पहुँचावें। इसमें आप ही का भला है। जैसा कि इस शब्द में भी बतलाया गया है कि-"जीव दया तू पाल, तेरे भले की कहूँ।।12।।*


*"दुक्ख न दे तू काय, तेरे भले की कहूँ।।13।।*


*यह पहली बात है जो दुनियाँ की तर्जे़ ज़िन्दगी के बारे में इन कड़ियों में बतलाई गई है। अगर आपको अपनी भलाई मंज़ूर है तो स्वामीजी महाराज की यह बात आपको मान लेनी चाहिए कि:-"बचन तान मत मार, तेरे भले की कहूँ।।14।।*

*"कड़ुवा तू मत बोल, तेरे भले की कहूँ।।15।।*


*तान का बचन और कड़ुवा बचन छुरी की तरह दिल में काम करते हैं और यदि किसी दिल पर छुरी चल जाय तो वह बदले में छुरी ज़रूर मारेगा।*

*हमारा तर्ज़े अमल आजिज़ी (दीनता) का होना चाहिए और हमें अपने को बड़ा न समझना चाहिए बल्कि यह समझना चाहिए कि हम और लोगों से छोटे हैं। स्वामीजी महाराज ने फ़रमाया है कि-"दीन ग़रीबी धार, तेरे भले की कहूँ।।22।।"*

*पिछले वक़्त में यह ख़याल किया जाता था कि हाथ से काम नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे हाथ मैले हो जाते हैं और आदमी हरिजन, कुली और मज़दूर हो जाता है। स्वामीजी महाराज फ़रमाते हैं कि-"लीक पुरानी छोड़, तेरे भले की कहूँ।।42।।"*

*पुराने ख़यालात छोड़ देने चाहिए इसलिए आपको यह बात मान लेनी चाहिए।*

*हर कड़ी में एक एक हिदायत आपकी बेहतरी के लिये दर्ज है इसलिए अगर आप अपनी भलाई चाहते हैं तो जैसा हुज़ूर स्वामीजी महाराज ने बतलाया है उस पर अमल करें। राय बहादुर साहब ने अभी बतलाया है कि हुज़ूर महाराज ने हर भाई व बहिन को यह शब्द एक एक बार रोज़ाना पढ़ने की हिदायत की थी।                                                           रा धा स्व आ मी*


 


*Be an early riser and be economical, industrious, truthful, kind and considerate, a good citizen and a true bhakta of Huzur Ra dha sva aah mi Dayal.*

*If you want to eat you must sweat first. If you want* *self-government, you must learn to govern yourself first.* *If you want to deserve anything you must learn to serve others.*

*Waste nothing has been an important principle of my life. I have always advised men and women, young and old alike to see that they do not their time, energy, thought, wealth, food, clothing, in short anything they possess lest they find* *themselves in want of them at the time of need.*

*I also consider waste as nothing short of sin.*

*A community which wishes to go ahead with its work must remain united in purpose, thought and action.*                                                   *It must also conserve all its resources of men, money and materials and exercise forethought and arrange for the fulfilment of its aims in good time.*                                                                 *This can be possible only if every member of the community contributes his or her best effort towards the attainment of the community's ideal.*

*Discipline, self-sacrifice and hard sustained work are not only very helpful in this endeavour but are very essential.(PARAM GURU HUZUR MEHTAJI MAHARAJ)*


*सुबह हो या शाम,खेतो का काम, करते ही रहना तुम लेकर रा धा स्व आ मी नाम।।                           मेहनत और लगन से धार के तन मन धन तेरे,सुबहो से तुम सुमिरन करना ,करना हर एक काम।। सुबह हो या शाम••••••                                                                                    याद कभी आयेगी तुमको मेहताजी महाराज की,खिंच जायेगा अंतर में मन होंगे घट में उनके दर्शन-2, सुबहो से तुम सुमिरन करना करना हर एक काम।।                                                                  सुबह हो या शाम खेतो का काम करते ही रहना तुम लेकर रा धा स्व आ मी नाम।।*


*🌹🌹रा धा स्व आ मी!!                                                                 15-03-2020-परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज- :-------{संदेश}-------:-                                                                   आप प्रातकाल उठने वाले एवं मित्तव्ययी, परिश्रमी, सत्यभाषी, दयावान और विचारशील, उत्तम नागरिक और हुजूर रा धा स्व आ.मी दयाल के सच्चे भक्त बनिए।                                                                       यदि आप भोजन चाहते हैं तो पहले परिश्रम करके पसीना बहाइए। यदि आप स्वशासन चाहते हैं तो पहले अपने ऊपर शासन व संयम करना सीखिए। यदि आप अपने आप को किसी वस्तु के पाने की योग्य बनाना चाहते हैं तो दूसरों की सेवा करना सीखिए। किसी चीज को नष्ट न करना मैंने जीवन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत रहा है। मैंने हमेशा पुरुषों और स्त्रियों, बूढो और नौजवानों सबको समान रूप से यह परामर्श दिया है कि वे हमेशा ध्यान रखें कि वह अपना समय, अपनी शक्ति ,अपने विचार अपना धन, अपने खाने की चीज और वस्त्र अर्थात जो उनके पास हो उसे नष्ट ना होने दें ताकि जरूरत के समय उनको उसकी कमी महसूस न हो। मेरा यह भी विचार है कि किसी चीज का नष्ट करना पाप से कुछ कम नहीं है ।।                                                    जो संगत अपने काम में आगे बढ़ना चाहती है उसे अपने उद्देश्य विचार एवं क्रिया में एक होना चाहिए उसे यह भी चाहिए।उसे यह भी चाहिए  कि अपने कार्यकर्ताओं , धन और सामान से संबंधित सभी साधनों को सुरक्षित रखें और दूरदर्शिता से काम लें तथा अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए उचित समय के अंदर इंतजाम करें । यह केवल तभी हो सकता है जब उस संगत का हर सदस्य अपनी संगत के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए यथाशक्ति जोर लगाएं ।अनुशासन कुर्बानी और  लगातार सख्त मेहनत इस प्रयास में न सिर्फ सहायक है बल्कि निहायत जरूरी है।                                                                                            🙏🏻रा धा स्व आ मी🙏🏻*

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