Tuesday, September 19, 2023

श्री कोचेश्वर महादेव मंदिर .

 


कोंच, टिकारी, गया 


यह मंदिर गया जिले के मुख्यालय से 31 किलो मीटर उतर-पश्चिम पर स्थित है.


कोचेश्वर नाथ मंदिर अद्वितीय है. मगध क्षेत्र में विराजमान, यह मंदिर राष्ट्रीय धरोहर है.


श्री कोचेश्वर नाथ सांस्कृतिक विरासत के रूप में ऐतिहासिक शैव तीर्थ मंदिर है. मगध की सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक परम्परा के लिए कोंच के कोचेश्वर महादेव मंदिर का अपना अलग स्थान है.


इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत इसकी निर्माण पद्धति है, जो प्राचीन ईंटों से बना प्राचीन भारत के पुराने व सही सलामत मंदिरों में एक है. इसका निर्माण उड़ीसा शैली के मंदिरों की तरह है और इसकी रचना उड़ीसा राज्य के भुवनेश्वर में बने लिंगराज मंदिर से मिलता है.


जगत गुरु आदि शंकराचार्य ने यहां ढाई-फीट का विशाल शिवलिंग वैदिक मंत्रोधार के साथ स्थापित किया था. जिसे आज भी देखा जा सकता है. 


इस मंदिर का निर्माण औरंगाबाद के उमगा राज के राजा भैरवेंद्र ने सन 1420 ई. के आस-पास कराया था. उनके शासनकाल में कोंच में 52 मंदिर और 52 तालाब थे, जिसमें सिद्धि लिंग के रूप में कोचेश्वर महादेव मंदिर काफी प्रसिद्ध था.  


उमगा राज के बारें में ---


उमगा राज औरंगाबाद के देव से 8 मील पूर्व और मदनपुर के नजदीक था. उमगा राज को मुनगा नाम से भी जाना जाता था. उमगा के पहाड़ पर बहुत से मंदिर और एक बहुत बड़ा जलाशय था. उमगा के राजा भैरवेंद्र का गया और औरंगाबाद के बहुत बड़ा भाग पर राज था. उनके दरबार में एक पंडित थे, उनका नाम पंडित जनार्दन था. जो उमगा के छोटे से गाँव पुरनाडीह में रहते थे. पंडित जनार्दन इस मंदिर के शिलालेख रचयिता भी थे. जो प्राकृत भाषा में लिखा हुआ है. उमगा राज कुछ दिनों बाद में नया बने देव राज के अंतर्गत आ गया था.  


टिकारी राज  


सर्वप्रथम लावगढ़ विजय की खुशी में टिकारी राज के प्रथम राजा वीर सिंह उर्फ़ धीर सिंह ने इस ऐतिहासिक मंदिर का पुनरुद्धार कर नया रूप दे कर साज-श्रृंगार कराये थे.


विदेशी पुरातत्ववेत्ता का मंदिर भ्रमण 


इस मंदिर की प्रसिद्धि सम्पूर्ण देश में तब हुई सन 1812 में स्कॉटलैंड के मि. फ्रांसिस बुचनन हैमिलटन- भूगोलिक, जीव विज्ञानी और वनस्पति-विज्ञानिक ने अपनी यात्रा क्रम में न सिर्फ कोंच के अलावा आस-पास के पुरातत्व स्थलों का भी दौरा किया और साथ ही साथ कोंच के कोचेश्वर शिव मंदिर को मुख्य देवालय में एक माना था.


सन 1846 में ब्रिटन सेना के कैप्टेन एम. किट्टो ने भी इस स्थल का भ्रमण कर इसे प्राचीन मंदिर बताया था.


सन 1861 में ब्रिटिश इतिहासकार थॉमस फ्रेज़र पेपे ने यहाँ आ कर अपनी रिपोर्ट में बताया है की मंदिर को सबसे पहले बनाने में मिटटी युक्त ईंट का प्रयोग करते हुए इसके ऊपर अधिरचना किया गया था. बाद में मंदिर को पुनरुद्धार कर इसे सही आकार में लाया गया. मंदिर के आतंरिक रचना को रंग रोगन किया गया था.    


सन 1872 में अमेरिकन-भारतीय इंजिनियर, पुरातत्ववेत्ता, फोटोग्राफर मि. जोसेफ डेविड बेलगर, सर्वेक्षण करने के लिए मंदिर आये. उन्होंने अपने कैमरा में इस मंदिर का ऐतिहासिक चित्र खीचा था.


सन 1892 में ब्रिटन सेना के इंजिनीयर मेजर जनरल सर अलेक्जेण्डर कनिधंम ने यहां की यात्रा कर इसे भरपूर संभावना वाला ऐतिहासिक स्थल बताया. 


सन 1902 में डेनमार्क के पुरातत्ववेत्ता, फोटोग्राफर, गया जिला के सर्वेक्षणकर्ता  मि. थिओडोर बलोच इस मंदिर को देखने और सर्वे के लिए आ चुके है. थिओडोर ने भी इस जगह को बहुत बड़ा आस्था और धार्मिक का केंद्र माना है. यहां के कितने ही अनसुलझे तथ्यों को उन्होंने स्पष्ट किया था.


मंदिर की बनावट 


टिकारी शहर से 8.5 किलोमीटर सड़क मार्ग से जा कर मंदिर व तालाब की नगरी कोंच के  कोंचदीह में बने इस मंदिर का दर्शन किया जा सकता है. जो छः फीट ऊंचे बने प्लेटफार्म के उपर बना 99 फीट ऊंचा शिव मंदिर है. इसके बगल में 32 फीट का विशाल सभा भवन है. 


इस मंदिर में शंकर , गणेश, कार्तिकेय, बुध, कुबेर, विष्णु, भैरव, सप्तमातृका यानि सात माताएँ या शक्तियाँ जिनका पूजन विवाह आदि शुभ अवसरों के पहले होता हैं, तथा अन्य मूर्तियाँ देखीं जा सकती हैं.  


इस मंदिर के निर्माण में तीन तरह की ईंट के इस्तेमाल होने का प्रमाण हैं कि इसका मतलब इस मंदिर को कम से कम तीन बार पुनरुद्धार किया गया. मंदिर भिन्न आकारों की जली हुई ईंटों से निर्मित है.


मंदिर का प्रवेश द्वार एक बड़ा दरवाज़ा है. मीनार के सामने की ओर खुलने वाला. प्रवेश द्वार को निचले आयताकार के पार एक पत्थर द्वारा दो भागों में विभाजित किया गया है. मंदिर के अन्दर के भाग गर्भगृह है. 


कोंच में इस मंदिर के ठीक सामने ही एक विशाल सरोवर है. मंदिर जाने के मार्ग में श्री विष्णु भगवान मंदिर, पीछे के स्थान में विशालगढ़, सहस्र शिव मंदिर, देवी स्थान, ब्रह्म स्थान व अकबरी महादेव के दर्शन से स्पष्ट होता है कि किसी जमाने में यह स्थल सम्पूर्ण क्षेत्र का आस्था का विशिष्ट केंद्र रहा है.


पुरातत्व विभाग द्वारा अधिग्रहित 


आजादी के बाद भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के द्वारा इसका अधिग्रहण कर, इसे हर संभव सुरक्षा व संरक्षा प्रदान की गयी. 


भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा 16 अप्रैल 1996 को इसका अधिग्रहण कर लिया गया है. इसके बाद यह मंदिर को राष्ट्रीय स्मारक की सूचि में शामिल कर लिया गया है. पुरातत्व विभाग ने 22 अप्रैल 1996 में मंदिर का जीर्णोद्वार का कार्य प्रारंभ किया.  


काल सर्प योग 


कोंचेश्वर शिव मंदिर भारत में ऐसी मंदिर है जहां पर कालसर्प योग यज्ञ के लिए उपयुक्त माना गया है.


महाशिवरात्रि पर्व 


सिद्धि शिवलिंग के रूप में प्रसिधी के कारण महाशिवरात्रि के दिन मंदिर परिसर में विशाल मेला लगता है और हजारों श्रधालुगण दर्शन करने लिए इस मंदिर आते है. सम्पूर्ण मंदिर परिसर शिव भक्तों से भक्तिमय हो जाता है. सम्पूर्ण मंदिर परिसर में शिव की जय जय कार की गूंज होती रहती है.


सावन के महिना में 


सावन मास इस मंदिर में सुबह चार बजे से ही श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगती है. मंदिर परिसर बोल बम व हर-हर महादेव के नारों से गुंजायमान हो जाता है. मंदिर परिसर में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं गण आकर बेल पत्र, पुष्प, दूध व जल कोचेश्वर महादेव को अर्पण कर पूजा अर्चना करते है. सावन मास के प्रत्येक सोमवार को काफी संख्या में भक्तजन यहाँ पहुचते है. मंदिर के चारो ओर का क्षेत्र भक्तिमय हो जाता है.


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रजनीश वाजपेयी

वाजपेयी भवन

बहेलिया बिगहा

टिकारी, गया

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