Monday, June 1, 2020

यथार्थ प्रकाश भूमिका





**राधास्वामी!! 01-06-2020-

आज शाम के सतसंग में पढा गया बचन-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज आनन्दस्वरुप साहब द्वारा रचित -(यथार्थ-प्रकाश भाग-1)                     

भूमिका:-                                                                                   

सच्चे मालिक ने मनुष्य को जो श्रेष्ठ वस्तुएँ प्रदान की है उनमें सबसे उत्तम परमार्थ है। किन्तु खेद है कि जैसे कोई छोटे बच्चे अज्ञानतावश अपने अच्छे से अच्छे वस्त्रों को थोड़े ही समय में मैला-कुचैला कर डालते हैं ऐसे ही भारतवर्ष के बहुत से लोगों ने अपना प्रमार्थ कलुषित कर लिया है और मालिक का यह अनुग्रह आजकल देश के लिए गलग्रह बन रहा है तथा परमार्थ के प्रेमियों और धर्म के नेमियों के लिए सुख शांति से जीवन व्यतीत करना और धार्मिक पथ-परदर्शकों के लिए अपने विचारों का प्रचार करना अत्यंत कठिन हो रहा है । उचित तो यह था कि यह पवित्र भारत भूमि ,जहाँ सहस्त्रों ऋषि ,संत, महात्मा और औलिया निरंतर प्रकट होते आये हैं, आध्यात्मिकता से परिपूर्ण होकर आध्यात्मिक शिक्षा के लिए अत्यंत अनुकूल वातावरण उपस्थित करती। परंतु खेद के साथ कहना पड़ता है कि इस प्रकार की परिस्थिति उपस्थित करने के बदले यह देश गृह -विग्रहों, अज्ञान-जन्य क्रियाओं तथा पक्षपात -पूर्ण कार्यवाहियों का केंद्र बन रहा है। इस स्वतंत्रता के युग में , जबकि प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म में श्रद्धा भाव रखने तथा अपने मत के आचार्यों के आदर सत्कार और अपने विचार के प्रचार के लिए पूरा अधिकार प्राप्त है, यह कैसे सहन किया जा सकता है कि कोई व्यक्ति अन्य मतों के आचार्यों के विषय में जनता के समक्ष हृदय- पीड़क और अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करें और अपने मत की शिक्षा की श्रेष्ठता प्रकट करने के बदले  दूसरें मतो की शिक्षा को तोड़ मरोड़ कर उसके उपहास करने की अनुचित चेष्टा में उद्यत हो । इसी नीति का अनुसरण करते हुए सत्संगी- जनता ने अपने सत्तर वर्ष से अधिक जीवन में दूसरे मतों के आचार्यों के विरुद्ध कटु शब्द मुख से निकालने अथवा उनकी शिक्षा-दीक्षा में छिद्रान्वेषण करने के दोष से अपने आप को बचाए रक्खा- यहाँ  तक कि यदि किसी अन्य संप्रदाय के लोगों ने इस नीति की उपेक्षा करके राधास्वामी मत की शिक्षा और उसके आचार्यों के विरुद्ध अनुचित शब्द प्रयुक्त किए तो उनका उत्तर मौनावलम्बन से ही दिया। परंतु शौक है कि इन दिनों कतिपय  आर्य -समाजी और  सनातनी तथा अकाली भाइयों ने इस मौनता को हमारी आचारिक निर्बलता समझकर अनर्गल वाचालता से काम लेना आरंभ किया। अतः विवश होकर इस संबंध में लेखनी उठाने की आवश्यकता प्रतीत हुई और राधास्वामी -मत की स्थिति स्पष्ट करने के लिए यह पंक्तियां लिखनी पड़ी।।                                                     परंतु पाठकगण यह  न समझे कि इस पुस्तक में आक्षेपको के समान कटूक्ति अथवा दुर्वचन से काम लिया जाएगा ।नहीं , चेष्टा यह होगी की प्रथम राधास्वामी-मत की वास्तविक शिक्षा का संक्षेप में वर्णन करके आक्षेपकों के आक्षेपो के उत्तर दियें जायँ, जिससे वे समझ सके कि राधास्वामी मत के विरुद्ध उनके लेख तथा भाषण कहां तक न्याय संगत है;  फिर आक्षेपको की मान्य धर्म पुस्तकों से अनेक प्रमाण उद्घृत करके उन कठिनाइयों का उल्लेख किया जाय जिनके कारण राधास्वामी-मत के अनुयायी उनसे सहमत होने और वेदादि शास्त्रों को उस आदर की दृष्टि से देखने में असमर्थ हैं जिससे वे आक्षेपक उन्हे देखते हैं।।                                    आशा है कि इन पंक्तियों के अवलोकन के अनन्तर हम पर कृपा- कटाक्ष  करने वाले सज्जन अपना वर्तमान हृदय -पीडक व्यवहार छोड़कर हमारी कठिनाईयों को हटाने और राधास्वामी-मत की शिक्षा का यथार्थ भाव समझने की सुचारू चेष्टा में संलग्न होंगे तथा हमारे लिए अपने धर्म पुस्तकों की शिक्षा से लाभान्वित और अपने लिये राधास्वामी-मत की शिक्षा से लब्ध लाभ होने की परिस्थिति उत्पन्न करेंगें।।

        आनंदस्वरूप                             

 दयालबाग:-                                           
   12 जनवरी 1934 -       
                              
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
Radhasw

राधास्वामी

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