Wednesday, March 10, 2021

सतसंग RS सुबह 011/03

 **राधास्वामी!! 11-03-2021-आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                    

(1) साहब इतनी बिनती मोरी। लाग रहज दृढ डोरी।।टेक।। जनम जनम बहु भटके खाये। भरम फिरा चहुँ ओरी। हार हार सब बिधि से हारा। नाम आधार लियो री।। चरन ते सीस टरै नहिं टारे। ऐसी मेहर करो री। हे राधास्वामी पुरुष अपारे। कस के बाहँ गहो री।।) (प्रेमबिलास-शब्द-3-पृ,सं.3,4)(गुरुग्राम-249 उपस्तिथि)                                                     

(2) सुरत लगी गुरु चरनन चित जोड।। बचन सुनत जागा अनुरागा। मन को लीना जग से मोड।।-(राधास्वामी दया काज हुआ पूरा। काल करम सिर दीना फोड़।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-7-पृ.सं.-6)                         

  सतसंग के बाद :- 

                                          

  (1) राधास्वामी मूल नाम!                                  (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                        

  (3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो ओहो।।                            🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज

- भाग 1- कल से आगे:- 1 फरवरी 1941

को शाम के सत्संग में हुजूर ने फरमाया- आज बसंत का पवित्र दिन है। सब लोगों के हृदय हर्ष से परिपूर्ण हैं, सबकि प्रसन्नता में मुझे भी प्रसन्नता है। अंग्रेजी में एक कहावत है'One lives to learn'  यानी मनुष्य अपने जीवन- काल में सदैव नई से नई बात सीखता है। जब भी किसी बात के सीखने का अवसर मिले तुरंत उसे सीख लेना चाहिए।

 सबक सीखने और शिक्षा के प्राप्त करने के बारे में यह ध्यान रखना चाहिए कि उनको बुजुर्गों से सीखा जा सकता है और छोटों से भी सीखा जा सकता है। अंग्रेजी में एक और कहावत है और उसका भावार्थ इससे मिलता-जुलता है, "The child is father of the Man's " यानी बच्चा मनुष्य का पिता होता है। परंतु मैं इस कहावत को कुछ अलग बना कर कुछ इस तरह से कहना पसंद करूँगा -                                                     'The Child is teacher of the Man'  अर्थात् बच्चा मनुष्य का उस्ताद होता है और उसे सिखाता है। आज शाम को जब मैं प्रेमविद्यालय बसंत की रोशनी देखने गया तो वहाँ पर मैंने छोटी लड़कियों से एक सबक सिखा।

 उन्होंने छोटी प्रार्थना गाकर पढी इसका भावार्थ यह था कि इस समय संसार में हर जगह दुःख व क्लेश फैला हुआ है। हे दाता दयाल ऐसी दया कीजिए इन दुःखों व क्लेशों का बस अंत हो जाय और सबको अब प्रेम और भक्ति के दात दी जाय। इस समय यहाँ सत्संग में जो बचन पढा गया उसमें भी बताया गया है कि बचन सुनने से उसी समय लाभ हो सकता है जब उसके अनुसार करनी भी की जाय।क्रमशः                

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻*l


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

[ भगवद् गीता के उपदेश]-

 कल से आगे:

-( आठवां अध्याय)

-[ अक्षरब्रह्म योग]-【 मजमून का सिलसिला जारी रख कर बयान होता है कि अक्षर पुरुष का पद, जो ब्रह्मपद के परे हैं, कृष्ण महाराज का निजधाम है। वहाँ एक बार, पहुँच जाने पर कोई दुख के लोक में वापिस नहीं आता। लेकिन वहाँ वही पहुँच सकता है जो ऐसे पुरुष ही की अनन्य(ऐसी भक्ति कि जिसमें किसी दूसरे की ओर बिल्कुल ख्याल न जाय-अर्थात् एक ही भक्ति।) भक्ति करता है । इस भेद से वाकिफ  योगी वेदों में बतलाये हुए पुण्य कर्मों के फलों से नजर हटा कर उसी परम पद में रसाई हासिल करने की फिक्र करता है।】                                               

कृष्ण जी के जवाब का आखिरी हिस्सा समझ में न आने पर अर्जुन ने सवाल किया- महाराज! वह ब्रह्म अध्यात्म और कर्म क्या है? अधिभूत किसे कहते हैं? अधिदैव से क्या मतलब है? इस शरीर में अधियज्ञ कौन है और वह कैसे अधियज्ञ है? और शरीर त्यागने के वक्त मन पर काबू रखने वालों को कैसे आपका ज्ञान हो जाता है?                                                                कृष्ण जी बोले- परम अक्षर ब्रह्म है, यानी ब्रह्म से मेरा मतलब परम अक्षर है। जीवभाव को मैंने अध्यातम कहा है। जानदारो और गैरजानदारों की सृष्टि करने वाले वेग का नाम कर्म है। नाशवान् सृष्टि अधिभूत है।

जीवन देने वाली शक्ति अधिदैव और अधियज्ञ खुद में इस (अपने शरीर की तरफ इशारा किया है।) शरीर का धारण करने वाला हूँ। मरते वक्त जो शख्स मुझे स्मरण (याद ) करता हुआ शरीर त्याग करता है वह निःसन्देह मुझ को प्राप्त होता है।                                     

【5】 क्रमशः                                        

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**



**परम गुरु हुजूर महाराज -

प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे:-                                                 

सोते पर खाट बिछाई। जगते को सुषपति आई।।८।।                                                

अर्थ- जो परमार्थ की तरफ से गाफिल यानी सोता रहा वह माया के तले यानी षट्चक्र में दबा और फँसा रहा और जो परमार्थ की कमाई चेतकर और होशियारी के साथ करने लगा वह पिंड और संसार की तरफ से बेखबर होता गया।                                      

 बंझा नित जनती हारी। जनती पुनि बाँझ कहाई।।९।।                                              

अर्थ-बंझा(बांद) यानी माया से( जब कि सुरत उसके घेर में उतर कर आई) अनेक प्रकार की रचना और अनेक पदार्थ पैदा हुए और जब सुरत यानी जनती और असल कर्ति उलट कर पिंड और ब्रह्मांड के परे पहुँची तब सब रचना सिमट गई और वह अकेली अपने घर की तरफ सिधारी।।                

 घोड़े पर पृथ्वी दौडी। ऊँटन चढ गगना फोडी।।१०।।                                          

 अर्थ- जबकि सुरत, जो पिंड में फँसकर देह यानी पृथ्वी रूप हो रही थी, उलटकर ब्रह्मांड की तरफ चली तो वह मनरुपी घोड़े पर सवार होकर दौड़ी और तब ही ऊँट यानी स्वाँसा अथवा प्राण उलट कर और गगन को फोड कर चढ गई।                                      

राधास्वामी मौज दिखाई। सूरत अब शब्द लगाई।।११।।                                                 

अर्थ -खुलासा इस शब्द का यह है कि राधास्वामी ने अपनी मेहर और  मौज से सुरत को चढा कर शब्द से मिला दिया।क्रमशः                    

  🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻


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