अष्टभुजाधारिणी स्त्री / प्रस्तुति - कृष्ण मेहता
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पंडितजी अपने घर के मंदिर में हाथ जोड़े खड़े थे, सामने देवी माँ की मूर्ति थी, जिसे नमन करके वो कह रहे थे," ॐ आय रीं क्लीं अष्टभुजाधारिण्यै नमः:"
इधर दरवाजे पर हाथ में तपेली पकड़े पंडितजी के मित्र का आगमन हुआ, जो कि घर में घुसते ही बोल पड़े, "अरे पंडितजी ये क्या दिन रात जपते रहते हो, अष्टभुजाधारिणी, अष्टभुजाधारिणी. अरे कभी इंसान की आठ भुजाये हो सकती है क्या?"
इतने में पंडितजी की पत्नी नाश्ता लेकर आ गई. "रफीक भैया आज सुबह सुबह कैसे? आप बैठिये ये पूजा करके आ रहे है", अपने पति के मित्र को आया देखकर झट से नाश्ता लगा दिया पंडिताइन ने.
रफीक मियां थोड़े थके थके से थे, आते ही सोफे पर धम्म से बैठ गए, और नाश्ते पर तो यूं टूट पड़े जैसे कई दिनों से जंगल में भूखे प्यासे भटके हो. लगभग आधी प्लेट सफाचट करने के बाद रफीक मियां बोले,"अरे क्या बताऊ भाभीजान, जबसे सलमा मायके गई है, मेरी तो शामत ही आ गई, रब्बू को पढ़ाउ, सब्जी लाऊ, खाना बनाऊ, रब्बू के और अपने कपडे धोऊ, प्रेस करूँ, पोछा लगाऊ, रब्बू को खिलाऊ तब जाकर के मैं कुछ खा पाऊं. इंसान के दो तो हाथ है, आज आपके घर आया हूँ तो जरा चैन से बैठ पाया हूँ, अब जाकर ढंग से नाश्ता कर पाया हूँ. खुदा जाने सलमा कैसे करती है."
इतने में पंडित जी भी पूजा खत्म करके नाश्ता करने को आ बैठे. बैठते हुए रफीक मियां के कंधे पर धौल जमाई और पूछा," अरे वो सब तो ठीक है मियां , इतनी रामायण सुना दी, अब ये तो बताओ की आज सुबह सुबह आना कैसे हुआ?"
जवाब में रफीक मियां कुछ बोलते उसके पहले ही पंडिताइन चाय लेकर आ गई, रफीक मियां आश्चर्य में डूबे हुए कभी नाश्ते की प्लेट को देखते और कभी पंडिताइन की तरफ.आखिर में पूँछ ही बैठे," एक बात बताओ भाभीजान, अभी आप दोनों बच्चो को स्कूल के लिए तैयार करवा रही थी, और अभी आप चाय भी बना लाई. ये सब कैसे? मैं तो कल रात को सब्जी लेने गया तो दूध लाना ही भूल गया इसीलिए आपके पास आना पड़ा और आपने एक साथ दो अलग अलग काम भी कर लिए"
पंडिताइन भी पंडिताइन ही थी, हलके से मुस्कुराई और बोली,"भैया आप जब घर में आये थे, तो कुछ पुछ रहे थे."
अब रफीक मियां के दिमाग की बत्ती जली," सच बोली भाभीजान आप. वाकई में एक औरत दो हाथो से आठ हाथो का काम लेती है. मुझे यकीन हो गया कि वाकई में औरतो की आठ भुजाये होती है. सच में बहुत अच्छी सीख देती है आपके मजहब की किताबे."
अब फिर पंडित जी भी पूँछ बैठे,"तो बताना जरा क्या सीखा तुमने?"
जवाब में रफीक मियां ने बस पंडिताइन की तरफ हाथ जोड़े और बोल पड़े ;"ॐ अष्टभुजाधारिण्यै नमः"
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