Thursday, December 22, 2011

मुस्लिम आरक्षण और राजनीति : रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट कहां है



यह चुनावी चिंता का ही असर था. वरना कोई कारण नहीं था कि उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री केंद्र सरकार को मुस्लिम आरक्षण लागू करने के लिए पत्र लिखतीं और न सलमान खुर्शीद एक बार फिर पिछड़े मुसलमानों को ओबीसी कोटे में से आरक्षण देने जैसे मुद्दे को अपने बयानों से गरमाते. अगर यह कहा जाए कि मुस्लिम आरक्षण के मसले पर बसपा और कांग्रेस दोनों के बयान पूरी तरह चुनावी स्टंट थे तो कोई ग़लत नहीं होगा. लोकसभा के गलियारों में पिछले दो सालों से धूल फांक रही रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट कहां है, उस पर चर्चा क्यों नहीं हो रही है? इस मुद्दे पर न बसपा बात कर रही है, न कांग्रेस और न कोई अन्य राजनीतिक दल. रंगनाथ मिश्र आयोग ने अल्पसंख्यकों (बौद्ध और सिख के अलावा) को 15 फीसदी आरक्षण देने की अनुशंसा की थी. केंद्रीय विधि मंत्री सलमान खुर्शीद ने कई बार कहा और अब फिर कह रहे हैं कि सरकार ओबीसी कोटे में से ही पिछड़े मुसलमानों को आरक्षण देने पर विचार कर रही है, लेकिन यहां एक पेंच है. पिछड़े मुसलमान पहले से ही ओबीसी कोटे में हैं यानी मंडल आयोग के 27 फीसदी में शामिल हैं. 27 फीसदी में से 3 फीसदी आरक्षण पहले से ही पिछड़े मुसलमानों को मिल रहा है. सरकार लगभग 8.4 फीसदी आरक्षण देने की बात कर रही है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि अगर पिछड़े मुसलमानों को ओबीसी कोटे से ही आरक्षण दिया जाएगा तो अन्य धर्मों के जो लोग ओबीसी में आते हैं, क्या वे ऐसा होने देंगे? क्या यहां राजनीति नहीं होगी?
उत्तर प्रदेश चुनाव नज़दीक है, सो मुस्लिम आरक्षण के बहाने राजनीतिक दलों ने अपने-अपने वोट बैंक की जांच-परख शुरू कर दी है. अपना वोट बैंक बढ़ाने और दूसरों का घटाने का खेल भी शुरू हो गया है, लेकिन इस खेल में रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट शामिल नहीं है. आख़िर क्यों?
दरअसल, कांग्रेस की नज़र उत्तर प्रदेश के मुस्लिम मतदाताओं पर है, जिनकी संख्या अच्छी-खासी है. वहां क़रीब 19 फीसदी मुस्लिम वोट हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में वहां 13 मुस्लिम पार्टियां मैदान में उतरी थीं. मुस्लिम मतदाता किसी एक पार्टी को ही अपना वोट देंगे या किस पार्टी के साथ जाएंगे, यह स्पष्ट नहीं है. नतीजतन, सभी राजनीतिक दल मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने में लगे हैं. मुलायम सिंह यादव भी आरक्षण की मांग कर चुके हैं और अभी भी कर रहे हैं. साथ ही वह कांग्रेस की पहल को दिखावा बता रहे हैं. सरकार मुसलमानों को आरक्षण देने के मसले को अपने राजनीतिक फायदे के लिए एक अवसर के तौर पर देख रही है, लेकिन कांग्रेस के इस फैसले का विरोध होगा. भारतीय जनता पार्टी इसे मुद्दा बनाकर सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करेगी और उसे उन सभी पार्टियों का समर्थन मिलेगा, जो ओबीसी वर्ग से आती हैं या उस वर्ग के समर्थन के सहारे ही जिनकी राजनीतिक दुकान चलती है.
मुस्लिम आरक्षण से जुड़ा एक और अहम मुद्दा है. केंद्र सरकार मुसलमानों को शेड्यूल कास्ट (एससी) का दर्जा देने से बच रही है. जबकि सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट साफ-साफ बताती है कि सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक तौर पर देश के मुसलमानों की हालत दयनीय है. रंगनाथ मिश्र आयोग ने तो अपनी रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया है कि मुस्लिम अल्पसंख्यकों में से ज़्यादातर लोगों की हालत हिंदू दलितों से भी बदतर है. आयोग ने संविधान से पैरा 3 हटाने की भी सिफारिश की है. दरअसल, संविधान के पैरा 3 में राष्ट्रपति के आदेश 1950 का उल्लेख है, जिसके मुताबिक़ हिंदू धर्म के अलावा किसी और धर्म को मानने वाले व्यक्ति को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया जा सकता है. बाद में बौद्धों और सिक्खों को भी एससी का दर्जा दिया गया, लेकिन मुस्लिम, ईसाई, जैन और पारसी धर्म के लोगों को अनुसूचित जाति (एससी) का दर्जा नहीं मिल सकता. एससी का दर्जा मिलते ही पिछड़े मुसलमानों को अपने आप विधानसभाओं और संसद में भी आरक्षण मिल जाएगा. इसलिए उनकी मुख्य मांग है कि 1950 का प्रेसिडेंसियल ऑर्डर वापस लिया जाए.
मुस्लिम आरक्षण का मसला केंद्र सरकार के लिए गले की हड्डी बन चुका है. रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशों के मुताबिक़, 15 फीसदी आरक्षण देने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा, क्योंकि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा पार करना पड़ेगा. दूसरी ओर ओबीसी कोटे में से आरक्षण देने की बात न तो कई राजनीतिक दल मानेंगे और न इस देश की सबसे बड़ी आबादी यानी ओबीसी. सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन तमाम पेंचों के बाद भी मुस्लिम अल्पसंख्यकों के विकास की चिंता किसे है? ऐसा नहीं है कि रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट में स़िर्फ मुस्लिमों सहित अन्य अल्पसंख्यक समुदायों (बौद्ध एवं सिक्ख) के पिछड़े लोगों को आरक्षण देने की वकालत की गई है, बल्कि आयोग ने अल्पसंख्यकों की भलाई के लिए कई अन्य रास्ते भी बताए हैं. मसलन, उनके लिए ऋण, व्यापार एवं शिक्षा आदि की समुचित व्यवस्था कैसे की जा सकती है, इस संदर्भ में विशेष उपाय भी इस रिपोर्ट में बताए गए हैं, लेकिन इस सबकी चिंता किसी को नहीं है, सिवाय मुस्लिम आरक्षण के नाम पर राजनीति करने के. सभी राजनीतिक दलों को इस मुद्दे की गंभीरता और इसके क्रियान्वयन के रास्ते में आने वाली समस्याओं का अंदाजा है. फिर भी असल मुद्दे अल्पसंख्यकों के विकास से उनका कोई लेना-देना नहीं है.

चौथी दुनिया और रंगनाथ रिपोर्ट

वर्षों से सरकार के पास पड़ी रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट को जब चौथी दुनिया ने प्रकाशित किया, तब 2009 के शीतकालीन सत्र में विपक्ष के हंगामे के बाद सरकार ने वह रिपोर्ट लोकसभा के पटल पर रखी, वह भी बिना एटीआर के. उसके बाद दो साल बीतने को हैं, लेकिन अभी तक न उस रिपोर्ट पर कोई चर्चा हुई और न केंद्र सरकार ने रिपोर्ट की सिफारिशें लागू कराने की कोशिश की. इस बीच चौथी दुनिया ने यह भी बताया कि केंद्र सरकार बहाने बनाकर उन सवालों के जवाब देने से बच रही है, जो पिछले कई सालों में देश की सर्वोच्च अदालत ने पूछे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए सरकार से अंतिम जवाब दाख़िल करने को कहा था. याचिका संख्या 180/2004 में याचिकाकर्ता ने यह दलील दी है कि पैरा 3 में वर्णित राष्ट्रपति के आदेश 1950 की वजह से मुसलमानों, ईसाइयों, जैनियों और पारसियों के साथ भेदभाव हो रहा है.

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1 comment:

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