Monday, December 5, 2011

- बीबी


कान्ति प्रकाश त्यागी की मजाहिया कविता - बीबी

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बीबी -डॉ. कान्ति प्रकाश त्यागी

एक आदमी ने रात में पड़ोसी का दरवाजा खटखटाया ,
पड़ोसी गहरी नींद से उठा, दरवाजा खोलते ही बड़बड़ाया
क्यों भई ?, क्या मुसीबत है जो इतनी रात में उठाया ,
भाई साहब संकट बहुत गहरा है, इसलिए आपको उठाया
क्षमा कीजिए आपको इस समय तकलीफ़ दी ,
आपको उठाकर, आपकी नींद हराम की


आप ही मेरे पड़ोसी हैं ,
सब से अच्छे हितैषी हैं ,
मेरी बीबी खिड़की में बैठी है ,
वह अपनी जिद की पक्की है
खिड़की में बैठी है, तो बैठी रहने दो ,
काम से थका हूं, मुझे तो सोने दो

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भाई साहब, आप मेरी बात नहीं समझ रहे हैं ,
आप भी तो ठीक से, नहीं समझा रहे हैं
वह खिड़की से कूद कर आत्महत्या करना चाहती है ,
इस घटना के लिए, मुझे दोषी बनाना चाहती है


यह तो आपका व्यक्तिगत मामला है ,
आप ही को सब कुछ संभालना है
बीबी मेरी है अथवा तुम्हारी ,
यही है सब से बड़ी लाचारी


मैं पत्नीव्रता पति हूं, पति धर्म निभाना चाहता हूं ,
अग्नि समक्ष फेरों की याद निभाना चाहता हूं
फिर भी कहिये, मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं ,
कैसे आपको, इस भारी संकट से बचा सकता हूं
साफ साफ बोलिए, आपको क्या चाहिए ,


बस आपकी जरा थोड़ी सी मदद चाहिए
वह बहुत देर से प्रयत्न कर रही है ,
उस से खिड़की नहीं खुल रही है
कृपया आप, खिड़की खोल दीजिये ,
इस पुण्य कार्य में उसकी मदद कीजिये

(चित्र - यशोदा एरन की तैलरंगों से बनी कलाकृति)


आगे पढ़ें: रचनाकार: कान्ति प्रकाश त्यागी की मजाहिया कविता - बीबी http://www.rachanakar.org/2006/11/blog-post.html#ixzz1fjYMayVf

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