Thursday, April 13, 2023

योगी बनाम पौणाहारी

 



कान्हा!!  ओ कान्हा....O 


बोलो.... 


एक काम है... 


कहो.... 


यमुना पार एक योगी आया है बहुत दिनों से... 


तो...??? 


सब ने देखा है कि इतने दिन से तपस्या में लीन है..  कुछ खाने को भी ना है वहाँ...  तो हम चाहती हैं कि उस के लिए खाना लेकर जाएं.... 


ले जाओ.... 


एक समस्या है... 


क्या...??? 


आज खाना बनाया है , लेकर जाना था तो यमुना उफान पर है...   अब पार जाने का रास्ता बताओ... 


यमुना मैया को बोलना कि अगर कृष्ण योगी है, भोगी नहीं तो रास्ता दे दे.... 


हे हे हे हे....  सब गोपियां हंसने लगी....  कृष्ण और योगी...??? कौन सी गोपी से तुमने रास नहीं रचाया...??? 


बोल कर तो देखो.... 


अब कान्हा ने बोला तो देखना ही पड़ता... सब गोपियां थाल उठा कर चल दीं...  यमुना किनारे पहुँची... निवेदन किया...  हे यमुना मैया!!!  अगर कृष्ण योगी है तो रास्ता दे दो... 


उफनता वेग शाँत...  वही कल कल करती धीमे बहती यमुना.... घुटने घुटने पानी में गोपियों ने यमुना पार करी और पहुँच गई साधु के पास... 


कोलाहल सुन कर साधु महाराज ने आंखें खोली और आने का प्रयोजन पूछा.... 


महाराज!!!  आप के लिए खाना लेकर आईं हैं...  स्वीकार कर कृतार्थ करें.... 


साधु महाराज ने भोजन शुरु किया... छप्पन भोग... खाने वाला एक...  चिंता हुई कि इतना भी कम ना हो जाए... सारा भोजन खत्म होने के बाद बर्तन समेटे, प्रणाम किया, वापिस आने लगी...  समस्या फिर वही... यमुना फिर उफान पर...  उधर तो कान्हा था... इधर कौन...??? साधु महाराज....  


अब उनसे बिनती की... 


यमुना को बोलो कि अगर फलाना साधु पौणाहारी (पवन आहारी,  जो सिर्फ़ हवा पर जिंदा रह सकता हो)  है, तो रास्ता दे दे.... 


ही ही ही... मन ही मन हंसते हुए सोचा...  इतने खाने से तो बैल भी मुँह मोड़ दे.... पौणाहारी...??? 


खैर.... 


यमुना जी के पास पहुंच कर बिनती करी कि अगर ये साधु पौणाहारी है तो रास्ता दे दे...  यमुना जी ने फिर रास्ता दे दिया.... 


अब वापिस आने पर मन में दुविधा.... कृष्ण योगी कैसे....???  साधु पौणाहारी कैसे...??? हल किसके पास...??? 


फिर कृष्ण को पकड़ा.... बताओ....


कृष्ण योगी कैसे....???  साधु पौणाहारी कैसे...???


पहले किस का पूछोगी...??? 


साधु का बता...  तुम तो हमेशा पास हो.... 


इतने दिन से उसे कुछ खाते देखा...??? 


नहीं.... 


तुम गई खाना लेकर...  तुम्हारी श्रद्धा थी तो खाया उसने...  नहीं भी जाती तो उसे कोई फर्क नहीं था.... 


उसका तो हो गया...  अब अपनी बताओ...  तुम योगी कैसे...??? 


ये जो भी रास करता हूँ,  ये सब तुम्हारे मन के लिए... तुम्हें खुश करने के लिए..  अगर मेरे मन में कुछ हो तो मैं भोगी...  मेरे मन में तो कुछ है ही नहीं, इसलिए मैं योगी....

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