Saturday, May 9, 2020

सत्संग के मिश्रित प्रसंग बचन और उपदेश






परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

रोजानावाकियात-22 सितंबर 1932-

बृहस्पतिवार:- लाहौर से स्वामी आनंद तीर्थ जी ने गीता का उर्दू अनुवाद प्रेषित किया है। आपने यह अनुवाद मेहनत से तैयार किया है । लिखाई छपाई बहुत अच्छी है। मेरी आपसे निजी मुलाकात नहीं है ।लेकिन आपने किताब के साथ जो तहरीर भेजी है उससे मालूम होता है कि आपके दिल में मेरे लिए काफी प्रेम मौजूद है। आप स्वामी रामतीर्थ के शिष्य मालूम होते हैं ।

 मीठे शब्द बोलने या लिखने में इंसान का कुछ खर्च नहीं होता लेकिन यह बिला परेशानी बहुत से दिन फतह कर लेता है। एडिटर साहब प्रेम प्रचारक ने लाहौर के गाली बकने वाला अखबार "आनंद" का एक पर्चा पेश किया। मैंने जवाब में स्वामी आनंद तीर्थ जी की तहरीर पेश की। दोनों के नाम में "आनंद" लफ्ज आता है लेकिन प्रथम वर्णित को पढ़कर अफसोस होता है और लाभप्रद को पढ़कर प्रेम जागता है ।।               

शाम के वक्त "तेज" दिल्ली के भूतपूर्व एडिटर और "वतन" के मालिक व एडिटर मुंशी शिवनारायण भटनागर से मुलाकात हुई । आपने भी बहुत जोर से कहा कि दयालबाग की निर्मित वस्तुओं  को प्रसिद्धि दी जाए।  हमारी कामयाबी और नाकामयाबी एक ऐसे परम पुरुष के हाथ में है जो अगर मौज हो तो छिन भर में सब के सब संजोग जोड सकता है। वरना हम क्या कर सकते हैं?                             

रात के सत्संग में मुसलमानों , सिखों और बौद्धों की इतिहास के हवाले से सतसंगीयो के लिए कुछ लाभप्रद बातें पेश की। धार्मिक समूह उसी वक्त तक मजहबी  रहती हैं जब तक उनमें रूहानियत में पूर्ण नेता रहते हैं और जब किसी मजहबी जमाअत की बागडोर रुहानियत से अनभिज्ञ शख्सों के हाथों में आ जाती है तो या तो वह जमाअत खत्म हो जाती है या दुश्मनों पर गालिब आकर लड़ाकू कौम बन जाती है ।

इसलिये हमारी राधास्वामी दयाल से यही प्रार्थना होनी चाहिए कि हम इन खतरों से बचाएं जाएं और साथ ही हमारी यह कोशिश होनी चाहिए कि हम अपनेतई इस काबिल बनायें कि हमारी संगत के सर पर राधास्वामी दयाल का हमेशा हाथ बना रहे।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**




**परम गुरु हुजूर महाराज

- प्रेम पत्र- भाग 1 -कल से आगे

 -और वह चार काम यह हैं -(पहले गुरु और साध के चरणों पर मत्था टेकना या चरण छूना, दूसरे हार और फूल चढ़ाना, तीसरे परशादी लेना, चौथे चरणामृत लेना।)  अब हर एक का बयान जुदा-जुदा किया जाता है।।                         

( पहले गुरु और साध के चरणों पर मत्था टेकना या चरण छूना):-

 इस कार्रवाई से मतलब यह है कि गुरु और साध की दया हासिल होवे और चरणों को स्पर्श करके यानी छूकर वह शीतल रुहानी धार, जो हर वक्त उनके चरणों से निकलती रहती है, प्रेमी प्रमार्थी  की रूह यानी सुरत और देह में असर करें ।

 अब मालूम होवे कि हर शख्स की कुल देह से और खासकर हाथ और पैर से हर वक्त चैतन्य धार रोशनी रुप निकलती रहती है।  जो संसारघ और दुनियादार लोग हैं और खास करके वे जो नशे की चीज खाते पीते रहते हैं और मांसाहार भी करते हैं उनकी धार उनकी रहनी और खान-पान के मुआफिक बहुत नीचे के दर्जे की अथवा बनिस्बत संत और साध की धार के, जिनकी सुरत ऊंचे के देश की बासी है , बहुत मैली और कम रोशन होती है। और संत और साध की धार निहायत निर्मल और चैतन्य और रोशन होती है । यह धार वक्त छूने उनके चरण के हाथ या माथे से फौरन सोने वाले के बदन में समा जाती है और उसकी रूह यानी सुरत में ऊपर के देश की तरफ झुकाव और संत चरण में प्रीति पैदा करती है।  हर मुल्क और हर कौम के लोगों में जहां जहां आपस में प्रीति या रिश्तेदारी है यह दस्तूर जारी है कि चाहे मर्द होवे हो या औरते, जब आपस में मिलते हैं तो किसी ना किसी तरह से एक दूसरे के बदन को छूते हैं ,जैसे किसी कौम में छाती से छाती लगाकर मुलाकात करते हैं या हाथया पाँव छूते हैं और किसी कौम में सिर्फ हाथ मिलाते हैं और ज्यादा प्यार और मोहब्बत या रूप की जगह मुहँ या हाथ चूमते हैं।


क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**





**परम गुरु हजूर साहबजी महाराज -

सत्संग के उपदेश -भाग 2 -(47)-

【 मजहबो का बिगाड़ कैसे होता है 】

:-इस जमाने में क्योंकि हर शख्स को जमीर व ख्यालात के लिए पूरी आजादी हासिल है इसलिए देखने में आता है कि हर मुल्क के अंदर तालीमयाफ्ता लोग अपने बुजुर्गों की कायम की हुई संस्थाओं और पुराने जमाने से नस्लन् बाद नस्लन् चली आती हुई बातों पर बरमला नुक्ताचीनी कर रहे हैं।

चुनांचे मजहब यानी परमार्थ के मजमून के मुतालिक भी, जो पिछले दिनों निहायत मुतर्बिक  ख्याल किया जाता था और जिसके मुतअल्लिक़ बातचीत करने का हक महज पंडितों, मौलवियों, पादरियों का या इसी किस्म के और चुने हुए लोगों को हासिल था, खुल्लमखुल्ला रायजनी हो रही है और मजबूरन तस्लीम करना पड़ता है कि इन दिनों पुराने जमाने के बुजुर्गों और महात्माओं के कलाम के लिए पहले की सी ताजीम नहीं रही।

जमीर व ख्यालात के मुतालिक आजादी का प्रचार तो कोई बुरी बात नहीं बल्कि इंसान को इंसान बनाने के लिए निहायत जरूरी है मगर आजारख्याली के ये यह मानी ना होने चाहिए कि जिसके मुंह में जो आये कह दे।  बहुत सी बातें हैं जिन पर सरसरी नजर डालने के से एक राय कायम होती है लेकिन गहरा गोता मारने पर राय बिल्कुल मुख्तलिफ हो जाती है।

 इसलिए बुजुर्गों की संस्थाओं व शिक्षा के मुतअल्लिकक रायजनी का हक ऐसे लोगों को हासिल होना चाहिए जिनके अंदर माद्दा व काबिलियत बुजुर्गों के नुक्तएनिगाह को समझने और उनके ख्यालात की तक पहुंचने की मौजूद हो।

 मगर अफसोस है कि सस्ती छफाई व बेदाम तकरीरी मैदानों की वजह से हर शख्स बुजुर्गों की तालीम का बिलातकल्लुफ मजहका उडाता है और नाहक मजहब यानी सच्चे परमार्थी का नाम बदनाम करता है।

क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय राधास्वामी
।।।।।।।।।।। 

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