Wednesday, March 23, 2011

अंतहीन

अंतहीन
तू नहीं है मगर ....फिर भी तू साथ है .....
पास हो कोई भी.....तेरी ही बात है .....
तू मेरे अंदर है ....तू ही मेरे बाहर है ......
जब से तुझको जाना है......मैंने अपना माना है ....
मगर आना इस तरह तुम की.......यहाँ से फिर ना जाना......
गई इस कदर कि बस्स
फिर नहीं,,,,,,
नहीं
आई..................................................।

कविता किसी और की है,मगर .............अपनी सी लगी
अनामी
23.03.2011

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