Tuesday, June 21, 2011

रेप प्रदेश : शाम के बाद घरों से न निकले महिलाएं!

Written by डा. आशीष वशिष्‍ठ Category: सियासत-ताकत-राजकाज-देश-प्रदेश-दुनिया-समाज-सरोकार Published on 21 June 2011
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जैसे-जैसे 2012 विधानसभा चुनावों का समय नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे विपक्षी दलों के साथ ही साथ अपराधी भी यूपी की मायावती सरकार की परीक्षाएं ले रहे हैं। प्रदेश भर में एक के बाद एक हो रहे बलात्कार कांड ने यूपी की कानून-व्यवस्था की पोल-पट्टी खोल कर रख दी है। मायावती कानून व्यवस्था के चुस्त-दुरूस्त होने के चाहे लाख दावे करें लेकिन बेखौफ अपराधी सरकार के आंकड़ों और दावों को सरे आम मुंह चिढ़ा रहे हैं। 13 मई को सरकार के चार साल पूरे होने के अवसर पर जारी पुस्तिका में माया सरकार ने प्रदेश भर में अपराधियों पर नकेल कसने और अपराध नियत्रंण के जो लंबे-चौड़े दावे किए थे वो आंकड़ों की धोखेबाजी के अलावा कुछ और दिखाई नहीं देता है। मायावती एक ओर अपनी पार्टी के विधायकों और मंत्रियों के कुकृत्यों से परेशान हैं उस पर बेखौफ अपराधी और दबंग माया सरकार को खुली चुनौती दे रहे हैं।


अभी हाल ही में माया सरकार के दो विधायकों शेखर तिवारी और आंनंद सेन को हत्या के मामले में सजा सुनाई गई है। प्रदेश के गन्ना विकास संस्थान के चेयरमैन राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त इंतिजार आब्दी उर्फ बाबी का राजधानी के चर्चित सैफी हत्याकांड में हुई गिरफ्तारी ने सरकार को एकबार फिर कटघरे में खड़ा कर दिया है। डैमेज कंट्रोल के लिए सरकार चाहे जितनी सख्त से सख्त कार्रवाई करे लेकिन कानून-व्यवस्था के बिगड़ते हालात ये बताते हैं कि सरकारी मशीनरी का ध्यान कानून-व्यवस्था के बजाए लूटपाट, भ्रष्टाचार और सत्ता की सेवा में लीन है। प्रदेश में गरीब, किसान, महिलाओं और शोषितों की आवाज सुनने वाला कोई नहीं है। सरकार घटना घट जाने पर लाठी पीटने और मुआवजा देकर अपनी छवि सुधारने का काम तो करती है लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि अपराधियों को पुलिस-प्रशासन का कोई खौफ नहीं है तभी तो दिनदहाड़े महिलाओं और बच्चियों का बलात्कार हो रहा है। कहीं खेत से किसी की लाश मिलती है तो कहीं बलात्कार की कोशिश में नाकाम रहने पर अपराधी लड़की की आंखें ही फोड़ देते हैं।

सूबे में कानून व्यवस्था बुरी तरह चरमरा चुकी है आज एक महिला मुख्यमंत्री के शासन में महिलाएं ही सबसे ज्यादा असुरक्षित नजर आ रही हैं. कन्नौज में नाबालिग लड़की से रेप की कोशिश में नाकामी पर आंख फोड़ने की घटना के 48 घंटे के भीतर यूपी में छह और महिलाएं दरिंदों की हवस की शिकार बन गई. इन घटनाओं से ऐसा लग रहा है कि यूपी हर तरफ जंगलराज कायम हो गया है और भूखे भेडिए हर तरफ बेखौफ महिलाओं को अपना शिकार बना रहे हैं। उस पर बेशर्मी की हद की पुलिस कानून व्यवस्था को सही बताते हुए मीडिया पर ही गलत खबर देकर छवि खराब करने का आरोप लगाया है। एडीजे बृजलाल ने मीडिया से कहा है कि वो पुलिस की छवि लोगों के बीच खराब ना करे वहीं प्रदेश के मुख्य सचिव अनूप मिश्र ने दिल्ली में प्रदेश की बिगड़ती कानून व्यवस्था और 48 घंटों की अंदर 6 बलात्कार और एक बलात्कार की कोशिश की घटना के बारे में पूछे गए सवाल को हल्के में लेते हुए 'ऐसी छोटी मोटी घटनाएं होती रहती हैं'  और 'प्रदेश में कानून व्यवस्था सामान्य है'  कह कर सरकार का पक्ष रखा।   

कन्नौज में एक 14 साल की लड़की से बलात्कार की कोशिश की गई और नाकाम रहने के बाद उसकी आंखों पर घातक वार किए गए। घटना कन्नौज के गुरपुरवा गांव की है। आरोपी कुलदीप और निरंजन यादव उसे रास्ते में रोककर पहले खेतों में ले गए, जहां उसे घसीटा और फिर बलात्कार की कोशिश की। विरोध करने पर उसकी दोनों आंखों में चाकू से वार किए। बाद में वे बेहोश लड़की को खेत में ही छोड़कर फरार हो गए। गांव वालों को जानकारी मिलने के बाद वे उसे अस्पताल ले गए। डॉक्टरों ने बताया कि लड़की की एक आंख की रोशनी पूरी तरह चली गई है और शायद ही सामान्य स्थिति में आ पाएगी। उसे इलाज के लिए कानपुर भेजा गया है। कन्नौज की घटना के बाद एटा में एक दलित महिला से पांच लोगों ने गैंग रेप किया। उसके बाद उसे जला दिया गया, गंभीर रूप से झुलसी महिला की इलाज के दौरान अस्पताल में मौत हो गई। घटना के बाद सभी आरोपी फरार हैं। मामला जिले के निधौली कलां थाना क्षेत्र के सभापुर गांव का है। सोमवार की सुबह अनारकली (33 वर्ष) के घर में घुसकर बलात्कार किया गया।

गोड़ा के करनैलगंज में एक नाबालिग दलित किशोरी से गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गई. हत्या के बाद बलात्कारी उसके शव को गन्ने के खेत में फेंककर भाग गए। जिले के करनैलगंज के मसौलिया गांव के निवासी राजेश की चौदह वर्षीय बेटी 16 जून से ही लापता थी। खेत पर जाने के बाद वह वापस नहीं लौटी। रविवार को गन्ने की खेत से उसका शव बरामद हुआ। उसके साथ भी गैंग रेप होने की आशंका जताई जा रही है। पुलिस ने कहा है कि पोस्टमार्टम के बाद सच सामने आएगा। राजेश ने तीन लोगों के खिलाफ थाने में तहरीर दी है। फिरोजाबाद के सिरसागंज में भी एक 15 साल की नाबालिग लड़की के साथ कथित रूप से बलात्कार किया गया। मीना बाजार इलाके में लड़की के कथित प्रेमी शानू नाम के लड़के ने अपने दोस्त गट्टू के साथ मिलकर उसका बलात्कार किया। पुलिस ने शानू को गिरफ्तार कर लिया है तथा दूसरे आरोपी की तलाश जारी है।

बस्ती जिले में 18 साल की दलित लड़की के साथ एक युवक ने रेप किया। बताया जा रहा है कि उक्त युवक ने बंदूक की नोक पर लड़की का रेप किया. अपने परिवार संग स्टेशन से घर जा रही कानपुर के कर्नलगंज की एक युवती को चार गुंड़ों ने रावतपुर चौराहे से अगवा कर लिया। उसे एक होटल में रखा गया। रविवार की सुबह लड़की सफाई करने वाले लड़के की मदद से किसी तरह भाग निकली। परिजनों की शिकायत पर हरबंश मोहाल पुलिस ने होटल मैनेजर को हिरासत में ले लिया है। पुलिस का कहना है कि इस मामले में गैंगरेप की पुष्टि नहीं हुई है। युवती ने बताया कि वो भीड़ की वजह से परिवार से बिछड़ गई थी, जिसके बाद उसको अगवा किया गया। युवती के परिजनों ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने उनकी एक नहीं सुनी रिपोर्ट लिखवाने जाने पर कहा कि कहीं चली गई होगी। बस्ती के रानीपुर बेलादी गांव में एक युवक ने बंदूक की नोंक पर बलात्कार किया। पुलिस ने आरोपी सत्ती सिंह के खिलाफ मामला पंजीबद्ध कर लिया है और आरोपी की तलाश की जा रही है। राज्य में पिछले दिनों अपराध की बढ़ती घटनाओं पर राजनीति भी शुरू हो गई है। कांग्रेस ने यूपी की सत्तारुढ़ बसपा सरकार पर अपराधियों की मदद करने का आरोप लगाया है।

असलियत यह है कि प्रदेशे में लगभग पूरा सरकारी अमला लूटपाट और भ्रष्टाचार में लिप्त है। पुलिस प्रशासन अपने विवेक को एक किनारे पर रखकर सत्ताधारी दल के एजेंट की भांति काम कर रहा है। कहीं डीआईजी स्तर का अधिकारी किसी प्रदर्शनकारी को जूते से मसलने में शान समझता है, तो कहीं सीओ और एसपी स्तर के अधिकारी अपनी नेम प्लेट छुपाकर अहिंसक प्रदर्शनकारियों पर बर्बरतापूर्वक डंडे बरसाना ही अपनी डयूटी समझते हैं। मायावती ने चुनावों के मद्देनजर प्रशासनिक अधिकारियों के व्यापक स्तर पर फेरबदल किया है ताकि चुनावों के समय उनके चहेते पालतू अधिकारी सरकारी एजेंट की भांति सत्ताधारी दल की चाकरी कर सके। निजी स्वार्थों और प्रोमोशन के भूखे तथाकथित अधिकारी अपनी जान पर खेलकर बहनजी के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं। सत्ता की चाकरी और चापलूसी के चलते प्रदेश की कानून व्यवस्था चरमरा कर रह गई है। अपराधियों को ये भली भांति ज्ञान है कि जब प्रदेश में सत्ताधारी दल के विधायक और मंत्री अपराधों में संलिप्त हैं तो उनको पूछने वाला कौन है अर्थात चोर चोर मौसेरे भाई। मायावती सख्त कानून और प्रशासन के चाहे जितने भी दावे करे लेकिन जमीनी सच्चाई किसी से छिपी नहीं है। सरकार ने जनता की आवाज को दबाने के लिए धरना, प्रदर्शन के लिए कानून बनाकर जो मिसाल देशभर के सामने पेश की है वो अपने आप में अनूठी है। जिस सरकार में जनता की आवाज और विरोध का स्वर सुनने की क्षमता नहीं है वो कितनी लोकतांत्रिक और जनकल्याणकारी होगी इसे बताने की कोई जरूरत नहीं है।

माना कि प्रदेश बड़ा है और समस्याएं भी बड़ी हैं लेकिन किसी भी तरह के उलूल-जलूल बहाने बनाकर सरकार और सरकारी अमला अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकता है। असल में जब प्रशासन में पारदर्शिता का अभाव होता है तभी अपराधियों का हौंसला बुलंद होता है। जब अपराधियों को ये मालूम हो कि उन्हें बचाने वाले खद्दरदारी लखनऊ में बैठे हैं तो अपराधी प्रदेश भर में घूम-घूम कर खुला तांडव तो करेंगे ही। राजधानी के चर्चित सैफी हत्याकांड में शामिल राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त इंतिजार आब्दी उर्फ बाबी का प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दकी के घर के बाहर गिरफ्तारी आखिरकर क्या इशारा करती है? कहीं भी कोई कांड या घटना घट जाने पर सरकारी अमले की कोशिश पीड़ित पक्ष को राहत पहुंचाने के बजाए मामला रफा-दफा करने में लगी रहती है। घंटों इधर-उधर भटकने और उच्च अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद ही एफआईअर दर्ज हो पाती है। भारी जन दबाव और विपक्षी दलों के चिल्लाने पर सरकार की आंख खुलती है और फिर समूचा सरकारी अमला झाड-पोंछ और डैमेज कंट्रोल में लग जाता है। सरकार घटना के कारणों को जानने की बजाए लीपापोती में अधिक विश्‍वास करती है। चाहे किसी भी घटना का इतिहास उठाकर देख लीजिए प्राथमिक स्तर पर आपको सरकारी अमले की नाकामी और नालायकी ही दिखाई देगी। भट्ठा पारसौल की घटना हो या फिर शीलू बलात्कार कांड सरकार पहले पहल घटना को छुपाने की ही कोशिश में लग रहती है। मीडिया, जनता और विपक्षी दलों कें हस्तक्षेप के बाद सरकार जाग पाती है। असल में माया सरकार में लोकतांत्रिक व्यवस्था की जगह तानाशाही रवैया अधिक अपनाया जाता है। मायावती अपने सामने किसी दूसरे की सुनती ही नहीं है। कुछ गिन-चुने आला अधिकारियों के अलावा बड़े-बड़े नौकरशाहों की इतनी हिम्मत और औकात नहीं है कि वो सीएम से मिल पाएं। अगर कभी कभार सीएम से मुलाकात का कोई अवसर आ भी गया तो अधिकतर आला अधिकारी बहनजी की चरण वन्दना और चापलूसी में ही लगे रहते हैं। बहनजी को उनके मातहत चाहे जो भी विकास और अपराध नियंत्रण की तस्वीर दिखा रहे हों,  लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि प्रदेश में गरीब, किसान और महिलाएं अत्यधिक दुःखी और प्रताडित हैं लेकिन सरकारी अमला कागजी कार्रवाई और फर्जी आंकड़ेबाजी में मशगूल है।

बहन मायावती स्वयं एक महिला हैं और मैं ये जानता हूं कि एक महिला होने के नाते वो एक महिला का दर्द बखूबी समझ सकती हैं। मायावती की गिनती विश्‍व की ताकतवर महिलाओं में होती है ऐसे में प्रदेश की महिलाएं उनसे यही उम्मीद करती हैं कि उनके राज में कम से कम महिलाओं की इज्जत-आबरू सलामत रहेगी। मायावती को स्वयं इन घटनाओं का संज्ञान लेकर पुलिस प्रशासन के पेंच कसने चाहिए और सरकारी अधिकारियों द्वारा की जा रही ओछी बयानबाजी और दूसरे पर आरोप लगाने की प्रवृत्ति पर एकदम ब्रेक लगानी होगी, क्योंकि एक महिला मुख्यमंत्री के होते अगर महिलाओं असुरक्षित हैं तो ये बड़े शर्म और चिंता की बात है।
लखनऊ से डा. आशीष वशिष्‍ठ की रिपोर्ट.

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