Saturday, October 8, 2011

क्रिकेट की कब्रगाह बन गया है पाकिस्तान








क्रिकेट पर हमला हुआ. मैच खेलने जा रही श्रीलंकाई क्रिकेट टीम पर लाहौर में आतंकवादियों ने हमला किया. क्रिकेट आयोजनों पर आतंक के  बादल तो पहले से ही मंडरा रहे थे लेकिन क्रिकेट इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी टीम पर सीधा हमला हुआ हो. पहली बार आतंकी हमले की मार क्रिकेट के खिलाड़ियों को सीधे झेलनी पड़ी है. पहली बार किसी घटना में खिलाड़ी घायल हुए. लाहौर के गद्दाफी स्टेडियम के बाहर लिबर्टी मार्केट में करीबन 12 आतंकवादियों ने श्रीलंकाई टीम बस पर हमला किया. फायरिंग के साथ ग्रेनेड हमला भी हुआ. श्रीलंकाई टीम के  छह खिलाड़ी और टीम स्टाफ घायल हुए. थरंगा प्राणविताना, कुमार संगाकारा, समरवीरा, जयवर्धने, मेंडिस, वास और टीम स्टाफ पॉल फारब्रेस गोलियों और बम के छर्रों से घायल हुए. दौरे के जारी रहने का तो खैर सवाल ही नहीं था, सो श्रीलंकाई टीम को जल्द से जल्द पाकिस्तान से वापस ले जाया गया. यह पूरा घटनाक्रम चौंकाने वाला था. लाहौर की यह घटना 1972 के म्यूनिख ओलंपिक की याद दिलाती है. 5 सितंबर को फिलिस्तीनी आतंकवादी ओलंपिक के खेलगांव में घुस गए थे. ब्लैक  सितंबर नाम के संगठन के आतंकवादियों ने 11 इज़रायली खिलाड़ियों की बंधक बनाने के बाद हत्या कर दी थी. इस घटना ने खेल आयोजनों का भविष्य ही बदल कर रख दिया था. कहीं न कहीं सुरक्षा में चूक हुई थी. तब से सभी खेल आयोजन संगीनों के साए में हुए हैं. क्रिकेट भी अपने हिस्से का आतंकवाद झेल रहा था, लेकिन अब तक किसी भी घटना में खिलाड़ियों को निशाना नहीं बनाया गया था. जाहिर है मकसद ज्यादा से ज्यादा ध्यान बटोरना है. इस तरह खिलाड़ियों को सीधे निशाना बनाने की पूरी घटना आश्चर्यजनक है. आश्चर्य बस एक बात पर नहीं होता कि यह सारा कुछ पाकिस्तान में हुआ. इस घटना ने दुबारा यह साबित कर दिया है कि पाकिस्तान का खेल प्रशासन फेल हो चुका है. अकेले खेल प्रशासन ही क्यों यहां तो पूरा का पूरा देश असफल होने की होड़ में जुटा लगता है. बर्बादी की कगार पर खड़े एक राज्य- इन हालातों में पाकिस्तान को राष्ट्र कहना व्यवहारिक बात तो कतई न होगी-  से इससे अलग उम्मीद भी नहीं थी. ऐसा नहीं है कि सिर्फ पाकिस्तान ही क्रिकेट में आतंकवाद का शिकार बना है, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका के देशों में आतंकवाद से खेल आयोजनों को हमेशा नुकसान हुआ है. सुरक्षा कारणों से कई बार दौरे रद्द भी हुए, देशों ने श्रीलंका और जिम्बावे जैसे देशों में खतरे के नाम पर खेलने से मना भी किया है, लेकिन पाकिस्तान जैसी हालत कभी नहीं हुई.  इस घटना की पड़ताल जरूरी है, हमला ठीक उस स्टेडियम के बाहर हुआ जहां श्रीलंका और पाकिस्तान के बीच दूसरा टेस्ट चल रहा था. यह दौरा खुद एक स्टाप गैप दौरा था. इस टेस्ट सीरिज के पहले की परिस्थितियां याद करें, भारत के दौरे के पर न आने और फिर चैंपियंस ट्रॉफी के  रद्द होने से पाकिस्तान की साख मिट्टी में मिल चुकी थी. एक किस्म का बहिष्कार झेल रहा पाकिस्तानी क्रिकेट जिम्बावे और रंगभेद के दिनों के  दक्षिण अफ्रीका की तरह अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान गंवाने की कगार पर था. तब श्रीलंका टीम ने पाकिस्तान का दौरा करने का फैसला कर पाकिस्तान को राहत दी थी. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो दौरा पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय पहचान वापस दिला सकता था उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी पाकिस्तान का सुरक्षा तंत्र नहीं निभा सका. पाकिस्तान की इस चूक ने विश्व क्रिकेट मानचित्र पर उसकी वापसी के रास्ते बंद कर दिए हैं, साथ ही श्रीलंका के रूप में उसने अपना आखिरी पैरोकार भी खो दिया है. श्रीलंकाई टीम को पाकिस्तान के साथ क्रिकेटिंग रिश्ते निभाने की जो कीमत चुकानी पड़ी है उसके बाद कोई भी टीम पाकिस्तान आने की सोचेगी भी नहीं. पाकिस्तानी क्रिकेटप्रेमियों के लिए यह बात     निराशाजनक भले हो लेकिन वे भी समझ रहे हैं कि अब पाकिस्तान में खेलना एक जानलेवा खेल बन गया है. फिर यह कोई पहली बार तो नहीं कि पाकिस्तान में आतंकवाद ने खेल को शिकार बनाया हो. पिछले कुछ सालों में दुनिया भर की टीमों को आतंकी घटनाओं की वजह से अपने पाकिस्तानी दौरे रद्द किए हैं. आंकड़े पाकिस्तान के खिलाफ बोलते हैं. तो क्या पाकिस्तान के क्रिकेट परिदृश्य के लिए अब कोई उम्मीद नहीं दिखती? जवाब होगा नहीं, यह जवाब अफसोसनाक भले हो लेकिन वास्तविकता यही है. दरअसल पाकिस्तान में आजकल जिस तरह से आतंकवाद, राजनीतिक और सैनिक मसलों पर आपसी सरफुटौव्वल चल रही है, उसमें पाकिस्तान का खुद का अस्तित्व बचता नहीं दिखता, क्रिकेट आयोजनों का मसला तो दूर का है.  इस पूरी घटना में एकमात्र अच्छी बात यह रही कि किसी खिलाड़ी की जान नहीं गई, नहीं तो इस घटना के  परिणाम दुनिया के लिए चौंकाने वाले होते. लाहौर जैसी घटनाओं के दुहराव से बचने के लिए जरूरी है कि वास्तविकता को समझा जाए. पाकिस्तान जैसे देशों के हालात से सबक लेकर फैसले किए जाएं. खेल को मैदानी जोर-आजमाइश तक ही रहने दिया जाए, जिंदगी से खिलवाड़ का खेल ना बनने दिया जाए.  पाकिस्तान में हालात काफी गंभीर हैं. खिलाड़ियों पर हुए इस हमले ने उसकी बची-खुची साख भी खत्म कर दी है. पाकिस्तान क्रिकेट अब गहरे संकट में फंस चुका है. अगले विश्व कप यानी 2011 में उसकी मेजबानी भी ख़तरे में पड़ गई है. आईसीसी की भंवें पहले ही तनी हुई थीं. इस हमले ने आईसीसी के लिए ़फैसला लेने का काम आसान ही किया है. हालांकि आधिकारिक निर्णय अभी होना बाक़ी है, पर हालात तो यही बताते हैं कि पाकिस्तान बहिष्कृत होगा.

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