Wednesday, August 17, 2022

कोइ सुनो हमारी बात,

 कोइ  सुनो  हमारी  बात, 

कोइ  चलो   हमारे  साथ ॥ १ ॥


क्यों  सहो  काल  की  घात,

जम धर धर  मारे  लात ॥ २॥


तुम  चढ़ो  गगन  की बाट, 

तो  खुले अधर  का पाट ॥३ ॥


घट  बाँधो  दृढ़  कर  ठाट,

 छूटे   यह  औघट  घाट ॥ ४॥ 


शब्द   रस  भरो  सुरत  के  माट,

बंक  चढ़ खोलो सुखमन घाट॥ ५ ॥


नाम   की    मिली  अपूरब   चाट,

 अब   सोऊँ   बिछाये   खाट ॥ ६ ॥


चेतन की जड़ से खोली साँट',

 उलट मन कला  खाय ज्यों नाट ॥ ७ ॥


मानसर  देखा  चौड़ा  फाट,

  गया  फिर  परदा सु न का  फाट ॥ ८ ॥


काल की डारी गर्दन काट,

कर्म की खुल  गई  भारी  आँट ॥ ९ ॥


सुन्न का  लिया अमी रस बाँट,

शब्द  की खुली  हिये में हाट॥ १०॥


मोह मद  हो  गये बारह  बाट,

  मिले अब सतगुरु मेरे तात ॥ ११॥


बाल ज्यों पावे पित और मात,

कहूँ क्या खोल यह बिख्यात ॥ १२॥  


अब   चले   न  माया   घात,

  झड़   पड़ी  बृक्ष  ज्यों   पात ॥ १३॥


कर्म की कीन्ही बाज़ी मात,

लखी जाय सुन में धुन की भाँत॥ १४॥


टूट  गया  पिंड  से मेरा नात,

दिखाई गुरु ने  अचरज क्रांत ॥१५॥


पाई  अब   मैं  ने  ऐसी  शांत, 

अब   रही  न  कोई   भ्रांत  ॥१६॥ 


गुरु  करी  प्रेम   की  दात, 

सुरत  अब  हुई  शब्द  की  जात'॥ १७॥ 


सुरत रहे लागी दिन और रात,

शब्द रस अब नहिं छोड़ा जात॥ १८॥


गुरु  का  दम दम  अब गुन गात,

 अमर  पद पाया छूटा गात ॥ १९॥


नाम धुन चली  अधर से  आत,

अर्श का  चरखा  डाला कात ॥ २०॥


राधास्वामी  धरा  सीस  पर  हाथ,

 मैं  तजूँ  न  उन  का  साथ ॥ २१॥

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