Monday, May 4, 2020

भक्ति का तेज




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 "भक्त भीम कुम्हार की पत्नी"

         
दक्षिण में वेंकटाचल (तिरुपति बालाजी) के समीप कूर्मग्राम में एक कुम्हार रहता था। उसका नाम था भीम। वह भगवान का बड़ा भक्त था। साधारण लोगों को उसकी भाव-भक्ति का कुछ भी पता नहीं था। परन्तु अन्तर्यामी वेंकटनाथ उसकी प्रत्येक सेवा बड़ी प्रसन्नता के साथ स्वीकार करते थे। कुम्हार और उसकी पत्नी दोनों भगवान् श्री निवास के अनन्य भक्त थे।
          इन्हीं दिनों भक्तप्रवर महाराज तोण्डमान प्रतिदिन भगवान् श्रीनिवास की पूजा सुवर्णमय कमल पुष्पों से किया करते थे। एक दिन उन्होंने देखा, भगवान के ऊपर मिट्टी के बने हुए कमल तथा तुलसी पुष्प चढ़े हुए हैं। इससे विस्मित होकर राजा ने पूछा, "भगवान्! ये मिट्टी के कमल और तुलसी पुष्प चढ़ाकर कौन आपकी पूजा करता है ?" भगवान ने कहा, "कूर्मग्राम मे एक कुम्हार है, जो मुझ मे बड़ी भक्ति रखता है। वह अपने घर में बैठकर मेरी पूजा करता है और मैं उसकी प्रत्येक सेवा स्वीकार करता हूँ।"
          राजा तोण्डमान के हृदय मे भगवद्भक्तों के प्रति बड़े आदर का भाव था। वे उस भक्तशिरोमणि कुम्हार का दर्शन करने के लिये स्वयं उसके घर पर गये। राजा को आया देख कुम्हार उन्हें प्रणाम करके हाथ जोड़कर खड़ा हुआ। राजा ने कहा, "भीम! तुम अपने कुल में सबसे श्रेष्ठ हो, क्योंकि तुम्हारे हदय मे भगवान् श्रीनिवास के प्रति परम पावन अनन्य भक्ति का उदय हुआ है। मैं तुम्हारा दर्शन करने आया हूँ। बताओ, तुम भगवान की पूजा किस प्रकार करते हो?"
          कुम्हार बोला, "महाराज ! मैं क्या जानूँ कि भगवान की पूजा कैसे की जाती है ? भला, आपसे किसने कह दिया कि कुम्हार पूजा करता है?"
          राजा ने कहा, "स्वयं भगवान् श्रीनिवास ने तुम्हारे पूजन की बात बतायी है।"
          राजा के इतना कहते ही कुम्हार की सोयी हुई स्मृति जाग उठी। वह बोला, "महाराज! पूर्वकाल मे भगवान् वेंकटनाथ ने मुझे वरदान दिया था कि जब तुम्हारी की हुई पूजा प्रकाशित हो जायगी और जब राजा तोण्डमान तुम्हारे द्वार पर आ जायँगे तथा उनके साथ तुम्हारा वार्तालय होगा, उसी समय तुम्हें परमधाम की प्राप्ति होगी।"
          उसकी यह बात जैसे ही पूर्ण हुई, उसी समय ही आकाश से एक दिव्य विमान उतर आया। उसके ऊपर साक्षात् भगवान् विष्णु विराजमान थे। कुम्हार और उसकी पत्नी ने भगवान को प्रणाम करते हुए प्राण त्याग दिये तथा राजा के देखते-देखते वे दोनों दिव्य रुप धारण करके विमान पर जा बैठे। विमान उन्हें लेकर परम धाम वैकुण्ठ को चला गया।
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                          "जय जय श्री राधे"
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