*आज भी हुज़ूर राधास्वामी दयाल की दया से जबकि परिस्थिति अत्यंत गम्भीर है मुझे पूरा विश्वास है कि हमने उल्टी धार बहाई है और हम न केवल मध्यप्रदेश के जबलपुर हाई कोर्ट न्यायाधिकरण में अपितु राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में स्फ़ीहा के माध्यम से अपील करेंगे।
आप जानते हैं श्री एम.ए.पठान का परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज के परिवार के साथ घनिष्ठ सम्बंध रहा है। उन्होंने सदैव मुझे ऐसे उपायों में भी सहायता प्रदान की है जो देखने में गुरुडम 'Gurudam' के उम्मीदवार के कुछ विरुद्ध प्रतीत होती हो।
मुझे कोई समस्या नहीं थी किन्तु परम गुरु हुज़ूर लाल साहब ने संकेत दिया था कि उनका उत्तराधिकारी जयघोष प्रक्रिया द्वारा चुना जाएगा, किसी दूसरे के द्वारा नामांकित नहीं होगा। तो इस प्रकार मैं डायरेक्टर बना। उसके बाद भी उन्होंने अपने को DEI (डीम्ड टु बी यूनिवर्सिटी) के अध्यक्ष/कुलपति और निदेशक/उप-कुलपति के पद से दूर रखा।
अपने कार्यकाल में उन्होंने जिस अवैतनिक पद पर कार्य किया मैंने भी अपने कार्यकाल में उसका अनुसरण किया। इस प्रकार एडवाइज़री कमेटी ऑन एजुकेशन (ACE) जो एक ग़ैर-वैधानिक संस्था है, कोई भी मुझे मेरे द्वारा पूर्ण मूल्यांकन करने व उसे सार्वजनिक रूप से घोषित करने के लिए नहीं रोक सकता है।
पिछली बार भी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने जिला प्रशासन पर एक लाख रुपयों का अर्थ-दण्ड लगाया था; उन्हें वह पैसा हमें देना पड़ा।
इस बार हमें पुनः उम्मीद है कि पठान साहब के माध्यम से किए गए हमारे प्रयास में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग हमारे पक्ष में अपना निष्पक्ष निर्णय देगा। तो हम केवल जबलपुर हाईकोर्ट के न्यायाधिकरण पर ही निर्भर नहीं हैं जिसने प्रचलित व्यवस्था को विचलित किए बिना तीसरी बार यथा स्थिति बनाए रखने का निर्णय दिया है।
तो शरारती लोग इसका उल्लंघन कर रहे हैं जबकि वह हमारे राजाबरारी एस्टेट के 10 ढाना से बाहर के हैं, उन्हें हमारे काम में हस्तक्षेप करने का कोई हक़ नहीं है।
यह सुस्पष्ट है कि यह भवन निर्माताओं का समर्थक वर्ग है जो कुछ वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों को बड़ी मात्रा में घूस देकर प्रभावित कर रहा है। इसके साथ कुछ ऐसा हुआ है कि वहाँ पर सभी अधिकारी जनजाति (Tribal) समुदाय से हैं।
अतः हम आशा करते हैं कि वे देश का कानून तथा सक्षम संस्थाएं सुप्रीम कोर्ट, जबलपुर हाईकोर्ट न्यायाधिकरण व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आदेशों का सम्मान करते हुए न्याय संगत निर्णय लेंगे जिससे उनके द्वारा दिए गए आदेशों का उल्लंघन न हो। जिला स्तर पर कलैक्टर उच्चतम अधिकारी होता है।
उन्होंने भी श्रीमती माला श्रीवास्तव के साथ कार्य किया हुआ है। हम यह आशा करते है कि वे इस प्रकरण में उचित व निष्पक्ष दृष्टिकोण रखेंगे। इस उम्मीद को और सुद्ढ़ (सशक्त) बनाने में हम एक बार फिर पठान साहब से सलाह ले रहे हैं कि किस प्रकार सही व वास्तविक परिस्थिति को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया जाए जो कि इस प्रकार की समस्याओं को बेहतर समझते व प्रतिक्रिया करते हैं, और हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट की अपेक्षा बेहतर समझते हैं क्योंकि यह संस्थाएँ सामयिक प्रशासन से प्रभावित हैं न कि पूर्व की भाँति पूर्णतया स्वतंत्र स्तर रखते हों।
आज की सरकार संयुक्त सचिव के माध्यम से प्रदेश के प्रधान सचिव और यहाँ तक मुख्य सचिव के ऊपर भी अपनी सत्ता का प्रयोग करती है और जैसा कि मैंने कहा है कि हमने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के माध्यम से पक्षपाती संगठनों पर पूर्व में अर्थ-दण्ड द्वारा क्षतिपूर्ती प्राप्त की थी। संबंधित हाई कोर्ट भी और अधिक सख़्त निर्णय देता किंतु जो व्यक्ति इस केस का प्रतिनिधित्व कर रहा था वह तो तत्काल जेल में बंद किए जाने के पूर्वानुमान से ही बेहोश हो गया ।
वास्तव में या बनावटी रूप में वह ज़मीन पर चित्त हो गया जिससे हाईकोर्ट के संबंधित जज ने अपना* *निर्णय स्थगित कर दिया। किंतु राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने स्वतन्त्र रूप से जिला अधिकारियों पर एक लाख रुपये का दण्ड लगाया, जिसका उन्होंने भुगतान किया। तो वह विषय सुलझ गया था और हम स्वतन्त्र रूप से रह रहे हें।
समय-समय पर विनाशकारी लोग हमें परेशान करने का प्रयत्न करते हैं किन्तु हमने अपना स्वतन्त्र निकाय का स्तर बनाए रखा है। तो हम उम्मीद करते हैं कि राजाबरारी एस्टेट में जिले के अधिकारियों व विभिन्न दस ढानों से सहज सम्पर्क बनाए रखने के लिए तिमरनी व राजाबरारी दोनों स्थानों पर आफ़िस बनाए रखते हुए हम अपनी लाभकारी सेवाओं को पूर्व की भाँति प्रदान करते रहेंगे।
यह स्पष्ट है कि राजाबरारी एस्टेट या उसके 10 ढानों से बाहर के व्यक्ति का हमारे द्वारा की जा रही कल्याणकारी योजनाएँ जो कि केवल हमेशा वहाँ के मूल निवासियों के लिये हैं और भविष्य में भी रहेंगी, में कोई न्यायिक भूमिका नहीं हैं।**
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*(क्रमशः)**
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