I *राधास्वामी!/ 26-10-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-
सुरत पियारी उमँगत आई ।
गुरु दरशन कर अति हरषाई ॥१॥*
*प्रेम सहित सुनती गुरु बचना । मन माया अँग छिन छिन तजना ॥२॥*
गुरु सँग प्रीति करी उन गहिरी ।
सुरत निरत हुई चरनन चेरी ॥३॥
हिये बिच उठी अभिलाषा भारी । आरत सतगुरु करूँ सँवारी ॥४॥*
हिये अनुराग थाल कर लाई ।
बिरह प्रेम की जोत जगाई ॥५॥
सुन्दर बस्त्र प्रीति कर साजे ।
उमँग नवीन हिये में राजे ॥६॥
भोग सुधा रस आन धराई ।
हरष हरष गुरु आरत गाई ॥७॥
अति कर प्रेम भाव हिये परखा ।
दया दृष्टि से सतगुरु निरखा ॥८॥*
*चरन भेद दे सुरत चढ़ाई । करम भरम सब दूर पराई ॥९॥
◆◆◆कल से आगे◆◆◆
मेहर हुई निज भाग जगाये ।
घट में दरशन सतगुरु पाये ॥१०॥
आँख खुली तब निज कर देखा ।
जग जीवन का जस है लेखा ॥११॥*
कोइ मूरत मंदिर में अटके ।
कोइ तीरथ कोइ बरत में भटके ॥१२॥
देवी देवा पत्थर पानी ।
राम कृष्ण में रहे भुलानी ॥१३॥
निज घर का कोई भेद न पाया ।
बिन सतगुरु सब धोखा खाया ||१४|| कस कस भाग सराहूँ अपना ।
सतगुरु ने मोहि किया निज अपना ॥१५॥ दया करी मोहि गोद बिठाया ।
सुरत शब्द मारग दरसाया ||१६||*
*चरन सरन मोहि दृढ़ कर दीन्ही ।
मेरी सुरत करी परवीनी ॥१७॥*
*नित नित प्रीति प्रतीति बढ़ाई ।
संशय कोट अब दीन उड़ाई ||१८||
गुरू राधास्वामी प्यारे ।
अपनी दया से मोहि लीन उवारे ॥१९॥
(प्रेमबानी-1-शब्द-43-
पृ.सं.198,199,200)
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