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मन, इन्द्रियां, देह व समस्त भौतिक पदार्थ व भोग आदि जड़ हैं। मात्र सुरत ही
चैतन्य है। ब्रह्मांड में त्रिकुटी और देह में 'तीसरे तिल' के स्थान से मन व माया का प्रभाव शुरू हो जाता है व नीचे की ओर पिंड या देह में बढता जाता है।
इस तरह त्रिकुटी के पद पर ही मिलौनी की शुरूआत होती है , इसी मिलौनी को जड़ व चेतन की गांठ कहा गया है, जो कि पिण्डीय या दैहिक रचना की शुरूआत से ही बंधी है।
सुरत जिन स्तरों से हो कर नीचे की ओर व पिण्ड देश में उतरी है, उन्हीं स्तरों पर स्तर दर स्तर, अभ्यास की मदद से, सुरत के ऊपर की ओर बढ़ने पर, त्रिकुटी के स्तर पर जड़-चेतन की गांठ खुल जाती है। यानी माया का प्रभाव - निचले स्तरों के अनुसार व त्रिकुटी के स्तर को पार करने पर, स्थूल व सूक्ष्म रूप से नीचे ही छूट जाता है। इससे आगे सबल माया का वज़ूद या होना नहीं है।
'सप्रेम राधास्वामी'
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राधास्वामी हैरिटेज.
(सन्तमत विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रति समर्पित).
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