**राधास्वामी! 14-10-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-
गुरु दरशन सहजहि पाई।
गगना बजत बधाई।
मैं तो हरष हरष गुन गाऊँगी ॥१॥ मेरे सतगुरु परम पियारे।
मोहि छिन में लीन उबारे ।
मैं तो चरनन पर बलि जाऊँगी ॥२॥
क्या महिमा सतसँग गा री ।
गुरु बचन सुनत सुखियारी ।
मैं तो बिमल बिमल जस गाऊँगी ॥३॥
छबि सतगुरु देख लागी प्यारी ।
मैं देखूँ दृषटि सम्हारी ।
मैं तो हिये बिच रूप बसाऊँगी ॥४॥ शोभा गुरु क्योंकर गाई।
कोटिन ससि सूर लजाई।
स्रुत चरनन ध्यान लगाऊँगी।।५।।
गुरु अगम भेद मोहि दीन्हा ।
स्रुत शब्द जुगत मैं चीन्हा ।
मन सूरत अधर चढ़ाऊँगी ॥६॥
दल सहस जोत उजियारी ।
त्रिकुटी गुरु रूप निहारी।
सुन में जाय शब्द जगाऊँगी ॥७॥ सोहँग धुन गुफा सुनाई ।
सतपुर में बीन बजाई।
चढ़ अलख अगम को पाऊँगी ॥८॥
राधास्वामी सतगुरु प्यारे।
कर दया कीन मोहि न्यारे ।
मैं तो चरन सरन विच धाऊँगी॥९॥ जग जीव करम के मारे ।
भरमों में नर तन हारे ।
मैं तो उनसे भेद छिपाऊँगी ॥१०॥
मैं तो गुरु सँग प्रीति बढ़ाती ।
तन मन धन वार धराती।
यह आरत नित नित गाऊँगी ।।११॥ घट प्रेम बढ़ा अब भारी ।
राधास्वामी की हुई दुलारी ।
हिये उमँग नवीन जगाऊँगी ॥ १२ ॥
(प्रेमबानी-1-शब्द-36-पृ.सं.187,188,199)
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