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आदि काल से वर्तमान काल कलियुग तक आते आते मनुष्य चोला अनगिनत विकारों में लिप्त हो चुका है। हम स्वयं को इन विकारों व विचारों से ऊपर लाने का प्रयास करते तो हैं, पर यह सत्य भी हम सभी जानते हैं कि, अथक प्रयास के बावजूद एैसा हो ही जाए, यह ज़रूरी नहीं है।
संतो के उपदेश , माता-पिता की सीखें , शिक्षकों द्वारा प्राप्त शिक्षाएं व सामाजिक संस्कार यह सभी कुछ हमारे लिए सुलभ होते हुए भी हमारे चेत को मनुष्य चोले से जुड़े सत्य की दिशा में लाने में असमर्थ हैं।
एैसा इसलिए नहीं कि हमें बोध नहीं, बल्कि एैसा इसलिए है कि हम अपने आत्मिक अनुभवों की दिशा में, खोज़ को महत्व देने का प्रयास ही नहीं कर पाते ।
अब विषय यह उठ जाता है कि, कैसे हम स्वयं को, आत्मिक अनुभवों की दिशा में खोज़ को महत्व दें , इसके लिए बहुत ज़रूरी है कि सबसे पहले हम स्वयं की भावनाओं का स्तर सुनिशचित कर उसके संग न्याय करना सीख जायें ।
अब जब हमारा भावनात्मक स्तर सुनिशचित हो जाए तो चाहे वह भौतिक ,मानसिक या आत्मिक कोई भी स्तर हो, स्वयं को समेटने का प्रयास करते हुए, अपने निजी स्तर अनुसार अपने आत्मिक अनुभवों पर ध्यान देना आरम्भ कर देना चाहिए ।
हमारी यही कोशिशें हमें निशचित ही विकारों, विचारों व विषयों से ऊपर लाने में मददगार होने लग जाएगीं ।
यदि इतना सब कर के भी हम कुछ भी पाने की योग्यता अनुभव नहीं कर पाते, तो केवल एक ही मार्ग बचता है, मनुष्य चोले की नियमितता को स्वस्थ रूप से जीते रहने का, कि समय रहते हम अपने आप से और अपने ईष्ट से पूरे भाव से क्षमा माँगते हुए अपने कर्मो द्वारा प्रायशचित करते रहें।
"गुरु मैं गुनहगार अति भारी"
राधास्वामी सदा सहाय....
सप्रेम राधास्वामी
🌷🙏🌷
राधास्वामी हेरिटेज
(संतमत विश्विद्यालय की स्थापना के प्रति समर्पित).
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