*💛🍁🥀राधास्वामी🥀🍁💛
08-09-2020- आज सुबह के सतसंग में पढे गये पाठ-
(1) स्वामी सुनो हमारी बिनती।
मैं करूँ तुम्हारी बिनती।।
मैं बिरह अगिन बिच रहूँ जलन्ती। क्योंकर भौसागर पार परंती।।
-(रोग सोग दुख रहूँ सहन्ती।
दूर करो ऐसी मान महंती।।)
(सारबचन-शब्द-4,पृ.सं.167)
(2) आज खेलूँ कबड्डी घट में आय।।टेक।।
तीसर तिल का पालख बनाया।
दो दल घट में लिये जमाय।।-
( राधास्वामी नाम दुहाई फेरुँ। फतह का झंडा खडा कराय।।)
(प्रेमबानी-2-शब्द-32, पृ.सं. 303)
राधास्वामी🌷🙏🏻*.
*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकिआत- 3 जनवरी 1933- मंगलवार:-
महाराना सांगा की जीवनी का अध्ययन किया। उसके रचनाकार दीवान बहादुर हरबिलास सारदा है । महाराना की बहादुरी के कारनामे और उनके साथियों की बेवफाई के हालात पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। महाराना की बाबर से लड़ाई हुई। महाराना के साथ लाखों राजपूत थे। बाबर का दिल काँप रहा था। लेकिन थोड़ी ही देर के बाद महाराना के अचानक एक तीर लगा। महाराना बेहोश हो गये।कुछ सरदार मशवरा करके महाराना को मैदान जंग से दूर मुकाम पर ले गये। महाराना की जान बच गई लेकिन फौज ने पराजय खाई।
महाराना को जब होश आया तो बडे दुःखी हुये। आखिर एक स्वामीभक्त चारन ने कुछ कविता सुनाकर तसल्ली दी।
महाराना बाबर से दोबारा जंग करने के लिए तत्पर हो गये। लेकिन कुछ साथियों ने जहर खिलाकर महाराना का खात्मा कर दिया। महाराना के मरते ही मुल्क मुगलिया के मुल्क हिंद में पाँव जम गये।
दीवन बहादुर साहब उचित तहरीर फरमाते है कि लडाई के वक्त किसी के एक तीर लग जाना मामूली बात है। लेकिन उस एक तीर में हिंदुओं की किस्मत का हमेशा के लिये फैसला कर दिया। यह किस्मत का तीर था। उसे कोई न रोक सकता था। जिन छोटी-छोटी बातों से बड़े-बड़े नतीजे निकलते हो समझना चाहिए कि उनके पीठ पिछे परोक्ष की जबरदस्त ताकत काम कर रही है।
मालिक को यही मंजूर था कि हिंदुस्तान में अकबर व औरंगजेब शासक हों और अंग्रेजों का राज्य कायम होने के सामान मुहैया किये जाय। ताकि एक दिन हिंदुस्तान गहरी नींद से जागृत हो और दुनिया के दूसरे मुल्कों की तरह तरक्की के राजपथ पर अग्रसर होने का इरादा करें और वह दिन आवे कि दुनिया की सब कौमें अपने तई एक मालिक के बच्चे तस्लीम करके मिलजुल कर सुख के साथ जिंदगी बसर करने के लिए आमादा हो!
शाम के वक्त दयालबाग में बहुत से अजनबी मुसलमान भाई नजर आये। दरयाफ्त करने से मालूम हुआ कि सर आगा खाँ के सेक्रेटरी साहब सैर के लिए आयज हैं।। राधास्वामी🌷🙏🏻*.
*परम गुरु हजूर साहबजी महाराज -
【स्वराज्य】- कल से आगे:-
धर्मवीर- (अलहदगी में ) शुक्र है कि चाल चल गई वरना कमबख्त अमीरचन्द ने तो काम बिगड़ ही दिया था- कहीं ऐसा ना हो वजीर बनकर इसके हौसले और बुलंद हो जायँ और राजपदवी के ख्वाब देखने लगे.... मगर हाँ- राजपंडित और बड़े मुसाहिब उसका मिजाज दुरुस्त करने के लिए काफी है -जबकि उन्होंने खड़गसिंह जैसे जबरदस्त काँटे को झट से निकाल कर फेंक दिया तो अमिरचन्द क्या चीज है- अलावा इसके पंडित जी तंत्र विद्या -खूब जानते हैं, जब जिसकी चाहूँगा सफाई करा दूंगा - एक लाख की दक्षिणा भी बहुत होती है- यह जरूर अपना काम करेगी- लेकिन पंडित जी और नये दानाध्यक्ष में झगड़ा ना हो जाय- क्योंकि अव्वल तो सोमदेव को यहआसामी नहीं मिली और पंडित जी को जरूर इसकी रडक रहेगी और दूसरे -दानाअध्यक्ष दान का रुपया औरों को क्या देगा, सारी रकम खुद ही हजम करने की कोशिश करेगा- खैर! देखा जायगा -अभी से क्यों फिक्र में पड़े -अभी तो मजे से राज्य करो और जिंदगी का लुफ्त उठाओ-
राजपदवी क्या किसी को आसानी से मिल जाती है ?
इस वक्त जरा दिल कडा करना चाहिए- अगर लाख डेढ़ लाख रुपया खर्च हो जाएगा तो कोई हर्ज की बात नहीं- हाँ! माता जी का कहना पूरा हो गया- वह कहती थी- बेटा! तुम जरूर राजा बनोगे। अजी! उग्रसेन अब क्या लौटकर आएगा- ब्रह्मदर्शन उसे इस जन्म में क्या चार जन्म में भी नहीं मिलेंगे- अब बेखटके राज्य करो और हिम्मत ना हारो। राजपुत्री के साथ जरा अधर्म तो हुआ है मगर दुनिया में अधर्म कहाँ नहीं होता लड़की का राज्य करना तो और भी अधर्म होता- छीः छीः लड़की राज्य करें और मर्द बैठे रहे? असल में यह सब खड़गसिंह की शरारत थी मगर वह राजद्रोही तो नहीं था- मुमकिन है मेरे साथ दिल में दुश्मनी रखता हो- अब जो हो सो हो- चलो छत पर देखें नगर निवासी आज की खबरें सुनकर क्या ढंग इख्तियार करते हैं- मगर नगरकोट की प्रजा तो निरी बेवकूफ है-लोगों को सिर्फ लगान देने से काम है -कोई राजा हो, कोई वजीर हो।।
( चल देता है। ) क्रमशः
राधास्वामी🌷🙏🏻*.
*परम गुरु हजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1-
कल से आगे:-( 35)
【 वर्णन हाल सच्चे परमार्थी जीवो का और दर्जे उनकी प्रीति और प्रतीति के सत्तपुरुष राधास्वामी दयाल और सच्चे गुरु के चरणों में और यह कि कैसे यह प्रीति और प्रतीति दिन दिन बढती जावे।】 (1) सच्चा प्रमार्थी वह है जिसके मन में सच्चे मालिक से मिलने और अपने जीव का सच्चा और पूरा कल्याण करने की चाह जबर है और संसार के पदार्थ और भोगों की चाह थोड़ी और जरूरत के मुआफिक है और फिर उनमें भी उसके मन का बंधन बहुत कम है और धन, संतान और कुटु्म्ब परिवार में भी बहुत बंधन और पकड़ नहीं है ।
(2) ऐसे परमार्थी जीवो के मन में थोड़ी बहुत तड़प और बेकली लगी रहती है कि कैसे और कब सच्चे मालिक का दीदार मिलेगा, और जो उसका भेद और रास्ता बताने वाले हैं, यानी संत सतगुरु अथवा साधगुरु, कैसे जल्दी से मिलें कि रास्ता चलने का काम जल्दी से जारी हो जावे ।।
(3) ऐसे परमार्थी जीवो को जो कोई सच्चे मालिक राधास्वामी दयाल की महिमा सुनावे और उनके धाम का भेद और उनके मिलने की जुगत लखावे, तो वे निहायत अहसानमंद और मगन हो जाते हैं और उसका संग ज्यादा से ज्यादा करना चाहते हैं । और जो जुगत वास्ते हासिल होने इस मतलब के बताई जाये उसको बहुत शौक के साथ करने को तैयार होते है। क्रमशः। 🙏🏻🍁💛राधास्वामी💛🍁🙏🏻*
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