वास्तव में साई बाबा का पृथ्वी पर आगमन और गमन एक विलक्षण दैवी महालीला थी, जिसे खुद बाबा ने ही रचा था .वस्तुतः बाबा हमारे दुख हरने आए थे .वह हमें जीव प्रेम और सेवा कर्म के साथ निर्विकार भक्ति का मार्ग दिखलाने आए थे.सब का मालिक एक सूत्र वाक्य के माध्यम से उन्होंने मनुष्य मात्र की बुनियादी एकता को प्रतिष्ठित किया . 'सबका मालिक एक' की अर्थव्यंजना मानवतावाद की स्थापना का ही एक बड़ा प्रयास था . वस्तुत: साई की भक्ति का दर्शन और विश्वास मनवतावाद की नींव पर ही अविचल खड़ा है.
साई की आध्यत्मिक यात्रा टूटी फूटी मस्जिद से शुऱू हुयी थी और उन्होंने यहीं बैठ कर अंधेरे में भटक रहे जीवधारियों को जीवन की रागपगी चेतना से परिचित करवाया था तथा जीने की कला सिखलायी थी. उनका यह आश्वासन कि ''मैं समाधि लेने के बाद भी अपने भक्तों की सहायता के लिए दौड़ा चला आउंगा'' पूर्णतः फलित हो रहा है.वास्तव में वे जड़ और चेतन सभी पदार्थों में व्याप्त हैं तथा सर्वभूतों के अन्तःकरण के संचालक एवं नियंत्रणकर्ता हैं.
बाबा के भक्तों का यह अनुभव और विश्वास है कि श्री साई अपने भक्तों को अपने दिए वायदे के अनुसार समाधि पर बुलाते हैं उनकी देखभाल करतें हैं.शिरड़ी की यात्रा करके ही यह अनुभव हो सकता है कि श्री साईनाथ वास्तव में क्या थे और क्या हैं.
आज भी साई जीवन की अनन्त यात्रा में अपने भक्तों के साथ हैं. वह प्रीति क्या जो नश्वर शरीर के साथ समप्त हो जाए, सद् गुरु के प्रति प्रेम कोई साधारण प्रेम नहीं होता.इस प्रेम का उदय नक्षत्रों से भी ऊपर होता है जिसे छूने के लिए आत्म-उत्सर्ग करना पड़ता है.
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