राधास्वामी!/ 19-10-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-
आरत गावे दास रँगीला ।
चरन सरन में खेलत सीला ॥१॥ बचन गुरू हित चित से सुनता ।
धुन धन धुन धुन मन को धुनता ॥२॥
उमँगत हिया धुन शोर मचावत । सुरत निरत सँग नभ पर धावत ॥३॥ सहसकँवल धुन घंट सुनाई ।
जोत रूप का दरशन पाई ॥४॥
सेत श्याम के मध्य ठिकाना।
तिल अन्तर नल बंक दिखाना ॥५॥
संख सुना और धुन ओंकारा।
त्रिकुटी चढ़ गुरु रूप निहारा ॥६॥
सूरज मंडल लाल दिखाई।
गरज गरज मिरदंग बजाई।।७।।
आगे चढ़ खोला दस द्वारा ।
चंद्र चाँदनी चौक निहारा ॥८॥
धार त्रिबेनी किये अश्नाना ।
ररंकार धुन सुरत समाना ॥९॥
महासुन्न होय ऊपर धाई।
भँवरगुफा मुरली सुन पाई।।१०।।
सेत सूर परकाश
हंस मंडली अधिक सुहाई।।११।।
◆◆◆◆कल सेआगे◆◆◆◆
सत्तलोक का द्वारा खोला ।
सत्तपुरुष तब बानी बोला ॥१२॥
दरशन कर स्रुत हुई मगनानी ।
प्रेम सिंध में आन समानी ॥१३॥
अलख अगम को निरखत धाई । राधास्वामी चरन समाई ॥१४॥
यहाँ आय कर आरत गाई ।
मेहर दया मैं निज कर पाई ॥१५॥
यह पद सार सार का सारा ।
आदि अनंत अखंड अपारा ॥१६॥
जोगी ज्ञानी भेद न जाना ।
तीन लोक में रहे भुलाना ॥१७॥
देवी देवा और औतारा ।
संत बिना कोई जाय न पारा ॥१८॥
भाग जगा अब धुर का मेरा ।
सतगुरु का मैं हुआ निज चेरा ॥१९॥
चरन सरन में लिया लगाई ।
करम भरम सब दूर हटाई ॥२०॥
महिमा राधास्वामी अति कर भारी । सुरत हुई चरनन बलिहारी ॥२१॥
(प्रेमबानी-1-शब्द-38-पृ.सं.190,191,192)
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