राधास्वामी! / 05-10-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-
सखी री मेरे भाग जगे ।
मैंने सतगुरु पाये री।।१।।
करम भरम संशय सब काटे ।
मोहि चरन लगाये री ।।२।।
प्रेम रूप प्यारे राधास्वामी मेरे ।
क्या महिमा गाये री ॥ ३॥
चरन सरन दे अपना कीन्हा ।
मेरा प्रेम बढ़ाये री ॥ ४॥
सब जग पड़ा काल के फंदे।
नित करम चढाये री ॥ ५॥
अंधाधुध धरम के मारग।
सब जीव फँसाये री ॥ ६॥
क्योंकर भाग सराहूँ अपना ।
मोहि सतगुरु लीन बचाये री ॥ ७॥
सच्चा मारग सुरत शब्द का ।
सो मोहि दीन लखाये री ॥ ८॥
गुरु का रूप निरखती घट में ।
प्रीति प्रतीति बढ़ाये री ॥ ९॥
°°°°°°° कल से आगे°°°°°°
उमँग सहित धन डोर पकड़ के ।
मन और सूरत धायें री ॥ १०॥
चित का थाल ध्यान की जोती ।
आरत प्रेम सजाये री ॥११॥
उमँग उमँग कर सन्मुख आई ।
राधास्वामी लीन रिझाये री ॥ १२॥
दया मेहर परशादी पाई ।
अब निज भाग जगाये री ॥१३॥
राधास्वामी महिमा कही न जावे ।
सब रचना थाक रहाये री ॥ १४॥
मैं बलहीन नहीं गुन कोई ।
राधास्वामी लिया अपनाये री ॥ १५॥
(प्रेमबानी-1-शब्द-31-पृ.सं.178,179,180)
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