राधास्वामी! / 25-10-2021-
आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:- सुरत पियारी उमँगत आई । गुरु दरशन कर अति हरषाई ॥१॥
प्रेम सहित सुनती गुरु बचना ।
मन माया अँग छिन छिन तजना ॥२॥
गुरु सँग प्रीति करी उन गहिरी ।
सुरत निरत हुई चरनन चेरी ॥३॥
हिये बिच उठी अभिलाषा भारी ।
आरत सतगुरु करूँ सँवारी ॥४॥
हिये अनुराग थाल कर लाई ।
बिरह प्रेम की जोत जगाई ॥५॥
सुन्दर बस्त्र प्रीति कर साजे ।
उमँग नवीन हिये में राजे ॥६॥
भोग सुधा रस आन धराई ।
हरष हरष गुरु आरत गाई ॥७॥
अति कर प्रेम भाव हिये परखा ।
दया दृष्टि से सतगुरु निरखा ॥८॥
चरन भेद दे सुरत चढ़ाई ।
करम भरम सब दूर पराई ॥६॥
मेहर हुई निज भाग जगाये ।
घट में दरशन सतगुरु पाये ॥१०॥
आँख खुली तब निज कर देखा ।
जग जीवन का जस है लेखा ॥११॥
कोइ मूरत मंदिर में अटके ।
कोइ तीरथ कोइ बरत में भटके ॥१२॥
देवी देवा पत्थर पानी ।
राम कृष्ण में रहे भुलानी ॥१३॥
निज घर का कोई भेद न पाया ।
बिन सतगुरु सब धोखा खाया ||१४||
कस कस भाग सराहूँ अपना ।
सतगुरु ने मोहि किया निज अपना ॥१५॥
दया करी मोहि गोद बिठाया ।
सुरत शब्द मारग दरसाया ||१६||
चरन सरन मोहि दृढ़ कर दीन्ही ।
मेरी सुरत करी परवीनी ॥१७॥
नित नित प्रीति प्रतीति बढ़ाई ।
संशय कोट अब दीन उड़ाई ||१८||
गुरू राधास्वामी प्यारे ।
अपनी दया से मोहि लीन उवारे ॥१९॥
(प्रेमबानी-1-शब्द-43-पृ.सं.198,199,200)
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