Saturday, October 30, 2021

धार्मिकता होनी चाहिए।

 "धर्मों की चट्टाने"||

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धर्म एक मृत संगठन नहीं है, संप्रदाय नहीं है, वरन एक तरह की 


एक ऐसी जीवंत गुणवता, जिसमें समाहित है: सत्‍य के साथ होने की क्षमता।


 प्रामाणिकता, सहजता, स्‍वाभाविकता, प्रेम से भरे ह्रदय की धड़कनें और समग्र अस्‍तित्‍व के साथ मैत्रीपूर्ण लयबद्घता।


इसके लिए किन्‍हीं धर्मग्रंथों और पवित्र पुस्‍तकों की आवश्‍यकता नहीं है।

    


 सच्‍ची धार्मिकता को मसीहाओं, उद्धारकों, पवित्र ग्रंथों, पादरियों, पोपों, पंडित, पुरोहित, मौलवियों, तुम्‍हारे शंकराचार्य की और किसी, मंदिर,मस्जिद, चर्चों की आवश्यकता नहीं है। क्‍योंकि धार्मिकता तुम्‍हारे ह्रदय की खिलावट है।


वह तो स्‍वयं की आत्‍मा के, अपनी ही सत्‍ता के केंद्र-बिंदु तक पहुंचने का नाम है। और जिस क्षण तुम अपने आस्‍तित्‍व के ठीक केंद्र पर पहुंच जाते हो।


उस क्षण सौंदर्य का, आनंद का, शांति का और आलोक का विस्‍फोट होता है। तुम एक सर्वथा भिन्‍न व्‍यक्‍ति होने लगते हो। तुम्‍हारे जीवन में जो अँधेरा था वह तिरोहित हो जाता है।


और जो भी गलत था वह विदा हो जाता है। फिर तुम जो भी कहते हो वह परम सजगता और पूर्ण समग्रता के साथ होते हो।


     मैं तो बस एक ही पुण्‍य जानता हूं और वह है: सजगता।


ओशो"

"आपुई गई हिराय"

प्रवचन—5

ओशो इंटरनेशनल कम्‍यून पूना||

"अमृत कण "

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