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राधास्वामी दयाल हर घट के भीतर विराजमान है। कोई भाग से उस तक पहुंचने का मार्ग पा जाता है, और कोई वक़्त मुनासिब पहुंच जाएगा, पर पहुंचना सभी ने एक दिन जरूर है। कोई आगे कोई पीछे, सब कर्मों का खेल है।
जगत में जिसकी आँखें और कान खुले हैं वह देख और सुन कर ही विशवास करता है। पर धन्य है वह जिसने अनदेखे पर विशवास किया। अनदेखे पर विशवास हमेशा दृढ़ और निश्चित होता है। देख कर किया गया विशवास जगत के दृश्य बदलने के साथ ही बदल जाता है। उदाहरण के लिए, कोई कहता है, यह मेरा बेटा है, कुछ वर्ष बाद कहता है कि, यह किशोर हो गया, फिर कहता है कि, अब यह जवान हो गया, फिर पिता बन गया...., पर कोई नहीं जानता कि कहां से आया था और कहां चला गया।
यह जगत का सत्य है, जो कि दृश्य के बदलने के साथ-साथ बदलता जाता है, क्योंकि यह जगत ही नित नश्वर और नाशमान है, इस जगत में कुछ भी स्थिर और निश्चित नहीं है।
...फिर भी यह जगत जीव जन्म के लिए निश्चित है, पहले जगत फिर जीव है। जगत से पहले कर्ता और उससे पहले करतार है।
करतार का कारण दयाल है। यही हर राधा का स्वामी, 'राधास्वामी दयाल' है।
पर बात यहीं ख़त्म नहीं हो जाती।
'आदि में मौज उठी और उसने ठहर कर ठेका लिया या मंडल बांधा। यही कुल का मालिक, सब का स्वामी, आदि अकर्ता राधास्वामी है। तो आदि में मौज कहां से उठी....?
परमपुरुष पूरणधनी समद कुल मालिक हुज़ूर स्वामीजी महाराज ने फरमाया है कि,
"मेरा मत तो सतनाम और अनामी का था, राधास्वामी मत सालिगराम का चलाया हुआ है..."
'अनामी' ...., जहां से कि आदि में मौज उठी उसका भेद प्रकट नहीं किया गया। पर यह निश्चित है की, 'राधास्वामी' मत व उसके सिद्धांतो की धारणा को दृढ़ किये बिना, कोई भी 'अनामी' के भेद से परिचित नहीं हो सकता।
'एक ओंकार सतनाम अनामी।
अस मेरे प्यारे राधास्वामी।।'
सप्रेम राधास्वामी
🌷🙏🌷
राधास्वामी हेरिटेज
(सन्तमत विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रति समर्पित).
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