* जो लोग सुरत-शब्द मार्ग का अभ्यास नहीं करते, उनकी जीवात्मा की क्या गति होती है ...?
जो कि सुरत-शब्द मार्ग के अभ्यासी नहीं हैं, उनका सुरत अंग बरामद नहीं होता और जीवात्मा पुुनर्जन्म चक्र से नहींं छूट पाती, तो आवा-गमन मेंं बंधी - चौरासी भोगती रहती है।
चाहे जीव अपने मन की रीत से कितना ही सुमरन कर ले, चाहे तो सारी उम्र ही क्यों न कर ले, पर यदि सन्तों की रीत के अनुसार विधि पूर्वक सच्चे ध्वनात्मक नाम का सुमिरन व भजन ना किया तो मन का मैल तो कुछ हद तक धुल सकता है, पर जून यानी मनुष्य योनी न बचेगी। फिर अगले जन्म सतगुरू से मेेला कैसे हो ....? और फिर आगे की कमाई का अवसर भी जाता रहा। हाँ , इतना तो ज़रूर है कि शुभ - अशुभ कर्मों का फल अवश्य ही मिलेगा और उसे भोगने के लिए पुनर्जन्म और चौरासी जून में गिरना ही पड़ेगा। इसीलिये बार-बार कहता हूूँ कि, सुरत-शब्द योग का अभ्यास मुख्य हैै, सो भजन में जरूर बैठो, चाहे जितना भी समय मिले और मन लगे।
सो जो सन्तों की रीत के अनुसार विधी पूर्वक सुरत-शब्द मार्ग के अभ्यासी नहीं हैं उनकी जीवात्मा देह से निकलते ही चिदाकाश में पहुंचते-पहुंचते देह और संसार की सुध-बुध भूल जाती है और अपनी जबर लालसाओं, कामनाओं, वासनाओं व कर्मों के अनुसार दूसरी देह व योनी को प्राप्त होती है।
'सप्रेम राधास्वामी'
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राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्वविधाललय की स्थापना के प्रति समर्पित
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