Saturday, October 30, 2021

सतसंग पाठ / 301021

 *30-10-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                  


 गुरुमुख सुरत प्रेम भरपूरी ।

सतगुरु चरनन सदा हज़री ॥१॥                                           

 बिरह अनुराग की नित नई धारन ।

 दृढ़ परतीत और प्रीति सँवारन ॥२॥                                                                

तन मन धन सब सतगुरु अरपन । करम भरम सब दूर बिडारन ॥३॥*                                  

*गुरु सेवा हित चित से करना ।

 सुरत दृष्टि दोउ तिल में भरना ॥४॥                                                                           

  ऐसा जोग मेहर से पाऊँ ।

 राधास्वामी पै बलि बलि जाऊँ ॥५॥                                        

 दीन अधीन रहूँ गुरु चरना ।

 उमँग सहित धारूँ गुरु सरना ॥६॥                                     

सतसँग महिमा कही न जाई ।

 **राधास्वामी!* *30-10-2021-

आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-


 गुरुमुख सुरत प्रेम भरपूरी ।

 सतगुरु चरनन सदा हज़री ॥१॥

 बिरह अनुराग की नित नई धारन ।

 दृढ़ परतीत और प्रीति सँवारन ॥२॥

 तन मन धन सब सतगुरु अरपन । करम भरम सब दूर बिडारन ॥३॥*

गुरु सेवा हित चित से करना ।

 सुरत दृष्टि दोउ तिल में भरना ॥४॥ ऐसा जोग मेहर से पाऊँ ।

राधास्वामी पै बलि बलि जाऊँ ॥५॥

दीन अधीन रहूँ गुरु चरना ।

उमँग सहित धारूँ गुरु सरना ॥६॥

सतसँग महिमा कही न जाई ।

भेद गुप्त सब दिया लखाई ॥७॥*

*राधास्वामी मत है अति कर गहिरा ।

राधास्वामी चरनन जीव निबेड़ा ॥८॥

राधास्वामी देस ऊँच से ऊँचा ।

संत बिना कोई जहाँ न पहुँचा ॥९॥

 बडभागी जो सतसँग पावे ।

कर परतीत सरन में धावें ॥१०॥*

 *काल करम की फाँसी टूटे।

चौरासी का भरमन छूटे।।११।।

 राधास्वामी दया भाग मेरा जागा । 

चित्त चरन में सहजहि लागा ॥१२॥ अपनी दया से लिया अपनाई ।

 क्योंकर महिमा राधास्वामी गाई ॥१३॥

 हिय में उमँग उठी अब भारी ।

 आरत सतगुरु करूँ सम्हारी ॥१४॥

बिरह प्रेम का थाल सजाऊँ ।

 धुन झनकार जोत जगवाऊँ ॥१५॥*

 *उमँग उमँग कर आरत गाऊँ ।

 दृष्टि जोड़ मन सुरत चढ़ाऊँ ॥१६॥*

*सहसकँवल होय त्रिकुटी धाऊँ ।

 सुन के परे गुफा दरसाऊँ ॥१७॥*

 *सत्तलोक जाय बीन बजाऊँ ।

 अलख अगम के पार चढ़ाऊँ ॥१८॥*

 *राधास्वामी प्यारे के दरशन पाऊँ ।

 उन चरनन में जाय समाऊँ।।१९।।* *

(प्रेमबानी-1-शब्द-46-पृ.सं.203,204,205)**


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