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अनुभव दो प्रकार के होते हैं, एक अन्तरी और दूसरे बाहरी कहलाते है। सुरत-शब्द अभ्यास के समय, अंतर में प्राप्त होने वाले अनुभवों को ही 'अंतरी पर्चे मिलना' कहा गया है।
स्वाभाविक ज्ञान जब ज्ञानेंद्रियों में प्रवेश करता है तब अनुभूति के परिणामों को प्राप्त करता है । अनुभूति की स्वीकारोक्ति ही जब अन्तःकर्णीय अवस्थाओं से गुज़र कर मन के वैचारिक धरातल पर प्रकट होती है, तब उसकी अभिव्यक्ति कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्मों के माध्यम से अभिव्यक्त होती है कर्मों की इसी अभिव्यक्ति का प्रतिफल ही व्यवहारिक अनुभव कहलाता है और अनुभूति की स्वीकारोक्ति ही अन्तरी अनुभव है जो कि बुद्धि की परिधि से आगे बढ़कर समझ के द्वारों को खोल देता है।
'सप्रेम राधास्वामी'
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राधास्वामी हेरिटेज.
(सन्तमत विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रति समर्पित)
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