: राधास्वामी! 01-10-2021-आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-
भाग चलो जग से तुम अब के ।
सतसँग में मन दीजो रे ॥१॥
इंद्री भोग त्याग देव मन से ।
चरन सरन गुरु लीजो रे ॥२॥
ले उपदेश करो अभ्यासा ।
सुरत शब्द सँग भीजो रे ॥३॥
प्रीति प्रतीति सहित गुरु सेवा ।
तन मन धन से कीजो रे ॥४॥
राधास्वामी चरन बसाय हिये में ।
नित्त सुधा रस पीजो रे ॥५॥
(प्रेमबानी-3-शब्द-6-पृ.सं.176)**
**राधास्वामी! आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला पहला पाठ:-
एक आरती और बनाऊँ।
राधास्वामी आगे आन सुनाऊँ।।(सारबचन-पृ.579,580)**
*राधास्वामी! / 01-10-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:- गुरु प्रेम प्रेम बढ़ा अब मन में । स्रत लगी जाय चरनन में ॥१।। निम दिन रहे यही गुनावन । सेवा कर गुरू रिभावन ॥२।। गुरु मेहर करूँ क्या बरनन । परतीत दई निज चरनन ॥३।। मोहि जग से न्यारा कीन्हा । निज भेद चरन का दीन्हा ॥४॥ मन सुरत रहे लोलीना। गुरु बिन कोई और न चीन्हा ॥५॥ मेरे सतगुरु परम उदारा। कर दया जीव निस्तारा ॥६॥ क्या वारूँ गुरु पर आई। तन मन धन तुच्छ दिखाई ॥७॥ स्रुत अंस तुम्हारी प्यारी। अब सरबस हुई तुम्हारी ॥ ८॥ जस जानो लेव सम्हारी। चरनन में रहूँ सदा री ॥६॥ मेरे दाता दीनदयाला । दरशन दे करो निहाला ॥१०॥ सुत दृष्टि खोलिए प्यारे । निज रूप अनूप निहारे ॥११॥ प्रेम रंग बरसावो भारी । तन मन सुरत भींज रहे सारी ॥१२॥ दरशन कर आनँद पाऊँ । गुन गाऊँ चरन धियाऊँ ॥१३॥ यह अरज़ी मेरी सुन लीजे । जल्दी से मोहि दरशन दीजे ॥१४॥ राधास्वामी परम दयाल अपारा । चरन तुम्हार मोर आधारा ॥१५॥ महिमा तुम नहिं जात बखानी । मैं बलि जाउँ चरन क़ुरबानी ॥१६॥ अब आरत प्रेम सजाऊँ । गुरु मेहर प्रशादी पाऊँ ॥१७॥ राधास्वामी पुरुष अपारा । उन चरन मोर निस्तारा ॥१८॥ (प्रेमबानी-1-शब्द-29-पृ.सं.175,176,177)**
[*राधास्वामी!
आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला पहला पाठ:-
मेरी लिव लागी प्यारे चरन में।।टेक।।
(प्रेमबिलास-पृ.28)**
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼
No comments:
Post a Comment