उतर: ध्यान के संबंध में जब भी बात उठती हैं तो ध्यान को हम लोग धार्मिकता मान लेते हैं,
हम लोग समझते हैं कि ध्यान करने वाला धार्मिक हैं ध्यान बुद्धत्व के लिए किया जाता हैं, ध्यान करने वाले को शक्तियां मिलती हैं,
ये कुछ ऐसी बातें हैं जिन्होंने लोगों को भरम में डाला और ऐसे भरम में डाला कि लोग इन सब चीजों के लिए ध्यान करने लगे।
लेकिन ध्यान इन किसी चीजो के लिए नहीं किया जाता,
ध्यान एक व्यक्ति के जीवनकाल में वास्तव में तब आता है जब उसको थकान हो चुकी हो,
अब थकान कई तरीके की है एक थकान शरीर की है शरीर की थकान जब आती है तो हमें विश्राम की जरूरत होती है,
तब हम सो जाते हैं या आराम करते हैं इस विश्राम करने में हमारे शरीर को एक नई ताजगी मिलती है, की हम फिर से अच्छे से जी सके।
लेकिन एक थकान होती है हमारे मन की थकान जब हम जो करना चाहते हैं जो हम जीना चाहते हैं, जो पाना चाहते हैं, उन चीजों को जब हम पूरा कर लेते हैं, या उनके पाने में हम अपनेआप को कही खो देते हैं तब एक थकान आती हैं,
उस थकान में एक विश्राम की जरूरत होती हैं,
और उस विश्राम का नाम हैं ध्यान।
ध्यान कोई कर्म नहीं है, ध्यान के संबंध में सदा से जिन्होंने भी गहरा जाना उन्होंने ध्यान के संबंध में सिर्फ एक छोटी सी बात कही है की ध्यान अक्रिया है और ध्यान का अनुभव अतींद्रिय हैं, यानी ध्यान का शरीर के कर्मो से कोई लेना देना नहीं है।
क्योंकि शरीर इंद्रियों का जोड़ हैं और इंद्रियों से हम जो भी करेंगे वो ध्यान नहीं होगा,
इंद्रियां जिस चीज को महसूस करेंगी अच्छे या बुरे के रूप में वो ध्यान नहीं है।
तो ध्यान हैं मन की थकान के बाद विश्राम की चाह का उठना,
ध्यान को अगर कोई व्यक्ति इससे अतिरिक्त कहता या समझता है तो वो अपने को भरम में डाल रहा है।
कृष्ण ने जब गीता कही थी तो स्पष्ट कहा था कि विरक्ति से संन्यास घटता है,
और विरक्ति हैं तब घटती है जब हमने इंद्रियों से सब कर्म करके देख लिए अब कोई परिणाम नहीं आते या जो भी आ गए है वो संतुष्ट नहीं कर पाते,
तो ऐसे में कुछ और कि मांग होती है और गहरे में अगर कहे तो हम दो तरीके की चीजों का जोड़ हैं पदार्थ और अपदार्थ,
पदार्थ को तो हम भोजन देने के लिए सदा तैयार रहते हैं वो भोजन नींद का हो या चाहे वो पदार्थ की और ज्यादा मांग का हो या कुछ भी जो बाहर जगत की चीज हैं वो सब हम पदार्थ को देते हैं ये पदार्थ का भोजन हैं,
लेकिन अपदार्थ जो उसके पीछे हैं जिससे संपर्क टूट जाने पर हम मुत्यु को उपलब्ध होते हैं,
उस अपदार्थ का भोजन हैं ध्यान,
उस अपदार्थ के लिए हम जो तैयारी करते हैं वो हैं ध्यान।
मेरी नजर में ध्यान सिर्फ इतनी सी बात हैं। -Sakha
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